क्रियायोग से सकारात्मक परिवर्तन संभव

 भूपेंद्र यादव

 वर्ष 1945 में जब द्वितीय विश्व युद्ध लड़ा जा रहा था, तब प्रत्येक बौद्धिक और विचारशील मन में भौतिकतावादी दृष्टि पर आधारित जीवन13435519_10157158245055165_2691144384011622312_n की समस्याएं चिंतित करनेवाली थी। यूरोपीय पुनर्जागरण धार्मिक मतांधता और दुराग्रह को परास्त करते हुए धर्मनिरपेक्ष अथवा धर्म विरोधी हो चला था। विचारशीलता या विवेकशीलता का वैज्ञानिक मन मानवतावादी एवं लोकतांत्रिक मूल्यों का प्रशसंक था, परंतु इसे वास्तविक रूप में चरितार्थ करना मुश्किल जान पड़ता था।युद्ध, हिंसा, भेद-भाव, नफरत, आधिपत्य किसी भी देश, संस्कृति, समुदाय को स्वयं को सुरक्षित रखने के न्यायोचित तरीके जान पड़ते थे। ऐसे समय में एक भारतीय संन्यासी की आत्मकथा का प्रकाशन हुआ, जो पूर्व की धरती से योग एवं अध्यात्म की संपदा लेकर दैवीय शक्तियों के प्रसार हेतु पश्चिम  गये थे। इस आत्मकथा का नाम ‘ऑटोबायोग्राफी ऑफ ए योगी’ है, जिसे हिंदी भाषा में ‘योगीकथामृत’ के रूप में जाना जाता है। विश्व की 26 भाषाओं में अनुदित इस पुस्तक को बौद्धिक रूप से जाग्रत वर्ग ने सकारात्मक ढंग से प्रभावित करनेवाली श्रेष्ठ पुस्तक माना है।भारतीय अध्यात्म एवं योग के पूरी दुनिया में प्रसार हेतु योगी कथामृत का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इसी पुस्तक और इसके रचनाकार परमहंस योगाननंद जी के जीवन पर आधारित डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘अवेक’ अंगरेजी में बनायी गयी है, जिसमें योगी के जीवन की घटनाआयों की प्रस्तुति के साथ उनके वीडियो, उनके जीवन व दर्शन को साक्षात जानने, अनुभव करनेवाले और प्रभावित हानेवाले महानुभावायों के इंटरव्यू है।

इस फिल्म को 17 जून, 2016 को भारत में रिलीज किया गया है। ऐसे समय में जब संपूर्ण विश्व अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने जा रहा है, योग को लोकप्रिय और सर्वसुलभ बनाने में परमहंस योगाननंद जी के जीवन का स्मरण प्रासंगिक है। यह फिल्म बालक मुकंद के बचपन से जाग्रत आध्यात्मिक पुकार के साथ परमहंस योगानंद बनने की कहानी भर नहीं है। योगी की जीवनी के साथ भारतीय योग, इसके अभ्यासियों का परिचय, उन अभ्यासियायों की जीवन दृष्टि और दर्शन का परिचय भी कराती है, जिनकी आध्यात्मिक साधना मनुष्य की चेतना के उच्चतम स्तरों को  प्राप्त कर प्रेम, मानवता एवं धर्मसमन्वय का संदेश देकर गयी। ‘अवेक’ यानी अविधा या अज्ञान आधारित सुषुप्तावस्था से जागने, अचेत या अवचेतन से निकल कर सचेत होने का संकेत करता है। परमहंस योगानंद ने अपनी गुरु के आशीर्वाद और मार्गदर्शन में ‘क्रियायोग’  का पथ पूरी दुनिया के लिए प्रशस्त किया, जिसमें सक्रिय होकर अपनी आंतरिक ऊर्जा को जगाया जाता है और इस आंतरिक ऊर्जा के प्रति सचेत होकर बाह्य विषयों से तारतम्य व संतुलन बनाते हुए परमचेतना, जो अखण्ड अनादि परमात्मा रूप है, उसका दिव्य अनुभव किया जाता है। योगानंद जी का क्रियायोग विज्ञान व अध्यात्म का सुंदर समन्वय करता है। भारतीय योग एवं अध्यात्म को सामान्यजन काफी गहराई का विषय मान लेते हैं।उन्हें लगता है कि यह मार्ग सिर्फ हिमालय की गुफाओं  में रहनेवाले संन्यासियायों का है। विश्व में पूर्व के दर्शन को धार्मिक और रहस्यमय माना जाता रहा है। पश्चिम के विचारप्रधान दर्शन को यह तर्कसंगत नहीं लगता है। वे इसे सामान्य अनुभव से परे संशय से देखते रहे हैं, परंतु क्रियायोग के माध्यम से योगानंद जी ने पश्चिम को उस परम आनंद एवं अनुभव से परिचित कराया, जो सामान्य विचार, अनुभव और तर्कशीलता से परे असीम, अनित्य आनंद व शांति की अवस्था है, जिसके माध्यम से अपने अस्तित्व एवं समस्त सत्ता के अस्तित्व के प्रति जाग्रत होकर अथवा सचेत होकर धर्म के वास्तविक सरोकार मानवता, प्रेम व सत्य के प्रति समाज को जागरूक किया जा सकता है। 

क्रियायायोग के माध्यम से मनुष्य में सकारात्मक परिवर्तन संभव होता है। वह राग-द्वेष आदि विकारों  से मुक्त होकर सद्गुणी बनता है और स्वयं के भीतर दिव्यात्मा का अनुभव करता है। योगानंद जी ने इसे भगवतगीता के भक्तियोग से समझाया है। साथ ही इस भक्तियोग व ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण के अन्य धर्मों के संतजनों एवं आदर्श पुरुष से इसकी साम्यता भी समझायी, जो उनके सच्चे एवं पवित्र मन से जानी गयी धर्म समन्वय की धारणा को प्रकट करता है। योग वर्तमान समाज की आवश्यकता है, क्योंकि मनुष्य अपनी शक्तियों का वास्तविक सदुपयोग कर एक सुंदर समाज और विश्व तभी बना सकता है, जब वह तन व मन से स्वस्थ हो। यदि आप आस्तिक हैं, तो यह आपके इष्ट या आदर्श की उपासना का मार्ग है। यदि नास्तिक हैं, तो सक्षम बन कर समाज के लिए सहयोगी एवं सदुपयोगी होने की राह है। सूचना एवं तकनीकी क्रांति ने पूरे विश्व को आपस में जोड़ दिया है, परंतु जब तक हम बाहरी रूप से निर्भर हैं, लक्ष्यहीनता, विद्वेष, हिंसा, संघर्ष, असफलता, कुंठा, अवसाद जैसी समस्या उभरती रहेगी। ये समस्याएं वैश्विक स्तर से वैयक्तिक स्तर तक है। आज पूरब और पश्चिम में सामाजिक एवं सांस्कृतिक भिन्नता के बावजूद सामाजिक और वैयक्तिक समस्याएं एक जैसी हैं। हम धार्मिक दुराग्रह, धर्म के दुरुपयोग एवं पहचान के संकट से जूझ रहे हैं। हमारी कौन सी इच्छाएं उचित हैं तथा इनमें से कौन सी हमें योग, समर्थ और उपयोगी बना सकती हैं, इसी सोच में आज व्यक्ति तथा समाज दोनो उलझे हुए हैं। इसका उत्तर योग पर आधारित जीवन पद्धति में ढूंढ़ा जा सकता है। परमहंस योगानंद जी की योगी कथामृत पुस्तक के बाद उनके जीवन के मूल्यांकन पर बनी यह फिल्म पश्चिम के समाज के साथ भारत में भी हमारे यौगिक मूल्यों के प्रचार में महत्वपूर्ण है। जिस भौतिकतावाद के संकट से पश्चिमी समाज ग्रसित रहा है, वह संकट अब हमारे समाज के सामने भी आ गया है, इसलिए भौतिकवाद की अनिराशा एवं इंद्रिय तृष्णा की अशांति का निराकरण आध्यात्मिक उन्नयन के द्वारा ही हो सकता है और यह फिल्म इसी दृष्टिकोण को समझाने में मदद करती है।

(लेखक भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हैं, यह लेख प्रभात खबर में २१ जून को प्रकाशित हुआ था)