देशहित में जरूरी है एनआरसी का पूरे देश में लागू होना

एनआरसी के इस विपक्षी विरोध के पीछे कोई सैद्धांतिक आधार नहीं है, बल्कि यह विरोध केवल और केवल राजनीतिक कारणों से प्रेरित होकर किया जा रहा है। मुस्लिम समुदाय के मन में भाजपा का काल्पनिक भय भरने की जो राजनीति विपक्षी दल करते आए हैं, उसीको  वे एनआरसी के मुद्दे के जरिये भी फिर हवा देने की कोशिश कर रहे हैं। इसके जरिये मुस्लिमों का तुष्टिकरण करना ही इनका मकसद है।

बीते 20 नवम्बर को केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में एनआरसी पर एक सवाल का जवाब देते हुए कहा कि एनआरसी के द्वारा नागरिकता की पहचान सुनिश्चित की जाएगी और इसे पूरे देश में लागू किया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी धर्म विशेष के लोगों को इसके कारण डरने की जरूरत नहीं है।

एक अन्य प्रश्न का उत्तर देते हुए गृहमंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि नागरिकता संशोधन विधेयक लाकर हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और क्रिश्चियन धर्म के शरणार्थी जो धार्मिक प्रताड़ना के कारण बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हैं, उनको देश की नागरिकता दी जाएगी।

गृहमंत्री के इस वक्तव्य के बाद से ही विपक्षी दलों सहित तथाकथित बुद्धिजीवियों के गिरोह में भी बेचैनी दिख रही है। कांग्रेस से लेकर ममता बनर्जी तक जहां तमाम तरफ से पूरे देश में एनआरसी लागू करने को लेकर विरोध की आवाज सुनाई दे रही है, वहीं वामपंथी विचारधारा से ग्रस्त वेबसाइटों पर एनआरसी के दुष्प्रभावों पर लेख लिखे जाने लगे हैं।  

केंद्र की हर बात का आँख बंदकर के विरोध करने वालों में अग्रणी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एनआरसी का विरोध करते हुए कहा कि बंगाल में किसीकी नागरिकता खत्म नहीं होने दी जाएगी। तो क्या ममता के इस बयान से यह समझा जाए कि बंगाल में जो अवैध ढंग से रह रहे लोग होंगे उन्हें भी वे बाहर नहीं होने देंगी।

माकपा के सीताराम येचुरी ने सरकार पर एनआरसी की प्रक्रिया के द्वारा देश में भय का माहौल पैदा करने का आरोप लगाया है। लोकसभा में कांग्रेस के सदस्य अधीर रंजन चौधरी ने इसका विरोध करते हुए आरोप लगाया कि भाजपा सरकार समाज को सांप्रदायिक आधार पर बांटने की कोशिश कर रही है तो वहीं कोलकाता में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने सड़क पर उतरकर इसका विरोध किया।

इन सबके विरोध का मूल स्वर यही है कि सरकार एनआरसी और नागरिकता संशोधक विधेयक के द्वारा देश से अल्पसंख्यकों यानी कि मुसलमानों को देश से बाहर करना चाहती है जबकि गृहमंत्री स्पष्ट कर चुके हैं कि इससे किसी भी धर्म विशेष के लोगों को डरने की आवश्यकता नहीं है।  

विचार करें तो एनआरसी के इस विपक्षी विरोध के पीछे कोई सैद्धांतिक या व्यावहारिक आधार नहीं है, बल्कि यह विरोध केवल और केवल राजनीतिक कारणों से प्रेरित होकर किया जा रहा है। मुस्लिम समुदाय के मन में भाजपा का काल्पनिक भय भरने की जो राजनीति विपक्षी दल करते आए हैं, उसीको  वे एनआरसी के मुद्दे के जरिये भी फिर हवा देने की कोशिश कर रहे हैं।

इसके जरिये मुस्लिमों का तुष्टिकरण करना ही इनका मकसद है। इन्हें न तो एनआरसी और नागरिकता संशोधन विधेयक की प्रक्रिया और प्रावधानों से कोई मतलब है, न देश के नागरिकों और उनके हितों से कोई सरोकार है और न ही अवैध घुसपैठियों के देश में जमे रहने को लेकर कोई चिंता ही है, इनका केवल एक उद्देश्य है कि किसी भी कीमत पर अपने वोट बैंक को भरा जाए। इस एकमात्र उद्देश्य से प्रेरित होकर ये एनआरसी जैसी जरूरी चीज का अंधविरोध करने में जुटे हैं जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है।

एनआरसी का पूरे देश में लागू होना कितना आवश्यक है, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि अमित शाह के बयान के बाद से ही देश से तकरीबन तीन सौ अवैध निवासी बांग्लादेश की सीमा में घुसते हुए पकड़े जा चुके हैं। उनका कहना है कि वे वर्षों से भारत में अवैध ढंग से रह रहे थे, लेकिन अब पूरे देश में एनआरसी लागू किए जाने के ऐलान के बाद बांग्लादेश लौट रहे हैं। जाहिर है, देश में अवैध नागरिकों की संख्या बहुत अधिक होगी जिनकी पहचान कर उन्हें बाहर किया जाना आवश्यक है। आखिर इस देश के संसाधनों पर पहला हक़ यहाँ के नागरिकों का है।

साथ ही नागरिकता संशोधन विधेयक के द्वारा अफगानिस्तान, पाकिस्तान जैसे देशों में उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को यहाँ शरण व नागरिकता देना भारतीय संस्कृति के ‘शरणागतवत्सल’ स्वरूप का अनुपालन होगा। अतः सरकार द्वारा इन दोनों कार्यों को जितना शीघ्र किया जाए उतना ही बेहतर है। जनता इनका महत्व समझ रही है और विरोधियों को वही इसका जवाब देगी।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)