अगस्ता-वेस्टलैंड घोटाले में ‘परिवार’ के ख़िलाफ मिले सबूत, सवालों के घेरे में नेहरू-गांधी परिवार

कांग्रेस-नीत  संप्रग-1 सरकार के दौरान हुए वीवीआईपी हेलीकॉप्टरों की खरीद से सम्बंधित अगस्ता-वेस्टलैंड घोटाले में पिछले दिनों तत्कालीन वायुसेना प्रमुख एस के त्यागी की गिरफ्तारी के बाद अब फिर एक नया मोड़ आ गया है। खबरों के अनुसार जांच एजेंसियों को मिले ताज़ा साक्ष्यों में इस घोटाले में किसी  अज्ञात ‘परिवार’ की मुख्य भूमिका होने की बात सामने आ रही है। खबरों की मानें तो 12 वीवीआईपी हेलीकॉप्टरों की खरीद में दस प्रतिशत की दलाली तय हुई थी, जिसमें कि पांच प्रतिशत ‘परिवार’ के लिए थी। इस तरह ५६२० लाख यूरो की इस पूरी डील में से पांच प्रतिशत के हिसाब से ‘परिवार’ के हिस्से में २८० लाख यूरों यानी लगभग 200 करोड़ रूपये गये थे। मामले की जांच से जुड़े किसी वरिष्ठ अधिकारी द्वारा यह बताने की बात भी सामने आयी है कि दलाली की रक़म दो दलालों गुड्डो हस्के और क्रिश्चियन मिशेल द्वारा अज्ञात ‘परिवार’ के पास भेजी गयी थी। 

पहले सिग्नोरा गांधी जैसा नाम और अब ‘परिवार’ का जिक्र आना दिखाता है कि अगस्ता-वेस्टलैंड घोटाला मामूली दलालों का खेल भर नहीं है, इसकी कालिख में बड़े-बड़े लोगों के हाथ भी काले होने की पूरी गुंजाइश है। सीधे शब्दों में समझें तो इस घोटाले के दौरान मौज़ूद केंद्र सरकार में भी एक ‘परिवार’ का हस्तक्षेप था और अब इस घोटाले में भी किसी ‘परिवार’ की संलिप्तता की बात सामने आ रही है, ऐसे में इन दोनों परिवारों को एक ही मानने का संदेह होना गलत नहीं होगा। अगस्ता-वेस्टलैंड घोटाले में शक की सुई को कांग्रेस के नेहरू-गांधी परिवार की तरफ मुड़ने के लिए इतनी वज़हें पर्याप्त हैं।

हालांकि यह कौन-सा, कहाँ का और कैसा परिवार था, इस सम्बन्ध में अभी किसी तरह की कोई जानकारी सामने नहीं आयी है, लेकिन इस घोटाले में आने वाले ‘परिवार’ के जिक्र के सम्बन्ध में शक की सुइयां अनेक कारणों से सबसे पहले कांग्रेस के सर्वेसर्वा नेहरू-गांधी परिवार की तरफ ही जा रही हैं। जानी भी चाहिए। क्योंकि, पहली चीज कि तब कांग्रेस सत्ता में थी और मनमोहन सिंह  प्रधानमंत्री थे, जिनका नियंत्रण संप्रग अध्यक्षा सोनिया गांधी यानी नेहरु-गांधी ‘परिवार’ के हाथ में था। मनमोहन सिंह के अनेक निर्णयों में सोनिया गांधी के हस्तक्षेप की बात भी अब खुले तौर पर सामने आ चुकी है, जिसने इस मान्यता को और दृढ कर दिया है कि मनमोहन सिंह कहने भर के लिए प्रधानमंत्री थे, सत्ता का संचालन तो सोनिया ही कर रही थीं।

दूसरी बात कि अगस्ता-वेस्टलैंड मामले में ही कुछ समय पहले प्राप्त साक्ष्यों में किसी ‘सिग्नोरा गांधी’ तथा तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का नाम भी सामने आ चुका है। तब भी सोनिया गांधी पर काफी सवाल उठे थे, जिनपर कांग्रेस ने कोई ठोस जवाब देने की बजाय बिना बात खूब हंगामा किया था। खैर, पहले ‘सिग्नोरा गांधी’ नाम और अब ‘परिवार’ का जिक्र आना दिखाता है कि अगस्ता-वेस्टलैंड घोटाला मामूली दलालों का खेल भर नहीं है, तत्कालीन सरकार में हस्तक्षेप की ताक़त रखने वाले बड़े-बड़े लोगों के हाथ भी इसकी कालिख में पुते होने की पूरी गुंजाइश है। सीधे शब्दों में समझें तो इस घोटाले के दौरान मौज़ूद केंद्र सरकार में भी एक ‘परिवार’ का हस्तक्षेप था और अब इस घोटाले में भी किसी ‘परिवार’ की संलिप्तता की बात सामने आयी है, ऐसे में इन दोनों परिवारों को एक ही मानने का संदेह करना कत्तई गलत नहीं होगा। अगस्ता-वेस्टलैंड घोटाले में शक की सुई को कांग्रेस के नेहरु-गांधी परिवार की तरफ मुड़ने के लिए इतनी वज़हें पर्याप्त हैं।

बहरहाल, जांच एजेंसियां अब उस अज्ञात ‘परिवार’ की दिशा में अपनी जांच को बढ़ा रही हैं तथा परिवार तक पहुंचाई गई रक़म का विवरण प्राप्त करने की कोशिश कर रही हैं। अगर इस दिशा में उन्हें अपेक्षित सफलता मिलती है, तो अगस्ता-वेस्टलैंड घोटाले में सामने आये इस ‘परिवार’ के रहस्य का पर्दाफाश होने की संभावना प्रबल होगी। ये सब जब होगा तब होगा, मगर फिलहाल इतना कह सकते हैं कि अगस्ता-वेस्टलैंड घोटाले के मामले में पहले से ही घिरी रही कांग्रेस के लिए ये इस मामले से निकला ‘परिवार’ नामक यह जिन्न और मुश्किलें ही पैदा करेगा। यह सनद रहे कि जो बोएंगे, काटने को भी वही मिलेगा।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)