कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भरता लाने की कवायद

मृदा परीक्षण ने कृषि लागत को कम करने में योगदान दिया। दशकों से लम्बित सिंचाई परियोजनाओं को पूर्ण करने का कार्य भी शुरू हो गया है। ड्रिप, स्प्रिंगलर और सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों के महत्व व जल संचय के प्रति जागरूकता लाई जा रही है। इस तरह और भी अनेक मोर्चों पर सरकार ने किसानों की बुनियादी समस्याओं के समाधान का प्रयास किया है।

गांव और किसान की समस्या दशकों पुरानी है। इस ओर पहले पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया। कृषि में लागत तो बढ़ती रही, लेकिन उसके अनुरूप लाभ नहीं मिला। पीढ़ी दर पीढ़ी जोत कम होती गई। इसलिए गांव से पलायन शुरू हुआ। वहाँ बाजार, उद्योग कुटीर व लघु उद्योग नही थे, इसलिए रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं हो सके।

नरेंद्र मोदी सरकार कृषि और ग्रामीण विकास की दिशा में कारगर कदम उठा रही है। मृदा परीक्षण योजना को व्यापक रूप से लागू किया गया है। किसानों को बताया गया कि आवश्यकता से अधिक खाद व पानी दोनों ही फसल के लिए नुकसान देह होता है।

सांकेतिक चित्र (साभार : Krishi Jagran)

मृदा परीक्षण ने कृषि लागत को कम करने में योगदान दिया। दशकों से लम्बित सिंचाई परियोजनाओं को पूर्ण करने का कार्य भी शुरू हो गया है। ड्रिप, स्प्रिंगलर और सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों के महत्व व जल संचय के प्रति जागरूकता लाई जा रही है। इस तरह और भी अनेक मोर्चों पर सरकार ने किसानों की बुनियादी समस्याओं के समाधान का प्रयास किया है।

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि आदि योजनाओं तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि से कृषकों को लाभ मिला है। कृषि विज्ञान केन्द्रों से स्थानीय तौर पर कृषि तकनीकी का प्रसार हुआ है।

प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के झांसी में स्थापित रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के उद्घाटन समारोह में कृषि विज्ञान के छात्र छात्राओं से बात करते हुए युवा कृषि वैज्ञानिकों से भारत में खाद्य तेलों, फल सब्जियों और अन्य कृषि उत्पादों के आयात पर निर्भरता कम करने, किसानों को पानी की बचत करने वाली सिंचाई की तकनीकों के प्रति जागरूक बनाने तथा जैव विविधता जैसे मुद्रों पर ध्यान देने की अपील की।

दरअसल आत्मनिर्भर भारत का एक लक्ष्य किसानों को एक उत्पादक के साथ ही उद्यमी बनाने का भी है। किसान और खेती, उद्योग के रूप में आगे बढ़ेंगे तो बड़े स्तर पर गांव में और गांव के पास ही रोजगार और स्वरोजगार के अवसर तैयार होंगे। गांव की पूरी अर्थव्यवस्था इसी तरह आत्मनिर्भरता की राह पर बढ़ सकेगी।

किसानों की समस्याओं के समाधान की दिशा में भी केंद्र सरकार, राज्य सरकारों के साथ मिलकर लगातार प्रयास कर रही है। इस सम्बन्ध में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार काफी सक्रियता के साथ कार्य कर रही है।

सांकेतिक चित्र (साभार : The Tribune India)

बुंदेलखंड जैसे क्षेत्र में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के माध्यम से सिंचाई समस्या का कुछ हद तक समाधान सम्भव हुआ है और आगे भी काम जारी है। साथ ही, प्रधानमंत्री जल जीवन योजना के अन्तर्गत बुंदेलखंड में हर घर नल योजना प्रारम्भ की गयी है।

गोवंश की समस्या को देखते हुए बुंदेलखंड में डेढ़ हजार से अधिक गौ आश्रय स्थल बनाए गये हैं। इसमें डेढ़ लाख से अधिक निराश्रित गौवंश को आश्रय प्राप्त हो रहा है। इन आश्रय स्थलों की जैविक कृषि में भी बड़ी उपयोगी भूमिका है।

इसके अतिरिक्त केन्द्र सरकार के सहयोग से वर्तमान प्रदेश सरकार द्वारा बीस नये कृषि विज्ञान केन्द्र स्थापित किये गये हैं। रानी लक्ष्मीबाई केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना से बुंदेलखंड क्षेत्र के दोनों मण्डलों में कृषि विश्वविद्यालय स्थापित किए गए हैं, जिससे कृषकों को लाभ हो रहा है। वहीं कृषि विज्ञान केन्द्रों से स्थानीय तौर पर कृषि तकनीकी के प्रसार में मदद मिल रही है।

कुल मिलाकर भारत कोरोना संकट को एक बड़े परिवर्तन की बुनियाद रखने वाले अवसर में बदलने में सफलता पाई है। आत्मनिर्भर भारत अभियान इसी लक्ष्य के संधान का एक उपक्रम है। कृषि क्षेत्र में भारत की सर्वाधिक श्रम शक्ति लगी हुई है, लेकिन उसके अनुरूप अभी यह क्षेत्र लाभकारी नहीं है।

परन्तु, मोदी सरकार द्वारा आत्मनिर्भर भारत की दृष्टि के साथ अब कृषि क्षेत्र के विकास का जो प्रयास किया जा रहा, उसका बड़ा लाभ आने वाले समय में न केवल कृषि एवं किसानों को बल्कि पूरे देश को भी मिलेगा।

(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)