राजनीति नहीं, राम-भक्ति से प्रेरित है रामायण संग्रहालय के निर्माण का फैसला!

भगवान श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या में ‘रामायण संग्रहालय’ के निर्माण का साहसिक और सराहनीय निर्णय केन्द्र सरकार ने लिया है। वहीं, राज्य सरकार ने भी सरयू नदी के किनारे रामलीला थीम पार्क बनाने का निर्णय लिया है। राम भक्तों पर गोली चलाने वाले और खुद को मौलाना मुलायम कहाने में गर्व की अनुभूति करने वाले मुलायम सिंह यादव के बेटे और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने थीम पार्क को मंजूरी दी है। कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी इन निर्णयों के लिए भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी पर राम के नाम पर राजनीति करने का आरोप लगा रही है। यह आरोप कितने सही-गलत हैं, यह अलग बहस का मुद्दा है। सपा के सम्बन्ध में तो यह आरोप एक हद तक सही भी हों, क्योंकि मुस्लिम-मुस्लिम करने वाले इस दल को चुनाव से कुछ समय पहले राम का याद आना यूँ ही नहीं होगा आए हैं। लेकिन, भाजपा तो हमेशा ही राम का नाम लेती रही है, अतः उसपर इस सम्बन्ध में राजनीति का आरोप लगाना कहीं से उचित प्रतीत नहीं होता।  सवाल तो यह भी है कि आखिर कांग्रेस ने 70 सालों में यह पहल क्यों नहीं की। कांग्रेस ने कभी मुस्लिम तुष्टीकरण से ऊपर उठकर हिंदू समाज की चिंता क्यों नहीं की ? बहुजन समाज पार्टी की सरकार ने भी 2007 में अंतरराष्ट्रीय रामलीला संकुल का प्रस्ताव रखा था। चूँकि बहन मायावती का पूरा ध्यान ‘हाथी पार्क’ बनाने पर रहा। इस कारण उनसे राम कहीं छिटक गए।

यह बात सही है कि भाजपा राम का नाम लेती है। लेकिन, यह राजनीति के लिए नहीं है। भाजपा राम का नाम इसलिए लेती है, क्योंकि कांग्रेस सहित दूसरे दल राम और रामभक्तों की अनदेखी करते रहे हैं। भगवान श्रीराम के साथ इस देश की अस्मिता जुड़ी है। इस देश के मूल नागरिकों के आस्था का केन्द्र श्रीराम हैं। इसलिए रामायण संग्रहालय के निर्माण का निर्णय देर से ही सही, लेकिन एक अच्छी पहल है। इस निर्णय से भाजपा ने उस आरोप को भी झूठा साबित किया है, जिसमें बार-बार कहा जाता है कि भाजपा राजनीति के लिए राम के नाम का उपयोग करती है।

सरकार के इस निर्णय में राजनीति देख रहे महानुभावों और राजनीतिक दलों को यह भी समझना चाहिए कि ‘रामायण सर्किट’ बनाने पर केन्द्र सरकार काफी पहले से विचार कर रही थी। रामलीला संग्रहालय उसी रामायण सर्किट का ही हिस्सा है। अक्षरधाम की तर्ज पर रामलीला संग्रहालय की घोषणा भी अभी नहीं की गई है, बल्कि पिछले साल जून में ही सरकार ने इसकी घोषणा की थी। इसलिए रामलीला संग्रहालय को उत्तरप्रदेश के चुनावों से जोड़कर देखना उचित नहीं होगा। उस पर वितंडावाद खड़ा करना तो किसी भी सूरत में उचित नहीं है। कांग्रेस और बसपा को शायद यह समझ नहीं आ रहा है कि रामायण संग्रहालय का विरोध करने से उन्हें कोई राजनीतिक लाभ नहीं मिलेगा। संभव है कि रामायण संग्रहालय और रामलीला थीम पार्क पर भाजपा राजनीति नहीं करती और यदि करती भी तब उतना लाभ नहीं मिलता, जितना कांग्रेस एवं बसपा के विरोध के बाद मिलेगा। कांग्रेस और बसपा जबरन ‘राम’ को राजनीति का विषय बनाने का प्रयास कर रही हैं।

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यह बात सही है कि भाजपा राम का नाम लेती है। लेकिन, यह राजनीति के लिए नहीं है। भाजपा राम का नाम इसलिए लेती है, क्योंकि कांग्रेस सहित दूसरे दल राम और रामभक्तों की अनदेखी करते रहे हैं। भगवान श्रीराम के साथ इस देश की अस्मिता जुड़ी है। इस देश के मूल नागरिकों के आस्था का केन्द्र श्रीराम हैं। इसलिए रामायण संग्रहालय के निर्माण का निर्णय देर से ही सही, लेकिन एक अच्छी पहल है। इस निर्णय से भाजपा ने उस आरोप को भी झूठा साबित किया है, जिसमें बार-बार कहा जाता है कि भाजपा राजनीति के लिए राम के नाम का उपयोग करती है। संस्कृति मंत्रालय तकरीबन 250 करोड़ रुपये खर्च करके 25 एकड़ भूमि पर रामायण संग्रहालय को विकसित करेगा। केंद्रीय संस्कृति मंत्री महेश शर्मा ने 18 अक्टूबर को अयोध्या पहुँचकर ‘रामायण संग्रहालय’ के लिए चिह्नित 25 एकड़ जमीन का निरीक्षण भी किया है। इस अवसर पर उन्होंने ट्वीट किया कि संग्रहालय में भगवान राम के जीवन और मूल्यों को दर्शाया जाएगा। यहाँ आकर पूरी दुनिया राम के जीवन और रामायण के बारे में जान सकेगी। उन्होंने इस बात को भी दोहराया कि उनके (भाजपा) लिए राम और राजनीति दो अलग-अलग विषय हैं। भाजपा राम पर राजनीति नहीं करती है।

बहरहाल, यह बात सही है कि सरकार के इस निर्णय से हिंदू समाज प्रसन्नता की अनुभूति करेगा। देश में पहली बार उसके आस्था के सबसे बड़े केन्द्र भगवान राम के जीवन पर अंतरराष्ट्रीय स्तर का संग्रहालय बनने जा रहा है। उसके लिए तो यह संग्रहालय ही किसी तीर्थ से कम न होगा। हालांकि, हिंदू समाज की चाहत तो यह है कि अयोध्या में रामलला का भव्य मंदिर बने। उसे उम्मीद भी है कि आज नहीं तो कल भाजपा इस दिशा में भी प्रयास करेगी। रामायण संग्रहालय पर हाय-तौबा मचाकर बाकी राजनीतिक दलों ने अपना मंतव्य प्रकट कर ही दिया है।

(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)