संविधान दिवस : सिर्फ अधिकार नहीं, मौलिक कर्तव्यों के प्रति भी सजग हों नागरिक

भारत के मूल संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों का प्रावधान किया गया था। इसके लिए मूलाधिकार अध्याय बनाया गया था। लेकिन उसमें मूल कर्तव्यों का उल्लेख नहीं था। बाद में यह अनुभव किया गया कि नागरिकों के कुछ मूल कर्तव्यों का भी प्रावधान होना चाहिए। कर्तव्यों के बिना अधिकार अधूरे होते हैं। दूसरे शब्दों में जब हम अधिकारों का उपयोग करते हैं, तब हमारे राष्ट्र व समाज के प्रति कर्तव्य भी होते हैं। इसी विचार के अनुरूप संविधान में संशोधन करके इसमें मूल कर्तव्य शामिल किए गए। इसके लिए संविधान में अनुछेद 51ए का सृजन किया गया।

संविधान दिवस वस्तुतः कर्तव्य बोध का अवसर होता है। देश को संविधान के अनुरूप चलाने में जन सामान्य का भी योगदान रहता है, उनकी भी इसमें भूमिका होती है। इसीलिए भारतीय संविधान की प्रस्तावना हम भारत के लोग से हुई है। संविधान सभा ने 26 नवम्बर, 1949 को संविधान पारित किया। लेकिन इसे 26 जनवरी, 1950 को विधिवत लागू किया गया। यह हमारा गणतंत्र दिवस हुआ।

आजादी के पहले छब्बीस जनवरी को स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता था। इसका निर्णय उन्नीस सौ उनतीस के  लाहौर कांग्रेस अधिवेशन लिया गया था। देश पन्द्रह अगस्त को स्वतंत्र हुआ। ऐसे में इस तिथि को गणतंत्र दिवस के रूप में राष्ट्रीय पर्व की प्रतिष्ठा प्रदान की गई। जबकि छब्बीस नवम्बर भारत के संविधान दिवस के रूप में घोषित किया गया।

भारत के मूल संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों का प्रावधान किया गया था। इसके लिए मूलाधिकार अध्याय बनाया गया था। लेकिन उसमें मूल कर्तव्यों का उल्लेख नहीं था। बाद में यह अनुभव किया गया कि नागरिकों के कुछ मूल कर्तव्यों का भी प्रावधान होना चाहिए। कर्तव्यों के बिना अधिकार अधूरे होते हैं। दूसरे शब्दों में जब हम अधिकारों का उपयोग करते हैं, तब हमारे राष्ट्र व समाज के प्रति कर्तव्य भी होते हैं। इसी विचार के अनुरूप संविधान में संशोधन करके इसमें मूल कर्तव्य शामिल किए गए। इसके लिए संविधान में अनुछेद 51ए का सृजन किया गया।

इसके अनुसार भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं  राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे। स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे, भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे। देश की रक्षा करे और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे आदि आदि। बयालीसवें संविधान संशोधन के द्वारा संविधान में ये दस मूल कर्तव्य जोड़े गये जो बाद में ग्यारह हो गए।

संविधान सभा के लिए जुलाई उन्नीस सौ छियालीस में चुनाव हुए थे। देश के विभाजन के कारण संविधान सभा भी विभाजित हुई। पाकिस्तान की संविधान सभा बंटने के बाद भारतीय संविधान सभा में दो सौ निन्यानवे सदस्य बचे। दो वर्ष ग्यारह माह अठारह दिन में हमारा संविधान बना। विशेष बात यह है कि भारतीय जनमानस ने जितनी शीघ्रता से और जिस समर्पित निष्ठा के साथ अपने संविधान को आत्मसात कर लिया, उसका दूसरा उदाहरण नहीं मिलता। यह दिखाता है कि भारतीय समाज की मनोवृत्ति मूलतः लोकतान्त्रिक थी।

वास्तव में हमारी प्राचीन राजतान्त्रिक व्यवस्था में लोकतंत्र के तत्व मौजूद थे, लेकिन विदेशी आक्रांताओं के आगमन के बाद उसमें विकृतियाँ आती गयीं। बहरहाल, आज हम दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र हैं, हमारा संविधान सबसे बड़ा है, तो इसीके साथ देश के नागरिकों का दायित्व भी बहुत अधिक है कि वे केवल संविधान अधिकारों के प्रति ही आग्रही न रहें बल्कि उसमें निर्धारित कर्तव्यों के प्रति सजगता का परिचय देते हुए देश को आगे ले जाने के लिए काम करें।