कुछ ऐसी घटनाएँ जो इस आपदा काल में पुलिस का मानवीय पक्ष तो दिखाती ही हैं, उम्मीद भी जगाती हैं

उत्तर प्रदेश पुलिस ऐसे प्रवासी मजदूरों, जो दिल्ली या महाराष्ट्र जैसे राज्यों से बेरोजगारी और बेबसी के कारण पैदल ही घर जाने को मजबूर हुए, के लिए किसी देवदूत की भाँति सामने आई है। इस कोरोना महामारी में ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं जहाँ पुलिस के मित्रवत मानवीय चेहरे स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे हैं। निश्चित रूप से इस तरह की घटनाएँ आपदा के इस समय में  किसी उम्मीद की तरह हैं।

कोरोना महामारी के इस दौर में जहाँ एक ओर भय और हताशा का माहौल है, वहीं जगह-जगह से ऐसी खबरें भी सुनने को मिलती हैं जो हमारी इस उम्मीद और इच्छाशक्ति को मजबूत करती हैं कि कोरोना हारेगा और भारत जीतेगा। कोरोना को हराने के लिए जहाँ आमलोगों का अभूतपूर्व सहयोग मिला है, वहीं कोरोना वारियर्स के अथक परिश्रम ने पूरे भारतीय जनमानस के अंदर ये विश्वास भरा है कि कोरोना  योद्धाओं के रहते उनका कुछ नहीं बिगड़ सकता है ।

इन कोरोना योद्धाओं में जहाँ डॉक्टरों और नर्सों की टीमें अपने जीवन को दांव पर लगा मरीजों की सेवा में दिन रात जुटी हैं, वहीं पूरे भारत वर्ष में पुलिस बल का अभूतपूर्व सहयोगी एवं मानवीय चेहरा सबके सामने आया है।

अपने कंधे पर समाज की सुरक्षा का भार ढोने वाली पुलिस ने अब कोरोना को भी हराने की जिम्मेदारी ले ली है। इसके कारण आज सैंकड़ों पुलिस कर्मियों को अपनी जान तक गंवानी पड़ी है लेकिन इसके बावजूद भी ये खाकी वर्दी धारी योद्धाओं ने अपने आप को कोरोना के खिलाफ जंग में सबसे अग्रिम पंक्ति में अब तक रखा है। ऐसे कुछ प्रसंगों को साझा करना निश्चित ही इन पुलिसकर्मियों के प्रति सच्चा आभार होगा जो लगातार इस युद्ध में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर रहे हैं।

एक घटना मध्य प्रदेश की है। कर्नाटक से गोरखपुर जा रही श्रमिक स्पेशल ट्रेन में सवार ‘साफिया’ तब बेहद परेशान हो गईं जब उन्हें अपनी छोटी बच्ची के लिए कहीं दूध नहीं मिल रहा था। गाड़ी भोपाल स्टेशन पर रुकी हुई थी और वहॉं खड़े आरपीएफ जवान में उन्हें उम्मीद दिखी।

जवान इंदर यादव जब उस छोटी बच्ची के लिए दूध लेने बाहर गए और लौटे तब तक ट्रेन प्लेटफ़ॉर्म से खुल चुकी थी। इंदर ने प्लेटफॉर्म पर दौड़ लगाकर उस महिला को दूध पहुंचाया। हम आप शायद इस दौड़ को न समझ पाएँ पर यह साफिया जानती होंगी कि यह कितनी महान दौड़ थी। बाद में उस महिला ने वीडियो पोस्ट कर उस जवान के प्रति अपना आभार भी प्रकट किया।

इसी प्रकार देश के सभी हिस्सों से पुलिस के इस मानवीय स्वरूप की तस्वीरें सामने आ रही हैं। इसी कड़ी में असम के डिब्रूगढ़ में एक गरीब सब्जी बेचने वाली महिला को डिब्रूगढ़ पुलिस ने बाइक खरीद कर दिया ताकि वह अपने परिवार के सदस्यों का समुचित भरण पोषण कर सके।

वहीं असम में ही नगांव में अकेले फंसे बुजुर्ग के पी अग्रवाल का जन्मदिन मनाकर सबके बीच यह सन्देश दिया कि पुलिस भी आपके परिवार की ही सदस्य है । निश्चित रूप से इस अपनेपन से इस कठिन दौर में लोगों को संबल मिला और पुलिस जनता के बीच की दूरी कम हुई।

मध्य प्रदेश के इंदौर और जबलपुर में तो सड़क मार्ग से सैंकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर लौट रहे लोगों के लिए मध्य प्रदेश पुलिस ने चप्पलों की व्यवस्था की और उनके लिए नाश्ते और भोजन का प्रबंध किया।

इसी प्रकार उत्तर प्रदेश पुलिस का भी अत्यंत ही मानवीय चेहरा सबके सामने आया है। हाल ही में दिल्ली से सम्भल पैदल जा रहे दम्पति के गोद मे नवजात को देखकर हापुड़ जिले के बाबूगढ़ थाने के इंस्पेक्टर उत्तम सिंह राठौड़ ने उस दम्पति से पैदल जाने का कारण पूछा। दम्पति द्वारा अपनी बेबसी बताए जाने पर इंस्पेक्टर ने उन दोनों को भोजन करवाया और उन्हें घर तक भेजने के लिए बस से जाने का प्रबन्ध किया।

उत्तर प्रदेश पुलिस ऐसे प्रवासी मजदूरों जो दिल्ली या महाराष्ट्र जैसे राज्यों से बेरोजगारी और बेबसी के कारण पैदल ही घर जाने को मजबूर हुए, के लिए किसी देवदूत की भाँति सामने आई है। इस कोरोना महामारी में ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं जहाँ पुलिस के मित्रवत मानवीय चेहरे स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे हैं।

कोरोना के हॉटस्पॉट केंद्रों पर भी पुलिस बलों के द्वारा उतने ही शिद्दत और सत्यनिष्ठा की भावना के साथ लोगों की मदद की जा रही है जिस दौरान कई पुलिस कर्मी रोजाना संक्रमित भी हो जा रहे हैं, फिर भी इनके द्वारा अपने कर्तव्यों का पालन पूरे निष्ठा और ईमानदारी से किया जा रहा है।

अंत में, ऐसे मुश्किल समय में पुलिस बल जिस सहृदयता से पेश आ रहे हैं, वो ये बताता है कि पुलिस अपने कर्तव्यों का सफलतापूर्वक निर्वहन कर रही है। पुलिस पर जो कड़क छवि होने के आरोप लगते रहे हैं तो उसके पीछे की भूमिका भी इस बार सभी लोगों को समझ में आ रही है कि पुलिस हम आमजन के हितों की रक्षा के लिए अराजक तत्वों के विरुद्ध कड़े रुख अख्तियार करती है, अन्यथा उसका अत्यंत मानवीय पक्ष भी है।

(लेखक इतिहास के अध्येता हैं तथा विभिन्न अखबारों तथा ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म्स के लिए लिखते हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)