भारत-अमेरिका के बीच हुआ ऐतिहासिक बेका समझौता, चीन-पाक की बढ़ेंगी मुश्किलें

BECA समझौते का सीधा संबंध देश की सामरिक शक्ति से जुड़ा है। इस समझौते के बाद अब देश को अमेरिका की क्रूज मिसाइलों सहित बैलिस्टिक मिसाइलों की तकनीक हासिल करने में मदद मिलेगी। इस वार्ता का दूसरा अहम पहलू यह भी है कि भारत अमेरिका से वे सभी महत्‍वपूर्ण सैटेलाइट डेटा लेने का हकदार हो जाएगा जो कि राष्‍ट्र की सीमाओं एवं शत्रु की हरकतों पर पूरी तरह से चौकस निगरानी करता है। कहने की जरूरत नहीं कि भारत-अमेरिका के इस समझौते के बाद चीन-पाक की परेशानी बढ़नी निश्चित है।

भारत और अमेरिका के लिए आज का दिन महत्‍वपूर्ण दिन साबित हुआ है। लंबे समय बाद एक बड़ा समझौता साकार हुआ है। अमेरिका के साथ मिलकर आज देश ने टू प्‍लस टू वार्ता के बाद बेसिक एक्‍सचेंज ऐंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट (BECA) नाम की डील की है जिसे बहुत महत्‍वपूर्ण एवं दूरगामी अर्थों में कारगर बताया जा रहा है।

BECA समझौते का सीधा संबंध देश की सामरिक शक्ति से जुड़ा है। इस समझौते के बाद अब देश को अमेरिका की क्रूज मिसाइलों सहित बैलिस्टिक मिसाइलों की तकनीक हासिल करने में मदद मिलेगी। इस वार्ता का दूसरा अहम पहलू यह भी है कि भारत अमेरिका से वे सभी महत्‍वपूर्ण सैटेलाइट डेटा लेने का हकदार हो जाएगा जो कि राष्‍ट्र की सीमाओं एवं शत्रु की हरकतों पर पूरी तरह से चौकस निगरानी करता है। कहने की जरूरत नहीं कि भारत-अमेरिका के इस समझौते के बाद चीन-पाक की परेशानी बढ़नी निश्चित है।

साभार : PIB

निश्चित ही यह समझौता भविष्‍य में निर्णायक साबित होगा क्‍योंकि सीमाओं पर बढ़ती घुसपैठ और आतंकी वारदातों का अब पहले से ना केवल पता लगाया जा सकेगा बल्कि उनके बारे में सचेत होकर उन्हें रोकने का भी समय भरपूर होगा।

राजधानी दिल्‍ली में गत दो दिनों से इस वार्ता की कवायद चल रही थी। हैदराबाद हाउस में हुए इस समझौते में आज अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो और रक्षा मंत्री मार्क एस्‍पर शामिल हुए। भारत की ओर से विदेश मंत्री एस जयशंकर और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह बतौर समकक्ष मौजूद थे।

इस समझौते के बारे में मोटे तौर पर कुछ बातें समझी जा सकती हैं। सबसे पहले तो यही बात सामने आती है कि बीते कुछ समय से अमेरिका और चीन की नौ सेनाओं ने हिंद महासागर में श्रृखंलाबद्ध रूप से संयुक्‍त अभ्‍यास किया। इस बीच भारत भी अपनी नौ सेना के बेड़े को मजबूत बनाता आ रहा था। बेसिक एक्‍सचेंज एंड को-ऑपरेशन एग्रीमेंट से दोनों देशों की सैन्‍य क्षमता में इजाफा तो होगा ही, इसके अलावा अन्‍य सूचनाओं को साझा करने के भी नए मार्ग खुलेंगे।

जब हम अन्‍य सूचनाओं का उल्‍लेख करते हैं तो उसमें सामरिक के अलावा अर्थव्‍यवस्‍था, सेवा क्षेत्र, उद्योग एवं अधोसरंचनात्‍मक क्षेत्र भी शामिल हो जाते हैं। एक प्रकार से देखा जाए तो कोरोना महामारी के वैश्विक संकट के बाद उपजे आर्थिक संकट को संभालने के लिए देशों का आपस में संचार होना बहुत जरूरी हो जाता है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी अपने संयुक्‍त बयान में इसी बात पर जोर देते हुए कहा कि माली हालत को हुए नुकसान के बाद अब देश अपने सर्विस सेक्‍टर को पुर्नजीवित करने में जुट गए हैं।

साभार : The Tribune India

चूंकि भारत और अमेरिका दोनों देशों में लोकतंत्र का अहम एवं बुनियादी स्‍थान है, इसलिए यह नया समझौता इन राष्‍ट्रों को परस्‍पर चुनौतियों से लड़ने में मददगार भी साबित होगा। समझौते पर हस्‍ताक्षर के बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भविष्‍य के लिए अच्‍छे संकेत दिए। उन्‍होंने कहा कि अब अमेरिका और भारत अपेक्षाकृत निकटता से काम कर सकेंगे। मौजूदा दौर की चुनौतियों के बीच अब एक उदाहरण भी प्रस्‍तुत किया जा सकता है।

जहां तक इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के मूलभूत सिद्धांतों की बात है, अमेरिका एवं भारत दोनों देशों ने अपने स्‍तर पर रक्षा एवं सुरक्षा की साझेदारी को सशक्‍त किया है। अमेरिकी रक्षा सचिव मार्क एस्‍पर ने इस समझौते को मजबूत साझेदारी का उदाहरण बताया है।

भारत और अमेरिका के बीच राजनीतिक, व्‍यापारिक, कूटनीतिक एवं आर्थिक संबंध भी अच्‍छे बने हुए हैं। अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप जहां पिछले साल ह्यूटन में हाउडी मोदी जैसा भव्‍य कार्यक्रम करके एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उसमें आमंत्रित करके दोनों देशों की मैत्री का स्‍पष्‍ट संकेत विश्‍व को दे चुके हैं, वहीं इस साल फरवरी में वे स्‍वयं भारत यात्रा करके परस्‍पर संबंधों को प्रगाढ़ भी कर चुके हैं।

इसके कुछ समय बाद जब कोरोना संकट के चलते लॉकडाउन लगाया गया था तो भारत ने अमेरिका को दवाओं की एक खेप पहुंचाकर अपनी संवेदनशील नीति का परिचय दिया था। बीते वर्षों के दौरान भारत एवं अमेरिका के बीच कभी भी खटपट या प्रतिकूल बयानबाजी की नौबत नहीं आई। दोनों देशों के बीच संबंध मधुर ही रहे हैं।

आज बेसिक एक्‍सचेंज एंड को-ऑपरेशन एग्रीमेंट जैसे विशेष समझौते पर दोनों देशों के बीच डील हो जाना इस बात की परिणिति के रूप में सामने आया है। निश्चित ही देश एवं दुनिया को इसके दूरगामी एवं सकारात्‍मक परिणाम आने वाले समय में देखने को मिलेंगे।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)