प्रधानमंत्री की अरब यात्रा से उम्मीदें

बलवीर पुंज 

हाल में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सऊदी अरब के दौरे पर रियाद पहुंचे तो उन्होंने वहां के शाही परिवार को भेंट करने के लिए सबसे उपयुक्त उपहार का चयन किया। प्रधानमंत्री ने सऊदी अरब के शासकों को चेरामन जुमा मस्जिद की प्रतिकृति भेंट की, जिसको केरल के हिंदू राजा चेरामन पेरुमल भास्करा रविवर्मा ने 629 ईस्वी में कोडुंगल्लूर के तत्कालीन बंदरगाह के निकट बनवाया था। इस असाधारण भेंट में कई सांस्कृतिक संदेश निहित हैं। यह उपहार अपने आप में इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह भारतीय संस्कृति की एक शाश्वत परंपरा को रेखांकित करता है जिसमें भारत की बहुलतावादी दर्शन और जीवन शैली को प्राणवायु इसकी सनातन हिंदू संस्कृति से मिलती है। यही कारण था कि प्राचीनकाल में अपने उद्गम स्थान पर प्रताड़ित सीरियाई ईसाई, यहूदी और पारसी समुदाय के लोगों का तत्कालीन हिंदू शासकों और जनमानस ने ना केवल खुले मन से स्वागत किया, बल्कि उनकी पूजा पद्धति और जीवन शैली को पुष्पित और पल्लवित होने का पूरा अवसर भी प्रदान किया। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि चेरामन जुमा मस्जिद का निर्माण पैगंबर मोहम्मद साहब के जीवनकाल में हुआ था और यह अरब के बाहर बनने वाली विश्व में पहली मस्जिद थी। जब अरब के मुसलमानों का व्यापार की दृष्टि से भारत के दक्षिणी तट पर आगमन हुआ तो उस समय मुस्लिम धर्म प्रचारक इबान दीमार ने केरल के तटीय इलाकों में कई मस्जिदों का निर्माण भी कराया। 1वास्तव में इस्लाम के जन्म से पहले ही अरब और भारत में व्यापारिक संबंध थे और इस्लाम का संदेश भी सबसे पहले वहां के व्यापरियों के माध्यम से ही आया। वर्ष 1342-47 में एक प्रसिद्ध यात्री और इतिहासकार इब्नबतूता ने अरब से आए लोगों और कुछ राज परिवार के प्रमुखों के साथ भारत के पश्चिमी तटीय इलाकों का भ्रमण किया और कोङिाकोड के तटीय बंदरगाह से कोल्लम की भी यात्र की थी। इब्नबतूता ने अपनी यात्र संस्मरण में लिखा था कि मुसलमान सबसे अधिक सम्मानित लोग हैं। चेरामन जुमा मस्जिद की प्रतिकृति उपहार स्वरूप भेंटकर नरेंद्र मोदी ने सऊदी शाह सलमान बिन अब्दुल अजीज को यह संदेश देने का प्रयास किया कि भारत में विपक्ष के भ्रामक और मिथ्या प्रचार के विपरीत वर्तमान सत्तारूढ़ दल मुसलमानों को लेकर किसी भी पूर्वाग्रह से ग्रसित नहीं है। 1एक प्रश्न भारत के वर्तमान मुस्लिम नेतृत्व से है कि प्राचीन समय में हिंदू शासकों और मुसलमानों के बीच मधुर और व्यापारिक संबंधों में 10वीं शताब्दी के बाद क्यों परिवर्तन आ गया? क्यों हिंदू बहुल भारत पर अफगानी और मध्य एशियाई इस्लामिक ताकतों ने बार-बार आक्रमण किया? आखिर क्यों इस्लामी हमलावरों द्वारा मंदिरों को तोड़कर मस्जिदों का निर्माण कराया गया? क्यों हिंदुओं को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया गया और क्यों ऐसा नहीं करने पर उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया? क्यों 7वीं शताब्दी में दक्षिणी-पश्चिमी तट पर जो मधुर और भाईचारे के संबंध अरब के मुसलमानों और हिंदू बहुल क्षेत्र में बसे निवासियों में थे, वे 19वीं सदी के आते-आते कैसे इतने बदल गए? क्या इसका कारण उन इस्लामी हमलावरों का आगमन था जो उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र में खैबर र्दे से भारत में घुसे और जिन्होंने यहां रहने वाले इस्लाम के अनुयायियों को विभाजन, हिंसा और अलगाव की राह पर धकेल दिया। इसका परिणाम हमें 1947 में बंटवारे के रूप में भुगतना पड़ा। क्यों अपने जन्म के समय से ही पाकिस्तान के शासकों और अधिकांश जनमानस का एक ही एजेंडा रहा कि भारत की सनातन बहुलतावादी संस्कृति को नष्ट किया जाए और इस धरती पर अरब प्रेरित इस्लामी निजाम को स्थापित किया जाए? क्या इसी मजहबी कट्टरता के कारण आज दुनिया के इस्लाम बहुल देशों में हर हफ्ते मजहबी विश्वासों को लेकर सुन्नी और शिया गुटों में हिंसक झड़प की खबरें पढ़ने को मिलती हैं? क्यों मुस्लिम देशों के भीतर शिया-सुन्नी में सदियों से चलने वाला खूनी संघर्ष थमने का नाम नहीं ले रहा है, बल्कि और उग्र होता जा रहा है? क्यों विश्वभर में मुस्लिम समाज से ऐसे लोग सामने आ रहे हैं जो कुख्यात आइएसआइएस में शामिल होने के लिए उत्सुक हैं और अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए दूसरों की जान लेने और अपनी जान देने में संकोच नहीं करते?1भारत में भी यहां के मुसलमानों को उनको अपनी मातृभूमि की संस्कृति से काटने के निरंतर प्रयास होते रहे हैं। दीपक से धार्मिक स्थलों को प्रज्ज्वलित करना भारत की एक प्राचीन परपंरा रही है जो मालाबार क्षेत्र और प्राचीन गिरजाघरों में भी प्रचलित है। कई पुराने मुस्लिम परिवार आज भी संध्या के समय दीये जलाते हैं। चेरामन जुमा मस्जिद में भी उसके निर्माण के समय से हर क्षण दीप प्रज्ज्वलित रहता है। यहां अभी भी सभी मजहबों के अनुयायी दीये में तेल चढ़ाते हैं, परंतु कट्टरवादी इस्लामिक तत्व और कुछ संगठन, जो आज प्रतिबंधित होने के बाद भी दूसरे नामों से सक्रिय हैं, मुसलमानों को बरगला रहे हैं। उन्हें घरों में दीये जलाने और किसी दीप प्रज्ज्वलन कार्यक्रम में भाग लेने से रोक रहे हैं और ऐसा नहीं करने पर उन्हें गैर मुस्लिम घोषित करने की धमकी दे रहे हैं। विडंबना यह है कि अपने आप को पंथनिरपेक्ष घोषित करने वाले दल और संगठन ऐसी अलगाववादी मानसिकता को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं। 1अमेरिका से संबंध रखने के कारण इस समय आइएसआइएस के निशाने पर सऊदी अरब का राज परिवार भी है और वहां की हुकूमत भी इस जिहादी संगठन से सहानुभूति रखने वालों पर कड़ी नजर रखे हुए है जिसमें कई लोगों को जेल तक भेज दिया गया है। हाल के कुछ वर्षो में सऊदी अरब ने अबु जुंदाल जैसे आतंकियों को भारत के हवाले किया है जो देश में घटित आतंकी घटनाओं में शामिल रहे हैं। एक तरफ तो सऊदी आतंकवाद के विरुद्ध खड़ा है और दूसरी ओर इस्लाम के प्रचार के नाम पर भारत समेत दक्षिण एशियाई देशों में हर वर्ष करोड़ों डॉलर भेजता है। इस धन का उपयोग मदरसों के माध्यम से जिहाद और अलगाव की शिक्षा को बढ़ावा देने में किया जाता है। भारत में इस्लाम के प्रचार के नाम पर भेजा जाने वाला पैसा और कांग्रेस नीत सरकारों का संरक्षण इस तरह के शिक्षण संस्थानों का पोषक रहा है। सऊदी अरब के शाही परिवार को प्रधानमंत्री द्वारा भेंट किया प्रतीकात्मक उपहार दर्शाता है कि भारत इस्लाम की सच्ची शिक्षाओं के प्रसार संबंधी सऊदी अरब की इच्छा को समझता है। अब क्या सऊदी अरब बदले में जिहाद का विष फैलाने वाले संस्थानों के उन्मूलन के लिए भारत के साथ खड़ा होगा?

(लेखक वरिष्ठ स्तम्भकार हैं। यह लेख दैनिक जागरण में छपा है)