नोटबंदी के बाद से लगातार मज़बूत हुई है भारतीय अर्थव्यवस्था

नोटबंदी का अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक असर पड़ने, कैड में बेहतरी आने, केंद्रीय बैंक द्वारा सुधारात्मक कदम उठाने, निर्यात में वृद्धि आने, डॉलर की तुलना में रूपये में मजबूती आने, जीडीपी के बेहतर होने के आसार और जीएसटी के लागू होने आदि से अर्थव्यवस्था में गुलाबीपन आने की संभावना बढ़ गई है। मौजूदा समय में लगातार मजबूत होती मोदी सरकार अर्थव्यवस्था के हर मोर्चे पर सकारात्मक निर्णय ले रही है, जिसके अपेक्षित परिणाम बहुत ही जल्द दृष्टिगोचर होंगे, ऐसे कयास लगाये जा सकते हैं।

नोटबंदी के पहले बैंकिंग प्रणाली में नकदी की अधिकता न्यून थी, लेकिन बड़े मूल्य वर्ग के करेंसी को चलन से बाहर करने के बाद नकदी में असामान्य वृद्धि हुई। इसमें बढ़ोतरी का मुख्य कारण विमुद्रीकरण की अवधि में आम लोगों द्वारा बैंकों में नकदी जमा करना था। 11 नवंबर 2016 से 3 मार्च 2017 के दौरान बैंकों के समग्र जमा में 4.27 लाख करोड़ रूपये की बढ़ोत्तरी हुई। हालाँकि, नकदी की निकासी पर लगी बंदिश को सरकार ने 13 मार्च 2017 से पूरी तरह से हटा लिया था। फिर भी, जनवरी 2017 से मार्च 2017 के बीच औसत निकासी के स्तर में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई। इस गिरावट का कारण लगभग 1.7 लाख करोड़ रूपये जो सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का तकरीबन 1.1 प्रतिशत है, का बैंकिंग प्रणाली में प्रविष्ट होना है। इन आंकड़ों में विमुद्रीकरण के बाद अर्थव्यवस्था में आई मजबूती साफ तौर पर प्रतिबिंबित हो रही है।  

केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) ने 28 फरवरी 2017 को वित्त वर्ष 2017 की तीसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 7 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया था, जबकि अधिकांश अर्थशास्त्री विमुद्रीकरण के कारण तीसरी तिमाही में जीडीपी में उल्लेखनीय कमी आने की बात कह रहे थे। सीएसओ के मुताबिक वित्त वर्ष 2016 के 7.9 प्रतिशत के मुक़ाबले वित्त वर्ष 2017 में जीडीपी थोड़ी कमी के साथ 7.1 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ेगी। सीएसओ ने यह भी कहा कि वित्त वर्ष 2011—12 के स्थिर मूल्य पर वास्तविक जीडीपी वित्त वर्ष 2016—17 में 121.65 लाख करोड़ रुपये पर कायम रहने का अनुमान है।

वित्त वर्ष 2016-17 की तीसरी तिमाही में चालू खाते का घाटा (कैड) 7.9 बिलियन यूएस  डॉलर के स्तर पर पहुँच गया, जो जीडीपी का करीब 1.4 प्रतिशत है। कैड में यह बढ़ोत्तरी अनुमान से कम है, जिसके कारण रूपये में मजबूती आई है। देखा जाये तो सेवा क्षेत्र के निर्यात में तेजी से कैड की बेहतरी में मदद मिली है। सेवा क्षेत्र के निर्यात में वृद्धि का कारण निवल यात्रा अधिशेष में बढ़ोतरी होना है। वित्त वर्ष 2016-17 की तीसरी तिमाही में निवल यात्रा में 1469 मिलियन यूएस डॉलर की वृद्धिशील वृद्धि दर्ज की गई, जो वित्त वर्ष 2000-01 के बाद की सबसे अधिक बढ़ोतरी थी। ऐसा होने का कारण इस अवधि में भारत की यात्रा करने वाले लोगों द्वारा बहुतायात मात्रा में डॉलर खरीदना था, जो इस अवधि की यात्रा प्राप्तियों में दृष्टिगोचर हो रहा है।

फरवरी 2017 में निर्यात में वृद्धि 17.50 प्रतिशत हुई, जो पिछले 60 महीनों में सबसे अधिक है। इस बढ़ोतरी का कारण आधार प्रभाव एवं इंजीनियरिंग उत्पादों के निर्यात में इजाफा होना था। इंजीनियरिंग उत्पादों के निर्यात में फरवरी 2017 में 47.3 प्रतिशत का इजाफा हुआ, जबकि जनवरी 2017 में इसमें महज 11.9 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी। फरवरी’ 2017 में इंजीनियरिंग उत्पादों के निर्यात का प्रतिशत कुल निर्यात प्रतिशत का 10.2 था। इंजीनियरिंग उत्पादों के तहत जिन उत्पादों में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है, उनमें स्टील बार/रॉड एवं फेरस अलॉय हैं। जनवरी 2017 में इन उत्पादों में 159 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी। दरअसल, “टाटा स्टील” ने पर्यावरण मित्र उत्पाद “टाटा फेरोशॉट्स” का निर्यात यूरोपीय देशों, एशिया के दूरस्थ पूर्वी, दक्षिण-पूर्वी एवं मध्य पूर्वी देशों एवं अमेरिका में करना शुरू किया है। विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की एक रिपोर्ट के मुताबिक इसी अवधि में अमेरिका में 5.61 प्रतिशत, यूरोप में 1.68 प्रतिशत और जापान में 10.87 प्रतिशत की निर्यात में वृद्धि दर्ज की गई, जबकि दिसंबर’ 2016 में चीन में 6.20 प्रतिशत की नकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई थी।  

नये वित्त वर्ष 2017-18 के आगाज के साथ ही रूपये में डॉलर के मुक़ाबले मजबूती आ गई, जिसके पहली छमाही तक यथास्थिति बने रहने की संभावना है। रूपये में मजबूती आने के कारणों में अर्थव्यवस्था में सुधार आना, केंद्रीय बैंक द्वारा उठाया गया सुधारात्मक कदम, उत्तरप्रदेश में भाजपा की जबर्दस्त जीत, वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) बिल के राह के रोड़े साफ होना आदि हैं।

अब जीएसटी के 1 जुलाई 2017 से लागू होने में कोई अड़चन शेष नहीं रही है। यह एक अप्रत्यक्ष कर प्रणाली है, जो मूल्यवर्धित कर (वैट) से अलग है। वैट सिर्फ वस्तुओं पर लगता है, जबकि जीएसटी वस्तुओं एवं सेवाओं दोनों पर लगेगा। जीएसटी को केंद्र एवं राज्य दोनों स्तरों पर लगाने का प्रस्ताव है। जीएसटी जितना अधिक होगा, उतना ही ज्यादा फायदा केंद्र व राज्य सरकारों को मिलेगा, लेकिन इस क्रम में सरकार उपभोक्ताओं के हितों का ख्याल रखने के लिये प्रतिबद्ध है।

जीएसटी एक्साइज ड्यूटी, सर्विस टैक्स, वैट, एंट्री टैक्स आदि की जगह लागू किया जाने वाला है। जीएसटी लागू होने के बाद वस्तुओं और सेवाओं पर अलग-अलग लगने वाले सभी कर एक ही कर “जीएसटी” में समाहित हो जायेंगे। जीएसटी के तहत एक टैक्स लगने की वजह से उत्पादों के दाम घटेंगे और आम उपभोक्ताओं को फायदा होगा। जीएसटी लागू होने से सरकार की टैक्स वसूली की लागत भी घटेगी। इसके लागू होने से उपभोक्ताओं को देश भर में किसी भी सामान या सेवा का एक शुल्क अदा करना होगा। इतना ही नहीं, सेवा के उपभोग के मामले में भी ऐसा ही होगा।

जाहिर है, इससे कर चोरी या कर विवाद के मामले कम होंगे। वर्तमान समय में कर बचाने के लिए कारोबारी कर कम रहने वाले राज्यों से सामान खरीदकर अधिक कर आरोपित करने वाले राज्यों में उन्हें बेचकर कर की चोरी करते हैं। इस तरह की गलत परंपरा पर जीएसटी के आने से लगाम लगेगा। इससे पूरे देश में वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें लगभग एक हो जायेंगी। विनिर्माण लागत में भी कमी आयेगी, जिससे उपभोक्ताओं के लिए सामान खरीदना सस्ता होगा। इस तरह, अप्रत्यक्ष कर की इस नई व्यवस्था से अर्थव्यवस्था को अरबों-खरबों रुपये का फायदा होने का अनुमान है, जिससे सरकार रोजगार सृजन, आधारभूत संरचना का विकास, औद्योगिक विकास को गति, अर्थव्यवस्था को मजबूत आदि करने में समर्थ हो सकेगी; साथ ही, इससे एकीकृत कर बाजार का लक्ष्य, कर संग्रह में सुधार, कर के दायरे में विस्तार एवं देश के विकास का मार्ग भी प्रशस्त हो सकेगा। कर के ऊपर कर नहीं लगने से मुद्रास्फीति भी काबू में रहेगी।

कहा जा सकता है कि विमुद्रीकरण का अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक असर पड़ने, कैड में बेहतरी आने, केंद्रीय बैंक द्वारा सुधारात्मक कदम उठाने, निर्यात में उछाल, डॉलर की तुलना में रूपये में मजबूती आने, जीडीपी के बेहतर होने के आसार और जीएसटी के लागू होने आदि से अर्थव्यवस्था में गुलाबीपन आने की संभावना बढ़ गई है। मौजूदा समय में लगातार मजबूत होती मोदी सरकार अर्थव्यवस्था के हर मोर्चे पर सकारात्मक निर्णय ले रही है, जिसके अपेक्षित परिणाम बहुत ही जल्द दृष्टिगोचर होंगे, ऐसे कयास लगाये जा सकते हैं।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र, मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में मुख्य प्रबंधक हैं। स्तंभकार हैं। ये विचार उनके निजी हैं।)