मोदी सरकार के अध्यादेश से सहकारी बैंकों के भ्रष्टाचार पर लगेगा अंकुश

पिछले कुछ वर्षों से कई सहकारी बैंकों में घोटाले सामने आए। इसमें माधवपुरा मर्केंटाइल घोटाला, जम्‍मू-कश्‍मीर सहकारी बैंक घोटाला चर्चित रहे। हाल ही में पंजाब एंड महाराष्‍ट्र कोऑपरेटिव बैंक घोटाला हुआ जिससे उपभोक्‍ताओं में अफरा-तफरी का माहौल बन गया था। बाद में रिजर्व बैंक के हस्‍तक्षेप से स्‍थिति में सुधार आया। इन्‍हीं घोटालों को देखते हुए सहकारी बैंकों को रिजर्व बैंक की निगरानी में लाने संबंधी अध्‍यादेश जारी हुआ है।

पूर्व प्रधानमंत्री स्‍वर्गीय राजीव गांधी ने 1985 में उड़ीसा दौरे के समय कहा था कि केंद्र से भेजे जाने वाले एक रूपये में से नीचे तक 15 पैसे ही पहुंचते हैं। दुर्भाग्‍यवश इस ईमानदार स्‍वीकारोक्‍ति के बावजूद राजीव गांधी या उनके बाद की अन्य कांग्रेसी सरकारों के समय में भ्रष्‍टाचार रोकने की कोई गंभीर पहल नहीं हुई। नतीजा भ्रष्‍टाचार के मामले बढ़ते ही गए और सत्‍ता पक्ष से जुड़े अधिकतर नेताओं ने अकूत दौलत कमाई। 

2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी की पहली प्राथमिकता थी कि हर स्‍तर पर फैले भ्रष्‍टाचार को दूर किया जाए। प्रधानमंत्री इस हकीकत से परिचित थे कि कांग्रेसी सरकारों के दौर में निर्मित व्‍यवस्‍था भ्रष्‍टाचार का पर्याय बन चुकी है, इसलिए उन्‍होंने एक ओर पुराने पड़ चुके कानूनों में बदलाव किया तो दूसरी ओर हर स्‍तर पर तकनीक रूपी पहरेदार बैठाया। नतीजा यह रहा कि अब केंद्र से जो 1000 रूपया भेजा जाता है, वह सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में पहुंच रहा है। कमीशनखोरी का पूरा खेल ही खत्‍म हो गया।

अब मोदी सरकार ने लंबे अरसे से भ्रष्‍ट नेताओं की राजनीति चमकाने का जरिया बन चुके सहकारी बैंकों पर भी नकेल कसने का महत्‍वपूर्ण कदम उठाया है। पिछले दिनों कैबिनेट ने सहकारी बैंकों को रिजर्व बैंक की निगरानी में लाने के लिए प्रस्‍ताव पारित किया था।

रिजर्व बैंक की निगरानी में आए सहकारी [सांकेतिक चित्र, साभार : NewsMakeinIndia)

इस प्रस्‍ताव पर राष्‍ट्रपति के हस्‍ताक्षर के बाद देश में बैंकिंग नियम (संशोधन) अध्‍यादेश लागू हो गया है। इसके जरिए अब सरकारी बैंकों की तरह देश भर के सहकारी बैंक भी रिजर्व बैंक की निगरानी में आ जाएंगे। इस अध्‍यादेश का उद्देश्‍य बेहतर गवर्नेंस और निगरानी सुनिश्‍चित करके जमाकर्ताओं के हितों की सुरक्षा करना है। अध्‍यादेश का दूरगामी उद्देश्‍य है कि सहकारी बैंक व्‍यावसायिक रूख अपनाकर व्‍यवस्‍थित बैंकिंग प्रणाली अपनाएं।

इस संशोधन से राज्‍य सहकारी कानूनों के तहत सहकारी समितियों के राज्‍य पंजीयकों के मौजूदा अधिकारों में कोई कमी नहीं आएगी। कृषि विकास के लिए दीर्घकालिक वित्‍त मुहैया कराने वाली प्राथमिक कृषि ऋण समितियां भी इसके दायरे में नहीं आएंगी। 

अब तक सहकारी बैंकों को लाइसेंस तो बैंकिंग रेगुलेशन एक्‍ट 1949 के तहत रिजर्व बैंक ही देता है लेकिन इनकी कार्य प्रणाली एवं नियंत्रण राज्‍यों की रजिस्‍ट्रार कोऑपरेटिव सोसाइटी के पास था। सामान्‍यत: स्‍थानीय राजनीति में सक्रिय लोगों के बीच से चुनकर आया एक संचालक मंडल इन्‍हें प्रशासित करता है और वाणिज्‍यिक बैंकों की तरह सहकारी बैंकों को नियंत्रित करने का कोई तंत्र रिजर्व बैंक पास नहीं होता। इसीलिए इन बैंकों में बड़े पैमाने पर भ्रष्‍टाचार होता रहा है। 

पिछले कुछ वर्षों से कई सहकारी बैंकों में घोटाले सामने आए। इसमें माधवपुरा मर्केंटाइल घोटाला, जम्‍मू-कश्‍मीर सहकारी बैंक घोटाला चर्चित रहे। हाल ही में पंजाब एंड महाराष्‍ट्र कोऑपरेटिव बैंक घोटाला हुआ जिससे उपभोक्‍ताओं में अफरा-तफरी का माहौल बन गया था। बाद में रिजर्व बैंक के हस्‍तक्षेप से स्‍थिति में सुधार आया। इन्‍हीं घोटालों को देखते हुए सहकारी बैंकों को रिजर्व बैंक की निगरानी में लाने संबंधी अध्‍यादेश जारी हुआ है। 

देश के वित्‍तीय समावेश में सहकारी बैंकों की महत्‍वपूर्ण भूमिका रही है। उल्‍लेखनीय है कि सहकारी बैंकों का गठन लघु बचत और निवेश करने वालों की सुरक्षा देने के लिए किया गया था। देश में 1482 शहरी सहकारी बैंक और 58 बहुराज्‍यीय सहकारी बैंक हैं जिनके पास 8.6 करोड़ जमाकर्ताओं के 4.85 लाख करोड़ रूपये की राशि जमा है।

अध्‍यादेश लागू होने के बाद जनता में यह संदेश जाएगा कि उनका पैसा सुरक्षित है। रिजर्व बैंक यह तय करेगा कि सहकारी बैंको का पैसा किस क्षेत्र के लिए आवंटित किया जाए। 

इससे पहले मोदी सरकार ने सहकारी समितियों को सरकारी चंगुल से आजाद करने के लिए संविधान में 111वां संशोधन किया था। इससे सहकारी समितियां बनाना देश के नागरिकों का मौलिक अधिकार बन गया। सहकारी संस्‍थाओं में नियमित चुनाव और आरक्षण का प्रावधान होने से देश भर में कार्यरत तकरीबन छ: लाख सहकारी समितियों को राजनीति व नौकरशाही के दखल से मुक्‍त करने की कारगर पहल की गई थी। 

समग्रत: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर स्‍तर पर तकनीक रूपी चौकीदार बैठाने के बाद अब संस्‍थानों की ढांचागत कमजोरियों को दूर करने में जुटे हैं। स्‍पष्‍ट है कि प्रधानमंत्री भ्रष्‍टाचार की जड़ पर हमला कर रहे हैं जिससे न सिर्फ भ्रष्‍ट्राचार खत्‍म हो रहा है बल्‍कि उसके रास्ते भी बंद हो रहे हैं। मोदी की ये दृष्टि उनकी लोकप्रियता का बड़ा कारण है।

(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)