रिजर्व बैंक द्वारा रेपो दर में वृद्धि से महँगाई में आएगी कमी

रेपो दर में वृद्धि से महँगाई कम होती है, इसलिए, महँगाई को सहनशीलता सीमा के अंदर लाने के लिये रिजर्व बैंक को ताजा मौद्रिक समीक्षा में भी रेपो दर में इजाफ़ा करना पड़ा। रिजर्व बैंक और सरकार फिलवक्त मंहगाई को नियंत्रित करने की नीति पर चल रहे हैं, क्योंकि लंबी अवधि में इससे विकास दर में तेज वृद्धि हो सकती है।

हँगाई को नियंत्रित करने के लिए केंद्रीय बैंक ने रेपो दर में फिर इजाफा किया है, क्योंकि इसमें बढ़ोतरी से ऋण दर में इजाफा होता है,  लेकिन महंगाई में कमी आने की संभावना बढ़ जाती है। रेपो दर में वृद्धि से बैंक महंगी दर पर कर्ज देते हैं, जिससे लोगों के पास पैसों की कमी हो जाती है। कम आय और उत्पादों की ज्यादा कीमत होने की वजह से मांग में कमी आती है और जब किसी उत्पाद की मांग में कमी आती है तो उसकी कीमत में भी कमी आ जाती है। 

सात दिसंबर की मौद्रिक समीक्षा में रिजर्व बैंक ने रेपो दर में 0.35 प्रतिशत की बढ़ोतरी की, जिससे रेपो दर 5.90 से बढ़कर 6.25 प्रतिशत हो गई। महंगाई को नियंत्रित करने के लिए केंद्रीय बैंक मई 2022 के बाद रेपो दर में 2.25 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर चुकी है।  

इस कवायद से उपभोक्ता मूल्य पर आधारित खुदरा महंगाई दर (सीपीआई) अक्तूबर महीने में कम होकर 6.77 प्रतिशत हो गई, जो सितंबर महीने में 7.41 प्रतिशत थी। पुनः नवंबर महीने  में यह कम होकर 5.88 प्रतिशत हो गई, जो विगत 11 महीनों में सबसे निचला स्तर है। खुदरा महंगाई में कमी मुख्य रूप से सब्जियों और फलों की कीमतों में नरमी आने की वजह से आई है। हालांकि, अभी भी महंगाई की राह में अनेक मुश्किलें बरकरार हैं। 

रिजर्व बैंक का मानना है कि वित्त वर्ष 2023 में खुदरा महंगाई 6.7 प्रतिशत रह सकती है। केंद्रीय बैंक इसे 4 प्रतिशत के स्तर पर लाना चाहता है। ग्रामीण क्षेत्र में माँग में कुछ सुधार आया है, लेकिन इसमें और भी सुधार लाने की जरूरत है।  

महँगाई के बावजूद ऋण दर में उल्लेखनीय तेजी आने की वजह से अर्थव्यवस्था बेहतर स्थिति में है, अन्यथा जीडीपी वृद्धि की रफ्तार कम होती। केंद्रीय बैंक के अनुसार 18 नवंबर, 2022 तक बैंकों द्वारा दिया जाने वाला ऋण 17.2 प्रतिशत से बढ़कर 129.48 लाख करोड़ रुपये हो गया, जबकि 4 नवंबर को ऋण वृद्धि दर 17 प्रतिशत थी।    

उच्च महंगाई दर के लिए अंतर्राष्ट्रीय कारण ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। भू-राजनैतिक संकट का अभी भी समाधान निकलता नहीं दिख रहा है। रूस और यूक्रेन अभी भी अपने-अपने ईगो पर अड़े हुए हैं। इस वजह से वैश्विक स्तर पर महंगाई बढ़ रही है। 

चूँकि, रेपो दर में बढ़ोतरी से महँगाई कम होती है, इसलिए, महँगाई को सहनशीलता सीमा के अंदर लाने के लिये रिजर्व बैंक को ताजा मौद्रिक समीक्षा में भी रेपो दर में इजाफ़ा करना पड़ा। रिजर्व बैंक और सरकार फिलवक्त मंहगाई को नियंत्रित करने की नीति पर चल रहे हैं, क्योंकि लंबी अवधि में इससे विकास दर में तेज वृद्धि हो सकती है। 

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)