भारत-इजरायल की इस जुगलबंदी से भारतीय विदेशनीति को मिलेगा नया आयाम

इजरायल में जिस तरह प्रधानमंत्री  मोदी का स्वागत किया गया, वह अंतर्राष्ट्रीय  समुदाय में भारत के बढ़ते वर्चस्व  को दिखाता है, क्योंकि इजरायल के प्रधानमंत्री  ने हिंदी में बोलकर उनका अभिवादन किया साथ ही वह अपने कैबिनेट के 11 मंत्रियो और सारे उच्च अधिकारियो को लेकर उनके स्वागत के लिए खड़े  थे। अमेरिकी राष्ट्रपति के बाद मोदी पहले  ऐसे राजनेता हैं, जिनका स्वागत करने के लिए इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू  सारे प्रोटोकॉल तोड़कर बेन  गुरिओंन एयरपोर्ट पहुंचे थे। निश्चित ही 2014  के बाद से प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति ने भारत को समूचे अंतर्राष्ट्रीय  समुदाय के सामने  एक महाशक्ति  के रूप स्थापित किया है।

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी  इजरायल  यात्रा   संपन्न   की  है। प्रधानमंत्री  का यह दौरा इस मायने में ऐतिहासिक साबित हुआ, क्योंकि पहली बार किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने इजरायल का दौरा किया था। वैसे  देखा जाये तो भारत-इजरायल संबंधों की शुरुआत आधिकारिक तौर पर 1992 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की पहल से हुई थी, जिन्होंने इजरायल के साथ राजनयिक सम्बन्धो  को प्रस्थापित  करवाया।

नरसिम्हा राव के बाद  एनडीए के पहले  शासनकाल में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी  ने उसे एक  कदम आगे ले जाते हुए इजरायल के तत्कालीन प्रधानमंत्री अरियल शेरोन को भारत बुलाया और इजरायल के साथ सीधे तौर पर राजनयिक संबधो को नई  पहचान दी। प्रधानमंत्री मोदी ने हमेशा विदेश नीति को अटलजी जहा से छोड़कर गए थे, वहाँ  से आगे ले जाने की बात कही है। इसी कड़ी में उनके प्रधानमंत्री बनने  के बाद उन्होंने इजरायल और फिलिस्तीन मुद्दे  को अलग नजरिये से देखते हुए  दोनों देशो को यथोचित महत्व देना लाजमी समझा।

इजरायल में जिस तरह प्रधानमंत्री  मोदी का स्वागत किया गया, वह अंतर्राष्ट्रीय  समुदाय में भारत के बढ़ते वर्चस्व  को दिखाता है। उल्लेखनीय होगा कि इजरायल के प्रधानमंत्री ने हिंदी में बोलकर प्रधानमंत्री मोदी का अभिवादन किया साथ ही वह अपने कैबिनेट के 11 मंत्रियो और सारे उच्च अधिकारियो को लेकर उनके स्वागत के लिए खड़े  थे। अमेरिकी राष्ट्रपति के बाद मोदी पहले  ऐसे राजनेता हैं, जिनका स्वागत करने के लिए इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू  सारे प्रोटोकॉल तोड़कर बेन  गुरिओंन एयरपोर्ट पहुंचे थे। निश्चित ही 2014  के बाद से प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति ने भारत को समूचे अंतर्राष्ट्रीय  समुदाय के सामने  एक महाशक्ति  के रूप स्थापित किया है।

प्रधानमंत्री का यह दौरा इसलिए  भी ऐतिहासिक  था, क्योंकि भारत और  इजरायल दोनों लगभग एक समय आजाद हुए थे। दोनों देशो में राष्ट्रवाद  की मूल अवधारणा  थी, जो उनकी आजादी के लिए कारक साबित हुई थी। किन्तु, इजरायल जैसे  छोटे देश ने अपनी वैज्ञानिक  क्षमताओं  को बढ़ाते  हुए रक्षा क्षेत्र  में काफी अनुसन्धान  किये हैं साथ ही वहां के स्टार्टअप परियोजनाओं ने भी दुनिया में अपना लोहा मनवाया है और निश्चित ही प्रधानमंत्री मोदी ने इन  सब बातो  को ध्यान   में रखकर   ही  इजरायल को अपनी विदेश नीति की प्राथमिकताओं में स्थान  दिया  है।

प्रधानमंत्री ने अपनी इस यात्रा के दौरान इजरायल में बसे  भारतीयों को संबोधित करते हुए उन्हें  ओसीआई  और पीआईओ कार्ड की सौगात भी दी, उनके इस कार्यकर्म  की सफलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पूरे  इजरायल  में बसे  लगभग 7000 हजार भारतीय प्रधानमंत्री को सुनने के लिए आये थे और उन्होंने बेहद गर्मजोशी से अपने प्रधानमंत्री का स्वागत किया।

दरअसल मोदी जब भी किसी विदेश दौरे पर होते हैं, तो अपने पूर्ववर्ती  प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से हटकर वहा  पर स्थित  भारतीय  समुदाय उनके एजेंडा का हिस्सा होता है और वर्ष 2014 के बाद विदेशों में बसे भारतीयों ने भी प्रधानमंत्री मोदी के सारे कार्यक्रमों में जिस तरह से बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है, वह निश्चित ही उनकी भारत के बाहर भी व्याप्त लोकप्रियता का अंदाजा लगाने के लिए काफी है। इस यात्रा के दौरान भारत और इजरायल  के बीच कई  महत्वपूर्ण समझौतों  पर सहमति  बनी जो आनेवाले समय में दोनों देशो की तरक्की और आपसी साझेदारी के लिए कारगर साबित होगी। बातचीत और समझौतों के कुछ प्रमुख बिंदु रहे :

विज्ञान प्रौद्योगिकी कोष : 259 करोड़ रुपए की लागत से द्विपक्षीय प्रौद्योगिकी नवोन्मेष कोष बनेगा जिसके लिए  दोनों देश आधी-आधी राशि देंगे। इससे दोनों देशों के वैज्ञानिक मिलकर अनुसंधान व विकास करेंगे और  कई क्षेत्रों में इजरायली विशेषज्ञता का भारत को लाभ मिलेगा।

जल संरक्षण : इजरायल के नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर, एनर्जी एंड वाटर रिसोर्सेस डिपार्टमेंट के साथ भारत द्वारा  दो समझौते किए गए। एक भारत में इजरायल के सहयोग से जल संरक्षण अभियान चलाने का और दूसरा उप्र जल निगम के साथ गंगा  जल व सफाई प्रबंधन का। ज्ञात  रहे कि इजरायल पानी की एक-एक बूंद बचाता है। टपक सिंचाई (ड्रिप इरिगेशन) समेत कई अनूठी तकनीकें उसकी देन हैं।

कृषि : भारत-इजरायल  मिलकर तीन साल 2018 से 2020  तक कृषि   तकनीकों   के क्षेत्र में  कार्यक्रम चलाएंगे। क्योंकि कृषि क्षेत्र में इजरायल काफी उन्नत   तकनीकों का इस्तेमाल  करता है, अतः  निश्चित ही भारत के कृषि  क्षेत्र को  लाभ मिलेगा।

अंतरिक्ष : इस सम्बन्ध में दो समझौते किए गए हैं।  एक इसरो व इजरायल स्पेस एजेंसी के बीच “परमाणु घड़ी” के संबंध में व दूसरा छोटे सैटेलाइट को ईंधन पहुंचाने के लिए जीईओ-एलईओ ऑप्टिकल लिंक के लिए जिससे मिसाइलों, उपग्रहों, परमाणु अस्त्र-शस्त्रों के प्रक्षेपण के लिए परमाणु घड़ी एकदम सटीक समय व स्थिति बताएगी ।

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने इस दौरे में “आई टू आई” और “आई फॉर आई” का  नारा भी दिया  इसका मतलब “इंडिया विद इजरायल और इंडिया फॉर इजरायल” है यानी भारत इजरायल के लिए है और इजरायल भारत के लिए तथा भारत इजरायल के साथ और इजरायल भारत के साथ है। वास्तव में यह दौरा आनेवाले समय में  भारत की  विदेश नीति को नए आयाम देगा और प्रधानमंत्री मोदी के उन  सब आलोचकों के लिए भी उत्तर साबित होगा जो उनके विदेश दौरे पर हमेशा सवाल खड़ा करते रहते हैं।

(लेखक कॉरपोरेट लॉयर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)