रूस और अमेरिका दोनों को साथ-साथ लेकर बढ़ती भारतीय विदेश नीति

भारतीय विदेश नीति के समक्ष लम्बे समय से यह एक यक्ष-प्रश्न बना हुआ था कि रूस और अमेरिका में से भारत किसके साथ बढ़े। ये दोनों देश महाशक्ति और दोनों से संबंधों का बेहतर होना आवश्यक लेकिन इनकी आपसी प्रतिद्वंद्विता के कारण एक से नजदीकी रखने पर दूसरे के दूर होने का संकट संभावना भी प्रबल हो जाती थी। लेकिन, मोदी सरकार ने अपनी सूझबूझ और दूरदर्शिता से पूरें विदेशनीति के जरिये इन दोनों देशों के साथ देश के संबंधों को संतुलन के साथ मजबूत कर इस यख-प्रश्न का सार्थक समाधान प्रस्तुत किया है। इस बात को अच्छे-से समझने के लिए हमें कुछ तथ्यों पर दृष्टि डालनी होगी। सबसे पहले हम बात रूस संग भारत की संबंधों और इनसे जुडी कुछ ताज़ा घटनाओं की करते हैं।

गौरतलब है कि पिछले दिनों गोवा में आयोजित 8वें ब्रिक्स शिखर सम्मलेन में शिरकत करने पहुंचे रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन सम्मेलन से पहले भारत और रूस के बीच एक महत्वपूर्ण द्विपक्षीय वार्ता में शामिल हुए। इस वार्ता का मुख्य उद्द्येश्य आपसी सहयोग और दोनों राष्ट्रों के बीच मित्रवत संबंध को और प्रगाढ़ बनाना था। इसी के तहत दोनों देशों के बीच 16 समझौतों पर भी हस्ताक्षर हुए, जिनमें सबसे अहम 40 हज़ार करोड़ रूपए का रक्षा सौदा रहा। भारत और रूस एक दूसरे के पुराने सहयोगी हैं और वर्तमान में दोनों राष्ट्रों के संबंध एक नए युग की ओर अग्रसर हैं।

बीते कुछ समय से देश में यह अटकलें लगनी शुरू हो गयीं थीं कि अमेरिका से नजदीकियां बढ़ने के कारण कहीं हम रूस से तो दूर नहीं हो रहें हैं ? लेकिन अब यह साबित हो गया है कि वर्तमान में भारत अपने सबसे सफल कूटनीतिक दौर से गुजर रहा है। गौर करें तो एक तरफ भारत ने जहां रूस से एस-400 एयर डिफेन्स सिस्टम आदि के तमाम रक्षा समझौते किए तो वहीं उसके कुछ रोज बाद ही अत्याधुनिक होवित्जर तोपों की खरीद के लिए अमेरिका से भी समझौता कर लिया। इस तरह भारत इन दोनों प्रतिद्वंद्वी राष्ट्रों से अपने संबंधों को बड़े ही संतुलित ढंग से लेकर बढ़ रहा है और दोनों को साधे हुए है।

भारत और रूस के बीच हुए इस रक्षा समझौते में सबसे मुख्य एस-400 ट्राइंफ मिसाइल सिस्टम है, जिसे दुनियाभर में सबसे अत्याधुनिक एयर डिफेन्स सिस्टम माना जाता है। यह किसी भी ड्रोन, मिसाइल और जेट विमान को 120-400 किलोमीटर दूर तक के दायरे में मार गिराने में सक्षम है। एस-400 मिसाइल एक साथ दुश्मन के 36 मिसाइलों-विमानों को मार गिराने में सक्षम है। इसके अतिरिक्त भारत और रूस के बीच 4 युद्धपोत और 200 कोमोव हेलिकॉप्टर पर भी करार हुआ है।

उल्लेखनीय होगा कि इन तमाम समझौतों की पूर्ति के लिए सरकार ने मेक इन इंडिया पर भी विशेष बल दिया है। उदाहरण के लिए 200 कोमोव हेलिकॉप्टर की डील में 40 हेलिकॉप्टरों की पूर्ति रूस करेगा जबकि शेष 160 हेलिकॉप्टरों का निर्माण भारत में ही मेक इन इंडिया के तहत किया जायेगा। उसी तरह 4 में से 2 युद्धपोतों का निर्माण कार्य देश में ही होगा। यह जगजाहिर है कि रूस भारत का पारंपरिक रक्षा सहयोगी रहा है और यह समझौता भी इस बात का जीता-जागता प्रमाण है।

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बहरहाल, देश की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण रक्षा खरीद है, वहीं इस महत्वपूर्ण रक्षा डील से देश की सामरिक शक्ति में भी अभूतपूर्व वृद्धि होगी। इस सौदे से देश की थलसेना, वायुसेना और नौसेना तीनों को ही महत्वपूर्ण और ज़रूरी ताकत मिलेगी। खैर, भारत के लिए बिना एमटीसीआर (मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम) ग्रुप में शामिल हुए एस-400 मिसाइल सिस्टम पाना नामुमकिन था। क्योंकि एमटीसीआर की गाइडलाइन्स के अनुसार कोई भी सदस्य देश किसी बाहरी देश को 300 किलोमीटर से अधिक मारक क्षमता वाली मिसाइल नहीं बेच सकता है और न ही उस देश के साथ इसके निर्माण पर भी विचार कर सकता है। ज्ञात हो कि प्रधानमंत्री मोदी की दूरदर्शी कूटनीति और एमटीसीआर जैसे मुद्दों पर सक्रियता के कारण ही भारत को सफलतापूर्वक इस ग्रुप में स्थान मिला है।

रूस के बाद अब अगर एक नज़र रूस की तुलना में भारत के नए सहयोगी अमेरिका की करें तो बीते कुछ समय से देश में यह अटकलें लगनी शुरू हो गयीं थीं कि अमेरिका से नजदीकियां बढ़ने के कारण कहीं हम रूस से तो दूर नहीं हो रहें हैं ? लेकिन अब यह साबित हो गया है कि वर्तमान में भारत अपने सबसे सफल कूटनीतिक दौर से गुजर रहा है। गौर करें तो एक तरफ भारत ने जहां रूस से उपर्युक्त तमाम रक्षा समझौते किए तो वहीं उसके कुछ रोज बाद ही  अत्याधुनिक होवित्जर तोपों की खरीद के लिए अमेरिका से भी समझौता कर लिया। इस तरह भारत इन दोनों प्रतिद्वंद्वी राष्ट्रों से अपने संबंधों को बड़े ही संतुलित ढंग से लेकर बढ़ रहा है और दोनों को साधे हुए है। इस प्रकार एक तरफ अमेरिका से प्रगाढ़ता और दूसरी तरफ रूस से नजदीकियां इस बात की तस्दीक करती हैं कि मोदी सरकार की कूटनीति एक साथ विश्व के इन दोनों महाशक्तियों को साधने में सफल रही है।

(लेखक पत्रकारिता के छात्र हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)