भारत बन रहा है दुनिया का फार्मेसी हब

भारत अब औषधियों के उत्पादन के क्षेत्र में विश्व में प्रमुख भूमिका निभा रहा है और इस क्षेत्र में विश्व का लीडर बनने की राह पर चल पड़ा है। आकार के मामले में भारतीय दवा उद्योग विश्व स्तर पर आज तीसरे स्थान पर है। भारत में वर्ष 2019-2020 में औषधियों का कुल वार्षिक कारोबार 289,998 करोड़ रुपये का रहा था। विश्व में उपयोग होने वाली जेनेरिक दवाईयों का 20 प्रतिशत भाग भारत निर्यात करता है।

पिछले 8 वर्षों के दौरान भारत के ड्रग्स एवं फार्मा उत्पाद के निर्यात में 103 प्रतिशत की आकर्षक वृद्धि दर अर्जित की गई है। ड्रग्स एवं फार्मा उत्पाद के निर्यात वर्ष 2013-14 में 90,414 करोड़ रुपए के रहे थे जो 2021-22 में बढ़कर 1.83 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गए हैं।

भारत अब औषधियों के उत्पादन के क्षेत्र में विश्व में प्रमुख भूमिका निभा रहा है और इस क्षेत्र में विश्व का लीडर बनने की राह पर चल पड़ा है। आकार के मामले में भारतीय दवा उद्योग विश्व स्तर पर आज तीसरे स्थान पर है। भारत में वर्ष 2019-2020 में औषधियों का कुल वार्षिक कारोबार 289,998 करोड़ रुपये का रहा था। विश्व में उपयोग होने वाली जेनेरिक दवाईयों का 20 प्रतिशत भाग भारत निर्यात करता है।

भारत में औषधि निर्माण के लिए 10,500 से अधिक औद्योगिक केंद्रों का मजबूत नेटवर्क है तथा 3,000 से अधिक फार्मा कम्पनियां भारत में औषधियों का निर्माण कर रही हैं। पूरे विश्व में सबसे बड़ा वैक्सीन उत्पादक देश भी भारत ही है। टीकों की कुल वैश्विक मांग के 62 प्रतिशत भाग की आपूर्ति भारत ही करता है। जेनेरिक दवाओं और कम लागत वाले टीकों के लिए आज भारत का नाम पूरे विश्व में बड़े विश्वास एवं आदर के साथ लिया जा रहा है। भारतीय औषधि उद्योग की आज पूरे विश्व में धमक दिखाई दे रही है एवं भारत दुनिया का फार्मेसी हब बनने की अपने कदम बढ़ा चुका है।

पिछले 9 वर्षों के दौरान भारतीय औषधीय क्षेत्र में 9.43 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वृद्धि (सीएजीआर) दर हासिल की गई है। भारत आज पूरे विश्व में जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता देश बन गया है। भारत 60 चिकित्सीय श्रेणियों में लगभग 60,000 जेनेरिक दवाओं का निर्माण करता है।

भारतीय औषधीय उद्योग ने कोविड महामारी का मुकाबला करने में भी वैश्विक स्तर पर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। कोविड महामारी के काल में भारत ने 120 देशों को हाईड्रोक्सीक्लोरोक्वीन नामक दवाई उपलब्ध कराई थी तथा 20 से अधिक देशों को पैरासिटामोल भी पर्याप्त मात्रा में निर्यात की थी। 100 से अधिक देशों को भारतीय वेक्सीन के 6.50 करोड़ डोज भी उपलब्ध कराए गए हैं।

फार्मास्यूटिकल के क्षेत्र में भारत आज विश्व का पावर हाउस बन गया है। हाल ही में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जोनसन ने अपनी भारत यात्रा के दौरान बताया था कि कोरोना से बचाव के लिए उन्होंने जो टीका लगवाया था वह भारतीय टीका ही था। भारत के लिए यह गौरव करने वाली बात है कि अन्य विकसित देशों के राष्ट्राध्यक्ष भी उनके अपने यहां उत्पादित टीकों के स्थान पर भारत में निर्मित टीकों पर अधिक विश्वास कर रहे हैं।

इस प्रकार भारत में निर्मित हो रही औषधियों पर पूरे विश्व का विश्वास दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। एक अनुमान के अनुसार भारतीय फार्मा उद्योग का आकार वर्ष 2024 तक 6000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो जाएगा। वर्ष 2014 से आज तक भारतीय फार्मा उद्योग में 1200 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी किया गया है।

भारत जेनेरिक दवाओं के उत्पादन के मामले में विश्व में काफी आगे है। दरअसल जेनेरिक दवाओं की ब्रांडेड संरचना ब्रांडेड दवाओं के अनुसार ही होती है। लेकिन वो रासायनिक नामों से ही बेची जाती है ताकि जनता को कोई उलझन न रहे। क्रोसिन और कालपोल, ब्रांडेड दवाओं के वर्ग में आती है जबकि जेनेरिक दवाओं में इनका नाम पैरासिटामाल है। जब कोई कम्पनी कई सालों की रिसर्च के बाद किसी दवा की खोज करती है तो उस कम्पनी को उस दवा के लिये पेटेंट मिलता है जिसकी अवधि 10 से 20 वर्ष की रहती है।

पेटेंट अवधि के दौरान केवल वही कम्पनी इस दवा का निर्माण कर बेच सकती है, जिसने इस दवा की खोज की है। जब दवा के पेटेंट की अवधि समाप्त हो जाती है तब उस दवा को जेनेरिक दवा कहा जाता है। यानि, पेटेंट की अवधि समाप्त होने के बाद कई अन्य कम्पनियां उस दवा का निर्माण कर सकती हैं। परन्तु इस दवा का नाम और कीमत अलग-अलग रहता है। ऐसी स्थिति में दवा जेनेरिक दवा मानी जाती है। भारतीय बाजार में केवल 9 प्रतिशत दवाएं ही पेटेंटेड श्रेणी की है और 70 प्रतिशत से अधिक दवाएं जेनेरिक श्रेणी की है।

जेनेरिक दवाएं सबसे पहले भारतीय कम्पनीयां ही बनाती हैं एवं अमेरिका एवं यूरोपीयन बाजार को भी सबसे सस्ती जेनेरिक दवाएं भारतीय कम्पनियां ही उपलब्ध कराती हैं। चीन के मुकाबले भारतीय जेनेरिक दवाएं ज्यादा गुणवत्ता वाली मानी जाती हैं और कीमत में भी सस्ती होती हैं।

जेनेरिक दवाएं ब्रान्डेड दवाओं की तुलना में बहुत सस्ती होती हैं, इसीलिये केन्द्र सरकार ने जेनेरिक दवाओं को सस्ते मुल्यों पर उपलब्ध कराने हेतु भारत में जन औषधि केन्द्रों की स्थापना की है। इन केन्द्रों पर 600 से ज्यादा जेनेरिक दवाईयां सस्ते दामों पर मिलती हैं एवं 150 से ज्यादा सर्जीकल सामान भी सस्ती दरों पर उपलब्ध है।

दुनिया भर में भारतीय जेनेरिक दवाओं पर विश्वास बढा है और ये देश अब भारत से ज्यादा से ज्यादा आयात करने लगे हैं। अमेरिकी बाजार के जेनेरिक दवाओं में भारत की हिस्सेदारी सबसे अधिक है। यूएसएफडीए के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2017-18 में दुनिया भर के 323 दवाईयों की टेस्टिंग की गई थी।

इस टेस्टिंग में भारत की सभी दवाएं पास हुई थीं। इसके साथ ही, भारत में उत्पादन इकाईयों के मानकों को सही ठहराते हुए अमेरिकी एफडीए ने भारत की ज्यादातर उत्पादक इकाईयों को अमेरिका मे निर्यात की अनुमति दे दी है। इससे जेनेरिक दवाइओं के बाजार में भारतीय कम्पनियों का दबदबा लगातार बढ रहा है।

इस प्रकार कुल मिलाकर औषधियों के निर्माण एवं निर्यात के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियां बहुत प्रशंसनीय एवं उत्साहवर्धक रही है। आगे आने वाले 10 वर्षों में दौरान लगभग 15 ऐसी बड़ी औषधियां हैं जो वैश्विक स्तर पर पैटेंट के दायरे से बाहर हो जाएंगी।

इनके व्यापार की कुल मात्रा लगभग 7.50 लाख करोड़ रुपए के आसपास है अर्थात लगभग 10,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर। इन औषधियों के जेनेरिक श्रेणी में आने के बाद भारत वैश्विक स्तर पर इतनी बड़ी मात्रा में आने वाली मांग को किस प्रकार पूरा कर पाएगा, इस बात पर अभी से विचार किया जाना आवश्यक है।

हाल ही में भारत सरकार ने उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना को भी लागू किया है, इस योजना में फार्मा उद्योग को भी शामिल किया गया है। इस योजना का लाभ उठाने की दृष्टि से भी कई बड़ी कम्पनियां नई औषधियों का भारत में उत्पादन करने हेतु नई औद्योगिक इकाईयों की स्थापना के लिए प्रेरित होंगी।

(लेखक बैंकिंग क्षेत्र से सेवानिवृत्त हैं। आर्थिक विषयों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)