भाई-बहन के बीच स्नेह, सुरक्षा और सहयोग का प्रतीक पर्व है रक्षाबंधन

कुछ अति-प्रगतिशील लोग रक्षाबंधन को स्त्री-विरोधी मानते हैं कि इसमे पुरुष को स्त्री का रक्षक बताया जाता है। लेकिन, वास्तविकता ऐसी नहीं है, इसका प्रमाण रक्षाबंधन के सम्बन्ध में प्रचलित हमारे पौराणिक आख्यानों में ही मिल जाता है। पहले द्रोपदी ने कृष्ण की कटी उंगली पर पट्टी बाँध उनकी पीड़ा दूर की फिर द्रोपदी पर संकट आने पर कृष्ण ने उसे दूर किया। तात्पर्य यह कि रक्षाबंधन का अर्थ यह है कि भाई और बहन एक-दुसरे के सहयोगी, रक्षक और आत्मीय मित्र बनकर रहें। यही इस पावन पर्व का मूल उद्देश्य भी है, जिसे समझकर इसे मनाने की जरूरत है। आज जब इतनी प्रगति के बाद भी देश में महिलाओं को अपनी अस्मिता और सम्मान के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, ऐसे वक़्त में रक्षाबंधन जैसे पर्व का महत्व और अधिक बढ़ जाता है।

यह स्थापित तथ्य है कि भारतीय समाज एक उत्सवधर्मी समाज है। यहाँ हर रिश्ते-नाते से लेकर ऋतुओं तक के हिसाब से विभिन्न पर्व और व्रतों का आगमन होता रहता है। मकर संक्रांति से आरम्भ होकर होली, नवरात्र, रक्षाबंधन, दिवाली और छठ महापर्व तक अनगिनत पर्व और त्यौहार भारतीय संस्कृति के अभिन्न और गौरवशाली अवयव हैं। इन्ही पर्वों में से  एक रक्षाबंधन का पर्व है। रक्षा बंधन का ये पावन-पर्व भाई-बहन के बीच प्रेम का प्रतीक माना जाता है। बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है।

वैसे यह परम्परा केवल भारतीय संस्कृति में ही है कि हम हर रिश्ते निभाना जानते हैं और हर रिश्ते की गरिमा को बनाकर रखते हैं। रक्षा बंधन का त्यौहार शिव के महीने श्रावण में आता है, इसलिए इस त्यौहार का महत्त्व और भी अधिक बढ़ जाता है। लगभग हर पर्व की तरह रक्षा बंधन को लेकर भी देश में अलग-अलग तरह की कहानियां  व्याप्त हैं। कोई कहता है कि रक्षा बंधन का प्रारंभ देवताओं ने किया है, तो वहीं कुछ राज्यों में इस त्यौहार को राजाओं से जोड़कर बताया जाता है। एक कथा यह है कि कृष्ण की उंगली कट गई थी, तो द्रोपदी ने अपना आँचल फाड़कर पट्टी बाँध दी और तभी कृष्ण ने उनकी रक्षा का वचन दिया तथा दुशासन से उन्हें बचाकर अपना वचन निभाया भी।

इसके अलावा चित्तौड़ की रानी कर्मवती और हुमायू की कहानी भी बेहद मशहूर है। निष्कर्ष यह है कि रक्षा बंधन को लेकर आपको हर जगह अलग ही कहानी सुनने को मिल जाएगी। पर सबका मूल आशय यही है कि भाई-बहन के प्यार की पवित्रता को जो दिन जग-जाहिर करता है, वह दिन रक्षा बंधन का दिन होता है। इस साल अगस्त माह की 7 तारीख को रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जा रहा है। शास्त्रों में ऐसा भी बताया गया है कि देवताओं के गुरु ब्रहस्पति ने कभी देवताओं के राजा इंद्र को युद्ध में जीत की प्राप्ति के लिए रक्षाबंधन का ही उपाय बताया था।

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साभार: गूगल

वैसे, भारतीय पर्वों की एक विशेषता यह भी है कि वे सिर्फ उत्सवधर्मिता से ही प्रेरित नहीं होते, वरन उनमें कोई न कोई सार्थक उद्देश्य भी अन्तर्निहित होता है। रक्षाबंधन भी इसमे अपवाद नहीं है। रक्षाबन्धन के जरिये समाज को यह बात स्मरण दिलाई जाती है कि समाज के दोनों वर्गों स्त्री और पुरुष को एक-दुसरे की परम आवश्यकता है। बिना एकदूसरे के उनका जीवन  अर्थहीन हो सकता है। यह पर्व कन्या भ्रूण-हत्या जैसी समाज की विकृत मानसिकता पर चोट करने के साथ-साथ समाज में स्त्री-पुरुष समानता जो भारतीय वैदिक समाज में पूरी तरह से मौजूद थी, को प्रतिस्थापित करने का सन्देश भी देता है।

कुछ अति-प्रगतिशील लोग रक्षाबंधन को स्त्री-विरोधी मानते हैं कि इसमे पुरुष को स्त्री का रक्षक बताया जाता है। लेकिन, वास्तविकता ऐसी नहीं है, इसका प्रमाण रक्षाबंधन के सम्बन्ध में प्रचलित हमारे पौराणिक आख्यानों में ही मिल जाता है। पहले द्रोपदी ने कृष्ण की कटी उंगली पर पट्टी बाँध उनकी पीड़ा दूर की फिर द्रोपदी पर संकट आने पर कृष्ण ने उसे दूर किया। तात्पर्य यह कि रक्षाबंधन का अर्थ यह है कि भाई और बहन एक-दुसरे के सहयोगी, रक्षक और आत्मीय मित्र बनकर रहें। यही इस पावन पर्व का मूल उद्देश्य भी है, जिसे समझकर इसे मनाने की जरूरत है। आज जब इतनी प्रगति के बाद भी देश में महिलाओं को अपनी अस्मिता और सम्मान के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, ऐसे वक़्त में रक्षाबंधन जैसे पर्व का महत्व और अधिक बढ़ जाता है।

(लेखिका पेशे से पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं। )