मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना : कृषि उत्पादन बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम

भारत एक कृषि प्रधान देश है और यहाँ कृषि आज भी देश की सर्वाधिक आबादी का कार्यक्षेत्र है। ऐसा कहने में दो राय नहीं है कि यहां के लोग सीधे मिट्टी से जुड़े हुए हैं। जिस तरह भारत के लोगों मिट्टी से जुड़े हुए है, ठीक उसी तरह फसल को लहलहाने और फसल से उसे सोना बनाने के लिए मिट्टी उतनी ही जरूरी है। मिट्टी के इसी महत्व को ध्यान में रखते हुए केंद्र की मोदी सरकार द्वारा किसानों के लिए मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना की शुरुआत की गई।

एक नजर इस मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के इतिहास पर डालें तो सर्वप्रथम यह योजना साल 2003-04 में गुजरात में एक प्रयोग के आधार पर शुरू की गई थी। तब वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और उन्होंने गुजरात में इस योजना को शुरू किया था। गुजरात में इसका असर ये रहा कि सन २००३-०४ में जब ये योजना लागू हुई, तब गुजरात की कुल कृषि आय १४००० करोड़ थी, जो कि इसके लागू होने के बाद वर्ष २०११ में ८०००० करोड़ हो गई। गुजरात में इस योजना के इस शानदार कामयाबी को देखते हुए अब जब मोदी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने इसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया।

मोदी सरकार की इस योजना के तहत किसानों को उनके खेतों के लिए आवश्यक पोषकों और उर्वरकों की फसल के मुताबिक सलाह दी जाती है ताकि पैदावार अच्छी हो। सबसे पहले सम्बंधित भूमि की मिटटी का परीक्षण किया जाता है, जिससे उसमें मौजूद पोषक तत्वों की मात्रा का पता चल जाता है।  फिर उन पोषक तत्वों की मात्रा की जानकारी के साथ-साथ उनको संतुलित करने के लिए आवश्यक उर्वरकों की सही मात्रा में इस्तेमाल की जानकारी भी कार्ड पर अंकित करके किसान को दी जाती है। इसीको मृदा स्वास्थ्य कार्ड कहते हैं और ऐसे ही कार्ड वितरित करने की ये योजना है। इस योजना को शुरू करने के समय केंद्र सरकार का मानना था कि मृदा स्‍वास्‍थ्‍य स्‍थिति के बारे में जागरूकता और खाद की भूमिका से पूर्वी भारत में भी अधिक खाद्यान उत्‍पादन में सहायता के साथ-साथ मध्‍य भारत में उत्‍पादन में हो रही गिरावट को दूर करने में भी मदद मिलेगी। पूर्वी भारत में अनाज में वृद्धि से स्‍थानीय स्‍तर पर खाद्यान्‍न के भंडार बनाने के लिए सरकार को अवसर मिलेगा।

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प्रधानमंत्री मोदी ने इस योजना की शुरूआत राजस्थान के सूरतगढ़ से की थी। 19 फरवरी 2015 को इस योजना को लांच करते समय प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि इस योजना का उद्देश्य आगामी तीन साल में 14 करोड़ से अधिक किसानों को इसका लाभ देना है। इससे पहले इसकी घोषणा साल 2014 में वित्त मंत्री अरूण जेटली ने अपने भाषण में की थी तथा इसे महज में एक साल में ही जमीनी स्तर पर लागू भी कर दिया गया। इसके तहत 100 मोबाइल मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएं स्थापित करने के लिए 56 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं, ताकि किसानों को सही परीक्षण की सुविधा मिल सकें और खेतों में फसलें लहलहा सकें। विशेषज्ञों का मानना है कि इस कार्ड में प्रस्तावित मानकों के अनुरूप उर्वरकों आदि का इस्तेमाल करके किसान प्रति तीन एकड़ पर कम से कम 50 हजार रुपए तक बचा सकते हैं।

एक नजर इस मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के इतिहास पर डालें तो सर्वप्रथम यह योजना साल 2003-04 में गुजरात में एक प्रयोग के आधार पर शुरू की गई थी। तब वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और उन्होंने गुजरात में इस योजना को शुरू किया था। गुजरात में इसका असर ये रहा कि सन २००३-०४ में जब ये योजना लागू हुई, तब गुजरात की कुल कृषि आय १४००० करोड़ थी, जो कि इसके लागू होने के बाद वर्ष २०११ में ८०००० करोड़ हो गईअब जब मोदी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने इसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया है। परीक्षण के नमूने वगैरह यदि उपलब्ध हों तो मृदा स्वास्थ्य कार्ड ऑनलाइन पोर्टल (www.soilhealth.dac.gov.in) के जरिये भी ये कार्ड प्राप्त किया जा सकता है। कहना गलत नहीं होगा कि मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना एक दूरगामी लाभ से प्रेरित योजना है, जिसका प्रभाव धीरे-धीरे दिखाई देगा। मगर, जब यह पूरी तरह से क्रियान्वित हो जाएगो और किसानों तक पहुँच जाएगी तो देश के कृषि उत्पादन के लिए क्रांतिकारी रूप से सफल सिद्ध होने की सामर्थ्य इसमें निहित है। यह न केवल देश की अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान बढ़ाएगी बल्कि किसानों को भी मजबूती देगी।

(लेखिका पेशे से पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)