लालू यादव बताएं कि ये हजार करोड़ की संपत्ति कमाने के लिए उन्होंने कौन सी ‘मेहनत’ की है ?

लालू के परिवार के सदस्यों  की संपत्ति अगर आयकर विभाग स्थाई तौर पर जब्त कर ले तो वे बिहार के ऐसे पहले पूर्व मुख्यमंत्री होंगे जिन पर बेनामी संपत्ति कानून के तहत कार्रवाई होगी। पर, लालू  इससे भी शर्मसार होने वाले नहीं हैं।  लालू एक अजीब नेता हैं। वे अमीरों पर बरसते हुए खुद धन्नासेठ हो गए। याद नहीं आता कि लालू एंड फैमिली ने बिहार के अवाम का दुख-दर्द दूर करने के लिए भी कोई बड़ी पहल की हो।  यादव-मुसलमानों को धोखा देकर ये अपने स्वार्थ पूरे करते रहे हैं।

जेपी आंदोलन की देन हैं लालू यादव। अपने को सामाजिक न्याय का सबसे बड़ा झंडाबरदार मानते हैं। उनके चेले भी उन्हें किसी पैगंबर से कम नहीं बताते। पर कहते हैं कि चोर चोरी से जाए, पर हेराफेरी से ना जाए। लालू ने इस कहावत को साबित करके अपने करीबियों को जरूर ठेस पहुंचाई है।

पहले खुद लालू चारा घोटाले में फंसे और उसमे दोषी करार होकर जमानत पर घूम रहे। अब उनका परिवार बेनामी संपत्ति के मामलों में देश के सामने शक्ल दिखाने लायक नहीं रहा है। लालू का एक दौर में जलवा था भारतीय राजनीति में। वे अपने आप को धर्मनिरपेक्षता का सिंबल मानते थे। पर इस 68 साल के बिहारी नेता की हकीकत अलग है।

लालू गोपालगंज ज़िले के फुलवरिया गाँव में एक ग़रीब परिवार से आते हैं। राजनीति में प्रवेश से पहले गांव के साधारण  लोगों और ग़रीबों के मित्र समझे जाने वाले लालू अब अपने कुनबे समेत अरबपतियों के क्लब में आ गए हैं। ऐसे में, उनसे यह सवाल पूछा जाना वाजिब है कि उनके परिवार के पास एक हजार करोड़ रुपये की संपत्ति कहां से आई? इसी बात पर अब आयकर विभाग उनकी क्लास ले रहा, तो वे तिलमिला गए हैं।

चारा घोटाला  में फंसने के बाद उम्मीद बनी थी कि लालू सुधर जाएँगे। पर उन्होंने अपने शुभचिंतकों को निराश किया। ताजा मामला इसकी गवाही है। चारा घोटाले के सारे घपले में बिहार सरकार के ख़ज़ाने से ग़लत ढंग से पैसे निकलते रहे। जांच चली तो उसकी आंच लालू  तक जा पहुंची। वह घपला 900 करोड़ रुपए तक जा पहुंचा। मामले में फंसे लालू यादव को इस सिलसिले में जेल तक जाना पड़ा, उनके ख़िलाफ़ सीबीआई और आयकर की जांच हुई, छापे पड़े और अब भी वे कई मुक़दमों का सामना कर रहे हैं। पर वे बाज नहीं आए।

आयकर विभाग ने 1,000 करोड़ रूपये के बेनामी जमीन सौदों तथा कर चोरी मामले की जांच के सिलसिले में लालू प्रसाद यादव के परिवार के सदस्यों के खिलाफ बेनामी लेनदेन कानून के तहत कार्रवाई शुरू की है।  लालू की पत्नी, पुत्र और पुत्रियां सब फंस रहे हैं। आयकर विभाग ने लालू की सांसद पुत्री मीसा भारती और उनके पति शैलेश कुमार, लालू की पत्नी एवं बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, पुत्र और बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव और पुत्रियां चंदा तथा रागिनी यादव को संपत्ति कुर्क करने का नोटिस भेजा है।

सुनकर पैरों के नीचे से जमीन खिसकने लगती है कि  लालू के बेटे-बेटियों ने दिल्ली, गुरुग्राम, नोएडा और पटना में लगभग डेढ़ दर्जन से भी ज्यादा संपत्तियां बना लीं। इसके बावजूद ये अपने को गरीबों का हमदर्द बताते हैं। कह सकते हैं कि लालू का परिवार उन्हीके नक़्शे कदम पर चल रहा है। लालू यादव को यह बताना चाहिए कि उन्होंने या उनके बच्चों ने कौन-सी ‘मेहनत’ करके ये एक हजार करोड़ की संपत्ति बनाई है ?

एक बात जान लीजिए कि लालू के परिवार के सदस्यों  की संपत्ति अगर आयकर विभाग स्थाई तौर पर जब्त कर ले तो वे बिहार के ऐसे पहले पूर्व मुख्यमंत्री होंगे जिन पर बेनामी संपत्ति कानून के तहत कार्रवाई होगी। पर, लालू  इससे भी शर्मसार होने वाले नहीं हैं।  लालू एक अजीब नेता हैं। वे अमीरों पर बरसते हुए खुद धन्नासेठ हो गए। याद नहीं आता कि लालू एंड फैमिली ने बिहार के अवाम का दुख-दर्द दूर करने के लिए भी कोई बड़ी पहल की हो।  यादव-मुसलमानों को धोखा देकर ये अपने स्वार्थ पूरे करते रहे हैं।

लालू यादव के दो चेहरे हैं। वे गरीबों और दबे-कुचलों के पक्ष में खूब बोलते हैं। हालांकि अब सारे देश को पता है कि मोहम्मद शहाबुद्दीन कितना भयानक इंसान है, पर लालू ऐसे अपराधी से भी चिपकने से बाज नहीं आते। कारण ये है कि उन्हें मुसलमानों के वोटों के अपने से दूर जाने का खतरा रहता है। उनकी सारी राजनीति अपने परिवार के आसपास सिमटती है।

अब क्या होगा? यह बहुत बड़ा सवाल है लालू के राजनीतिक भविष्य को लेकर। क्या नीतीश कुमार उनसे नाता तोड़ेंगे? जिस तरह से लालू फैमिली के  एक के बाद एक घोटाले सामने आ रहे हैं, उससे साफ है कि उनकी मुश्किलें बढ़ेंगी ही। वे राजनीतिक तौर पर खारिज होते रहेंगे। संभव है कि देश में आगामी राष्ट्रपति  चुनावों के बाद बिहार में राजनीतिक समीकरण बदलें और लालू यादव से दूरी बनाते हुए नीतीश कुमार भाजपा के साथ बिहार में सरकार का गठन कर लें।

बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद को भाजपा ने राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाया है। बिहार के सत्ताधारी महागठबंधन का प्रमुख घटक जदयू कोविंद को समर्थन का ऐलान कर दिया है। ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि कुल मिलाकर लालू के लिए फिलहाल चौतरफा रूप से बुरी खबरें आ रही हैं। यूँ कहें तो शायद गलत नहीं होगा कि भारतीय राजनीति से लालू यादव के दिन अब पूरी तरह से लदने की तैयारी में हैं।

(लेखक यूएई दूतावास में सूचनाधिकारी रहे हैं। वरिष्ठ स्तंभकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)