गरीबी की जड़ पर चोट करने में कामयाब रही मोदी सरकार

2014 में प्रधानमंत्री बनते ही नरेंद्र मोदी गरीबी निवारण योजनाओं के साथ-साथ गरीबी पैदा करने वाले कारणों को दूर करने में जी जान से जुट गए। प्रधानमंत्री ने उन व्‍यवस्‍थागत खामियों को दूर किया जिनके चलते योजनाएं अपने लक्ष्‍य को हासिल नहीं कर पाती थीं। जैसे ही व्‍यवस्‍थागत खामियां दूर हुईं, वैसे ही बिजली, सड़क, पेयजल, बैंक, बीमा, शौचालय, रसोई गैस जैसी सुविधाएं आम आदमी तक पहुंचने लगीं।

आजादी के बाद से ही गरीबी दूर करने के हजारों कार्यक्रम बने लेकिन गरीबी पैदा करने वाले कारणों को दूर करने का प्रयास कभी-कभार ही किया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि गरीबी निवारण के सरकारी कार्यक्रमों के बावजूद गरीबी बढ़ती गई।

हां, इन सरकारी योजनाओं के क्रियान्‍वयन से जुड़े भ्रष्‍ट नेताओं-नौकरशाहों-ठेकेदारों की गरीबी जरूर दूर हुई। गरीबों के बैंक खाते नहीं खुले लेकिन गरीबों के नाम पर आवंटित धन को हड़पने वाले भ्रष्‍ट नेताओं-नौकरशाहों-ठेकेदारों की तिकड़ी के बैंक खाते विदेशी बैंकों में खुलने लगे।

जब गरीबी दूर करने की सरकारी योजनाएं गरीबों का वोट पाने में असफल दिखने लगीं तब गरीबी पर सीधा हमला करने के लिए गरीबी हटाओ का नारा लगाया गया। 1971 के लोक सभा चुनाव में इंदिरा गांधी को बंपर बहुमत दिलाने में इस नारे के अहम भूमिका रही।

अपने चुनावी नारे को अमलीजामा पहनाने के लिए इंदिरा गांधी ने 1975 में बीस सूत्री कार्यक्रम शुरू किया लेकिन गरीबी पैदा करने वाली परिस्‍थितियों को दूर न करने के कारण जमीनी धरातल पर गरीबी जस की तस बनी रही।

साभार : India.com

इंदिरा के बाद राजीव गांधी ने भी सरकारी योजनाओं के जरिए गरीबी निवारण के उपाय शुरू किए लेकिन वे भी केवल भ्रष्‍टतंत्र की समस्या ही सुनाते रहे उसका कोई समाधान नहीं कर सके। इसके बाद उदारीकरण-भूमंडलीकरण का दौर आया जिसमें यह मान लिया गया कि जब समाज की समृद्धि बढ़ेगी तब रिसन के सिद्धांत की तरह वह समृद्धि समाज के गरीब वर्गों की गरीबी दूर करने में सहायक बनेगी।

दुर्भाग्‍यवश भारत में उल्‍टा हुआ और रिसन का सिद्धांत वाष्‍पन में बदल गया। अब भ्रष्‍ट भारतीयों के बैंक खाते विदेशी बैंकों में खुलने लगे। इस प्रकार भारत के भ्रष्‍टाचार ने अंतरराष्‍ट्रीय रूप ले लिया।

बढ़ते भ्रष्‍टाचार का सबसे ज्‍यादा खामियाजा गरीबों को भुगतना पड़ा। बिजली, सड़क, पेयजल, शौचालय, रसोई गैस, बैंक, बीमा जैसी सुविधाएं उनकी पहुंच से दूर होती गईं। भ्रष्‍टाचार की व्‍यापकता से सरकारी सेवाएं लड़खड़ाने लगी।

इसका सटीक उदाहरण है, सार्वजनिक स्‍वास्‍थ्‍य सेवा की बदहाली।  उदारीकरण के दौर में एक ओर सरकारी अस्‍पताल बीमार हुए तो सरकारी संरक्षण में निजी अस्‍पतालों को फलने–फूलने का मौका मिला।

दुर्भाग्‍यवश निजी स्‍वास्‍थ्‍य ढांचे में गरीबों के लिए कोई जगह नहीं थी। इसका नतीजा यह हुआ कि महंगा इलाज गरीबी बढ़ाने की बड़ी वजह बन गया। खुद राष्‍ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन की रिपोर्ट बताती है कि महंगे इलाज के चलते देश में हर साल साढ़े छह करोड़ लोग गरीबी के बाड़े में धकेल दिए जाते हैं।

2014 में प्रधानमंत्री बनते ही नरेंद्र मोदी गरीबी निवारण योजनाओं को लागू करने के साथ-साथ गरीबी पैदा करने वाले कारणों को दूर करने में जी जान से जुट गए। प्रधानमंत्री ने उन व्‍यवस्‍थागत खामियों को दूर किया जिनके चलते योजनाएं अपने लक्ष्‍य को हासिल नहीं कर पाती थीं।

जैसे ही व्‍यवस्‍थागत खामियां दूर हुईं वैसे ही बिजली, सड़क, पेयजल, बैंक, बीमा, शौचालय, रसोई गैस जैसी सुविधाएं आम आदमी तक पहुंचने लगीं। गौरतलब है कि ये सुविधाएं कांग्रेस काल में समृद्धि की निशानी मानी जाती थीं, लेकिन मोदी सरकार ने इन्‍हें मूलभूत सुविधाओं के रूप में सभी भारतीयों तक पहुंचा दिया।

साभार : The Economic Times

मूलभूत सुविधाओं को उपलब्‍ध कराने के साथ-साथ प्रधानमंत्री ने गरीबों को मुफ्त इलाज मुहैया कराने के लिए 23 सितंबर, 2018 को आयुष्‍मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्‍य योजना की शुरूआत की। सरकार द्वारा प्रायोजित इस दुनिया की सबसे बड़ी स्‍वास्‍थ्‍य सेवा योजना के तहत हर परिवार को पांच लाख रूपये तक का मुफ्त स्‍वास्‍थ्‍य बीमा कवर मिलता है। इसके तहत अस्‍पताल में इलाज और भर्ती होने के खर्च का भुगतान पॉलिसी से किया जाता है।

योजना के तहत लाभार्थियों को ई-कार्ड दिया जाता है। इसके लिए देश भर में 21541 सरकारी और निजी अस्‍पताल पंजीकृत हैं। अब तक इस योजना के तहत 10 करोड़ गरीब व जरूरतमंद परिवारों और 50 करोड़ लोगों को जोड़ा जा चुका है। यह संख्‍या अमेरिका, मैक्‍सिको और कनाडा की कुल जनसंख्‍या से भी ज्‍यादा है।

स्‍वस्‍थ भारत के संकल्‍प को चरितार्थ करते हुए प्रधानमंत्री ने ‘आयुष्‍मान भारत’ प्रधानमंत्री जन आरोग्‍य योजना को देश के कोने-कोने में पहुंचाने के लिए टियर-2 और टियर-3 शहरों, विशेषकर 112 आकांक्षी जिलों, जहां आयुष्‍मान भारत के अंतर्गत कोई अस्‍पताल नहीं है, वहां पीपीपी मॉडल द्वारा नए अस्‍पतालों को जोड़ने का सराहनीय कदम उठाया।

मोदी सरकार की इन कोशिशों का ही नतीजा है कि दो साल से भी कम समय में इस जनोपयोगी योजना से एक करोड़ से ज्‍यादा मरीजों का इलाज हो चुका है। इन एक करोड़ लाभार्थियों में से 80 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों से हैं जिनमें से लगभग 50 प्रतिशत महिलाएं हैं। अधिकांश लाभार्थी उन बीमारियों से पीड़ित थे, जिनका मानक दवाओं से इलाज नहीं किया जा सकता था। इनमें से 70 प्रतिशत लोगों का इलाज सर्जिकल तरीके से हुआ।

समग्रत: मोदी सरकार गरीबी की जड़ पर हमला कर रही है जो अब तक किसी सरकार ने नहीं किया है। यही कारण है कि एक ओर विपक्ष मुद्दा विहीन होता जा रहा है, तो दूसरी ओर मोदी सरकार की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है।

(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)