दीपावली के पर्व में छिपे हैं जीवन के अनेक सन्देश

प्रकाश का पर्व दीपावली बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है। इस दिन लोग अपने घर-आंगन को दीपों से सजाते हैं और धन-धान्य की प्राप्ति के लिए देवी लक्ष्मी का पूजन करते हैं। कार्तिक मास की अमावस्या के दिन दीयों का प्रकाश किसी भी व्यक्ति को अमावस्या की काली रात का एहसास नहीं होने देता है। दीयों का पर्व दीवाली सिर्फ एक दिन का त्योहार नहीं है, बल्कि इस त्योहार की एक श्रृंखला है। यह त्योहार दीवाली के दिन से दो दिन पूर्व आरम्भ होकर दो दिन पश्चात समाप्त होता है। इस पर्व की शुरूआत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष त्रयोदशी के दिन से होती है, जिसको धनतेरस कहा जाता है। देवता धन्वंतरि की पूजा की जाती है। इस दिन नए बर्तन, आभूषण इत्यादि खरीदने का रिवाज है। इस दिन घी के दिये जलाकर देवी लक्ष्मी और प्रभु गणेश का आहवान किया जाता है।

दीपावली के दिन देवी लक्ष्मी और सिद्धि-बुद्धिदाता प्रभु गणेश की पूजा साथ-साथ होती है। इसके पीछे ठोस तर्क भी है। चूंकि, लक्ष्मी धन की देवी हैं और गणेश बुद्धि-ज्ञान आदि के देव हैं, ऐसे में इन दोनों के संयुक्त पूजन का सन्देश यही होता है कि धन और ज्ञान दोनों का मानव के लिए महत्व है। इनमें एक न हो तो दुसरे का अधिक महत्व नहीं रह जाता। ये दोनों साथ रहें तो ही समृद्धिकारी सिद्ध हो सकते हैं। इसी कारण समृद्धि के इस पर्व दीपावली को देवी लक्ष्मी और प्रभु गणेश का साथ-साथ पूजन किया जाता है।

दूसरे दिन चतुर्दशी को नरक-चौदस मनाया जाता है। इसे छोटी दीपावली भी कहा जाता है। इस दिन एक पुराने दीपक में सरसों  के तेल के साथ ज्योति जलाकर, उसमें 5 अन्न के दाने डालकर घर से बाहर निकाला जाता है, इसे यम का दीपक कहते हैं। भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर राक्षस का वध कर 16 हजार से ज्यादा कन्याओं को उसके बंधन से मुक्त करवाया था।

deepawali

तीसरे दिन दीयों का पर्व दीपावली मनाया जाता है। भारत में हर पर्व को मनाने के पीछे एक कथा और कहानी प्रसिद्ध होती है। दीपावली पर्व की कहानी रामायण से प्रारंभ होती है। रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम इस दिन 14 सालों का वनवास काटकर और दुष्टात्मा रावण का वध करके अपनी पत्नी माता सीता, भाई लक्ष्मण और हनुमान के साथ अयोध्या वापस लौटे थे, वो अमावस्या की रात थी। अपने राजकुमार के अगमान की खुशी में उस अधेरी रात को दीयों से रोशन कर अयोध्यावासियों ने उनका  स्वागत किया था। उसी समय से दीवाली पर दीये जलाकर, पटाखे बजाकर और मिठाई बांटकर दीवाली का पर्व मनाने की परम्परा आरंभ हुई। घर की साफ़-सफाई, धनतेरस की खरीदारी,  उपहारों की लेन-देन और लोगों का आपसी मेल मिलाप दिखाता है कि दीपावली स्वच्छता, समृद्धि और अधिकांश भारतीय पर्वों की तरह सामूहिकता का पर्व है।

दीपावली के दिन देवी लक्ष्मी और सिद्धि-बुद्धिदाता प्रभु गणेश की पूजा साथ-साथ होती है। इसके पीछे ठोस तर्क भी है। चूंकि, लक्ष्मी धन की देवी हैं और गणेश बुद्धि-ज्ञान आदि के देव हैं, ऐसे में इन दोनों के संयुक्त पूजन का सन्देश यही होता है कि धन और ज्ञान दोनों का मानव के लिए महत्व है। इनमें एक न हो तो दुसरे का अधिक महत्व नहीं रह जाता। ये दोनों साथ रहें तो ही समृद्धिकारी सिद्ध हो सकते हैं। इसी कारण समृद्धि के इस पर्व दीपावली को देवी लक्ष्मी और प्रभु गणेश का साथ-साथ पूजन किया जाता है।

(लेखिका पेशे से पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)