कॉमनवेल्थ खेल घोटाले में सवालों के घेरे में मनमोहन सिंह

कॉमनवेल्थ घोटाले की वजह से वैश्विक स्तर पर देश की जो जगहँसाई हुई, यह बात किसी से छुपी नहीं है। उस वक्त यह खेल महोत्सव लूट महोत्सव का रूप ले लिया था। कांग्रेस का हर नेता मनमाने ढंग से लूट-खसोट मचाया हुआ था। भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत के चलते  आज़ाद भारत का सबसे बड़ा खेल समारोह देश के सबसे बड़े खेल घोटाले में तब्दील हो गया; परन्तु, तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हर बात की तरह इस पर भी मौन की चादर ओढ़े सोते रहे।

देश में घोटालों के मामले में कीर्तिमान स्थापित कर चुकी कांग्रेस को सत्ता से बेदखल हुए लगभग तीन साल होनें को हैं, लेकिन उसके घोटालों की परत एक–एक कर अब भी उघड़ रही है। यह जगज़ाहिर है कि मनमोहन सिंह के नेतृत्व में चल रही यूपीए सरकार में कोयला, टू जी, आगस्टा तथा कॉमनवेल्थ गेम जैसे बड़े घोटाले हुए थे, जिनमें  कांग्रेस हमेशा से प्रधानमंत्री की भूमिका को खारिज करती रही है; किन्तु अब कॉमनवेल्थ खेलों के घोटाले का जिन्न फिरसे बाहर आ गया है। संसद की लोक लेखा समिति ने उस रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया है, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की भूमिका को लेकर आलोचना की गई है।

रिपोर्ट में कई ऐसे गंभीर आरोप लगायें गए हैं, जो घोटाले में मनमोहन सिंह की भूमिका की तरफ इशारा करते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि पीएमओ ने तत्कालीन खेल मंत्री सुनीत दत्त के ऐतराज़ को दरकिनार करते हुए सुरेश कलमाड़ी को आयोजन समिति का अध्यक्ष बनाया जो भारी गलती थी। रिपोर्ट में पीएमओ द्वारा गलत जानकारी देने पर भी सवाल उठाते हुए कहा गया है कि जनवरी 2005 में खेलों की तैयारी के सिलसिले में हुई मंत्रिमंडल समूह की बैठक के मिनट्स ना बँटने की जिम्मेदारी खेल मंत्रालय की थी। इस प्रकार पीएमओ ने खेल को लेकर चल रही तैयारियों से भी पल्ला झाड़ लिया। रिपोर्ट में जो बातें कहीं गई हैं, वह सिर्फ मनमोहन सिंह की भूमिका नहीं, वरन इस बात को भी दर्शाता है कि राष्ट्रमंडल खेल जैसे वैश्विक विषय पर पीएमओ कितना ढुलमुल रवैया अख्तियार किये हुए था।

बहरहाल, रिपोर्ट में तत्कालीन कैबिनेट सचिवालय को भी आड़े हाथो लेते हुए कहा गया है कि सचिवालय आयोजन से जुड़ी जवाबदेही तय करने में पूरी तरह नाकाम रहा है तथा लगातार सियासी दबाव के आगे घुटने टेकता रहा। गौरतलब है कि यह रिपोर्ट 2010 में तैयार की गई थी, किन्तु कांग्रेस सरकार ने इस रिपोर्ट को ठंढे बस्ते में डाल दिया था ताकि देश की जनता के सामने घोटाले का सच न पहुँच सके। सवाल यह उठता है कि घोटाले के बाद जब मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली पीएसी ने यह रिपोर्ट पेश की थी, तो इसे दरकिनार क्यों किया गया ? उसवक्त भी मनमोहन सिंह की भूमिका को लेकर सवाल उठे थे, जो आजतक कायम हैं। पर, सत्ता का दुरुपयोग करते हुए कांग्रेस ने इस रिपोर्ट को दबा दिया था।

दरअसल मनमोहन सिंह की सरकार ने अपने राज में हुए घोटालों पर पर्दा डालने की हर संभव कोशिश की। लेकिन, हर प्रयास  विफल साबित हुए थे। यह बात पहले भी सामने आ चुकी है कि जो अधिकारी घोटालों से जुडी जांच में लगे हुए थे, उनपर राजनीतिक दबाव बनाने के साथ–साथ प्रलोभन भी दिया गया था। कई वरिष्ठ अधिकारी समेत पूर्व सीएजी विनोद राय इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि कोलगेट तथा राष्ट्रमंडल खेलों में हुए घोटालों से जुड़ी ऑडिट रिपोर्ट में से कुछ नामों को हटाने के लिए यूपीए सरकार के पदाधिकारियों ने कुछ नेताओं को यह जिम्मा दिया था कि वह अधिकारियों पर दबाव बनाएं।

मनमोहन सिंह और सुरेश कलमाड़ी

खैर, कॉमनवेल्थ घोटाले की वजह से वैश्विक स्तर पर देश की जो जगहँसाई हुई, यह बात किसी से छुपी नहीं है। उस वक्त यह खेल महोत्सव लूट महोत्सव का रूप ले लिया था। कांग्रेस का हर नेता मनमाने ढंग से लूट-खसोट मचाया हुआ था। भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत के चलते  आज़ाद भारत का सबसे बड़ा खेल समारोह देश के सबसे बड़े खेल घोटाले में तब्दील हो गया; परन्तु, उसवक्त के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हर बात की तरह इस पर भी मौन की चादर ओढ़े सोते रहे। उसवक्त कैग, सीबीआई से लगाये पीएसी तक ने जब भी प्रधानमंत्री की भूमिका को लेकर सवाल उठाये तो पीएमओ इससे पल्ला झाड़ता रहा, किन्तु यह स्याह सच है कि लगभग हर घोटालों के तार पीएमओ से जुड़े हुए थे। अपने साफगोई का तगमा लिए डॉ मनमोहन सिंह कभी खुद को असहाय तो कभी अनजाना बताकर हर सवालों को टालते गये, किन्तु असल सवाल अब आने वाला है।

लोक लेखा समिति ने रिपोर्ट को स्वीकार करने के साथ–साथ बंद पड़े हुए छह केसों की जांच फिर से करने को कहा है। जो पूर्व प्रधानमंत्री के लिए बड़ी मुश्किलें खड़ी कर सकता है। वहीं कांग्रेस तो वैसे भी घोटालों के भार तले ऐसे दबी हुई है कि जनता उसे सिरे से खारिज कर रही है। अब अगर इन फाइलों में मनमोहन सिंह की भूमिका को लेकर सवाल उठें हैं, तो मनमोहन सिंह समेत कांग्रेस को इनके ठोस जवाब तो देने ही चाहिए।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)