मोदी सरकार के मजबूत नेतृत्व का असर, जी-२० में पहली पंक्ति में मिली भारत को जगह!

यह संयोग ही है कि चौदह साल बाद दूसरी बार भारत के प्रधानमंत्री को जी-२० समिट में पहली कतार में खड़ा होने का अवसर मिला है। इसके पूर्व वर्ष २००२ में जब जी-२० समिट का आयोजन भारत में किया गया था, तो मेहमान देश होने के नाते भारत के प्रधानमंत्री पहली पंक्ति में खड़े हुए थे। यह संयोग ही है कि तब भी देश में भाजपा-नीत राजग की सरकार थी और आज चौदह साल बाद जब विदेशी जमीन पर किसी भारतीय प्रधानमंत्री को पहली कतार में जगह मिली है, तब भी भाजपा की ही सरकार है। खैर, ग्रुप-२० समिट इस बार भारत के प्रमुख प्रतिद्वंद्वी एवं सीमावर्ती देश चीन में आयोजित हुआ था। चीन में आयोजित इस समिट में भारत को महत्वपूर्ण स्थान देना यह दर्शाता है कि अब चीन खुद भी यह स्वीकार कर चुका है कि उसे भारत की अहमियत को सार्वजनिक मंच पर स्वीकार करना ही होगा। बीजिंग स्थित रेनमिन विश्वविद्यालय के अन्तराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ वांग झी ने किसी मीडिया समूह से बातचीत में कहा है कि भारत को पहली कतार में चीन द्वारा जगह दिया जाना इस बात का प्रमाण है कि चीन भारत की ताकत एवं विश्व पटल पर बढ़ते प्रभाव को स्वीकार कर चुका है। दरअसल यह पूरा मामला इसलिए भी चर्चा में है क्योंकि यह समिट चीन की मेहमानवाजी में हुआ है। चीन और भारत के संबंधों को लेकर अकसर विशेषज्ञों द्वारा खट्टे-मीठे कयास लगाये जाते रहे हैं। लिहाजा यह तस्वीर अधिक चर्चा में आई।

वर्ष २००२ में जब ग्रुप-२० समिट का आयोजन भारत में किया गया था, तो मेहमान देश होने के नाते भारत के प्रधानमंत्री पहली पंक्ति में खड़े हुए थे। यह संयोग ही है कि तब भी देश में भाजपा-नीत राजग की सरकार थी और आज चौदह साल बाद जब विदेशी जमीन पर किसी भारतीय प्रधानमंत्री को पहली कतार में जगह मिली है, तब भी भाजपा की ही सरकार है। खैर, ग्रुप-२० समिट इस बार भारत के प्रमुख प्रतिद्वंद्वी एवं सीमावर्ती देश चीन में आयोजित हुआ था। चीन में आयोजित इस समिट में भारत को महत्वपूर्ण स्थान देना यह दर्शाता है कि अब चीन खुद भी यह स्वीकार कर चुका है कि उसे भारत की अहमियत को सार्वजनिक मंच पर स्वीकार करना ही होगा।

इसमें कोई शक नहीं है कि विदेश नीति और वैश्विक संबधों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शपथ ग्रहण के दिन से ही अथक प्रयासरत हैं। इस बाबत उन्होंने तमाम यात्राएं भी की हैं। लेकिन इन सबमें बड़ी बात यह है कि वे अपनी समस्त यात्राएं भारत को केंद्र में रखकर करते रहे हैं। वे जब अमेरिका जाते हैं तो भी भारत को केंद्र में रखते हैं, ब्रिटेन जाते हैं तो भी भारत को केंद्र में रखते हैं या और किसी भी देश में जाते हैं तो भारत को केंद्र में रखकर ही अपनी यात्रा के बिंदु तय करते हैं। विदेशी जमीन पर हजारों की संख्या में भारतीयों से संवाद करने की उनकी नीति भले ही भारत के अंध-विरोधियों को न सुहाती हों, लेकिन हमे यह समझना होगा कि अपने देश के हजारों लोगों को विदेशी जमीन पर एकजुट करके प्रधानमंत्री मोदी यह एहसास दिलाने में कामयाब हुए हैं कि उस देश के लिए भारत एवं भारतीय लोग कितने महत्वपूर्ण हैं। मोदी की यह कार्य प्रणाली न सिर्फ उन्हें वैश्विक नेता के तौर पर स्थापित करती है बल्कि भारत की अहमियत को भी विश्व के समक्ष मजबूती से रखने में कामयाब हुई है। आज अगर चीन मोदी को विश्व के पहले कतार का नेता मानने पर विवश है तो इसके पीछे की मूल वजह यही है कि भारत ने उसको यह एहसास दिला पाने में कामयाबी हासिल की है।

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जी-२० समिट २०१६ में पहली पंक्ति में खड़े प्रधानमंत्री मोदी

गौर करें तो एनएसजी मामले पर चीन ने भारत का समर्थन नहीं किया था ठीक उसी दौरान एमटीसीआर में भारत 35वें देश के रूप में जुड़ गया और भारत का समर्थन शेष 34 देशों ने किया था। गौरतलब है कि चीन इस समूह का सदस्य नहीं है। ऐसे में अगर चीन एमटीसीआर में आता है तो यहाँ भारत का दबाव काम कर सकता है जैसे एनएसजी मामले में चीन ने भारत के खिलाफ दबाव बनाने की कोशिश की थी। चीन को इस बात का भी भान है कि भारत इलेक्ट्रोनिक्स का बड़ा बाजार है और अब भारत का समानांतर समझौता दक्षिणी कोरिया से भी हो चुका है, लिहाजा इस बाजार में भारत के साथ सौहार्दपूर्ण ढंग से जुड़े रहने के लिए उसे भारत की अहमियत को हल्के में नहीं लेना होगा। चीन की नजर इस बात पर भी है कि भारत अमेरिका सहित अन्य देशों से भी अपना संबध व्यापारिक स्तर पर मजबूत करने की दिशा में बढ़ रहा है और खासकर अमेरिका से भारत को तमाम अहम मसलों पर समर्थन भी प्राप्त है। यही वजह रही कि पाक सेना अधिकृत बलूचिस्तान मामले में भारत के स्पष्ट रुख पर भी चीन तटस्थ की भूमिका में नजर आया।

खैर, इतना तो अब लगभग स्पष्ट हो चुका है कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत वैश्विक पटल पर अपनी धाक पुख्ता तौर पर जमा रहा है। दुनिया भारत की कायल हो रही है। दुनिया के विकसित एवं विकासशील देश अब खुले तौर पर भारत को आर्थिक, सामरिक एवं स्वावलंबी ताकत के रूप में स्वीकार करने लगे हैं। कहीं न कहीं इस बदलाव के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उस अथक मेहनत को श्रेय जाता है जो उन्होंने पिछले लगभग सवा दो वर्षों में की है। भारत पुन: अपने उसी वैभव की ओर लौट रहा है जिसके सन्दर्भ में कभी प्रधानमंत्री ने कहा था कि हम न आँख झुकाकर बात करेंगे और न आँख उठाकर बात करेंगे, हम आँख मिलाकर बात करेंगे।

(लेखक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च फेलो हैं।)