फसल विविधीकरण के जरिए खेती को खुशहाल बनाने में जुटी मोदी सरकार

दालों और खाद्य तेल के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के प्रयासों के तहत सरकार ने दलहनी व तिलहनी फसलों के एमएसपी में 300 रुपये से लेकर 523 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी की है। इससे न सिर्फ फसल विविधीकरण को बढ़ावा मिलेगा बल्कि दालों और खाद्य तेलों का आयात घटाने में भी सफलता मिलेगी।

बीज से बाजार तक किसानों को हर तरह से सहयोग देने वाली मोदी सरकार ने खरीफ सत्र शुरू होने से पहले ही खरीफ फसलों का समर्थन मूल्य घोषित कर दिया। खरीफ सीजन के कुल आठ फसलों के समर्थन मूल्य में उनकी लागत से डेढ़ गुना की वृद्धि की गई है जबकि छह फसलों में 51 से 85 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। सबसे ज्यादा जोर तिलहनी फसलों पर दिया गया है।

दालों और खाद्य तेल के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के प्रयासों के तहत सरकार ने दलहनी व तिलहनी फसलों के एमएसपी में 300 रुपये से लेकर 523 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी की है। इससे न सिर्फ फसल विविधीकरण को बढ़ावा मिलेगा बल्कि दालों और खाद्य तेलों का आयात घटाने में भी सफलता मिलेगी।

मोदी सरकार 2014 से ही खेती-किसानी को परंपरागत फसल चक्र से बाहर निकाल फसल विविधीकरण की ओर बढ़ाने की दिशा में काम कर रही है। मोदी सरकार की नीति रही है कि किसान उन फसलों को प्राथमिकता के आधार पर उगाएं जिनकी देश में कमी हो जाती है जैसे दालें व खाद्य तेल।

इस बार भी सरकार ने धानमक्का जैसी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में अपेक्षाकृत कम बढ़ोत्तरी की है जबकि दलहनी व तिलहनी फसलों में भरपूर बढ़ोतरी की गई है। सरकार की यह नीति एक बड़ी सीमा तक सफल रही है। दालों में मामले में देश लगभग आत्मनिर्भर बन चुका है लेकिन तिलहनी फसलों के मामले में अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई है। यही कारण है कि हर साल एक लाख करोड़ रुपये का खाद्य तेल आयात होता है।

रूस-यूक्रेन युद्ध ने भी तिलहनी फसलों का ऊंचा समर्थन मूल्य घोषित करने के लिए प्रेरित किया है। दरअसल रूस-यूक्रेन युद्ध से खाद्य तेल आपूर्ति प्रभावित हुई है जिससे दुनिया भर में खाद्य तेल के दाम तेजी से बढ़े हैं।

फसल विविधीकरण इसलिए भी जरूरी है क्योंकि परंपरागत कृषि प्रणाली में पंजाब-हरियाणा जैसे सूखे इलाकों में धान जैसे अधिक पानी मांगने वाली फसलों की खेती ने जल संकट पैदा कर दिया है। इतना ही नहीं इन इलाकों में धान-गेहूं की एक फसली खेती के कारण फसल चक्र का पालन नहीं हो रहा है जिससे मिट्टी की उर्वरता प्रभावित हो रही है जिसकी भरपाई रासायनिक उर्वरकों से की जा रही है।

इससे न केवल खेती की लागत बढ़ रही है बल्कि अनाज भी जहरीले होते जा रहे है। फसलों को थोपने से इसी प्रकार की समस्याएं अन्य राज्यों में भी पैदा हुई हैं। फसल विविधीकरण से पारिस्थितिकी दशाओं के अनुरूप खेती होगी जिससे ये समस्याएं अपने आप दूर हो जाएंगी।

फसल विविधीकरण के लिए प्रेरित करने के साथ-साथ मोदी सरकार किसानों को वित्तीय लाभ से लेकर ढांचागत सुविधाएं तक प्रदान कर रही है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना के तहत अब तक 12 करोड़ किसानों को 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान सीधे उनके बैंक खातों में किया जा चुका है।

किसान क्रेडिट कार्ड योजना के माध्यम से किसानों को सस्ता ऋण दिया जा रहा है। मोदी सरकार 99 सिंचाई परियोजनाओं को प्राथमिकता के आधार पर पूरी कर रही है। कृषि क्षेत्र में बड़े बदलाव के लिए नैनो फर्टिलाइजर (लिक्विड यूरिया) विकसित किया गया है। अब तक 22 करोड़ किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी किया जा चुका है। छोटे किसानों को मजबूत बनाने के लिए सरकार 10,000 किसान उत्पादन संघ बना रही है।

मोदी सरकार न केवल समर्थन मूल्य में वृद्धि कर रही है बल्कि एमएसपी पर सरकारी खरीद को भी सुनिश्चित कर रही है। कृषि बाजारों के उदारीकरण-आधुनिकीकरण के कारण अब निजी क्षेत्र भी बड़े पैमाने पर अनाज खरीद कर रहा है। इससे खरीद में प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है जिससे किसानों को समर्थन मूल्य से अधिक कीमत मिल रही है। 

(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)