बाकी दलों ने तो बस राजनीति की, बाबा साहेब का असल सम्मान भाजपा ने ही किया है !

डॉ. आंबेडकर स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री थे। 1 नवंबर, 1951 को केन्द्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के बाद वे 26 अलीपुर रोड, दिल्ली में रहने लगे, जहां उन्होंने 6 दिसम्बर 1956 को आखिरी सांस ली और महापरिनिर्वाण प्राप्त किया। डॉ. आम्बेडकर की स्मृति में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 2003 को महापरिनिर्वाण स्थल राष्ट्र को समर्पित किया था। इसी इमारत को संविधान निर्माता बाबा साहब के स्मारक के रूप में निर्मित किया गया है। स्पष्ट है कि एक भाजपा सरकार द्वारा घोषित बाबा साहेब के महापरिनिर्वाण स्थल को दूसरी भाजपा सरकार ने ही राष्ट्रीय स्मारक का आकार दिया। बीच में जिनकी सरकार रही, उन्होंने सिर्फ आंबेडकर के नाम पर राजनीति की और अब विपक्ष में बैठकर भी वही कर रहे हैं। जाहिर है, बाबा साहेब का असल सम्मान भाजपा ने ही किया है। 

देश में कई कार्य थे, जिन्हें कई दशक पहले हो जाना चाहिए था। लेकिन, उन्हें नरेंद्र मोदी की सरकार ने पूरा किया। नई दिल्ली में डॉ. आंबेडकर राष्ट्रीय स्मारक का निर्माण भी ऐसे ही कार्यो में शामिल था। इसकी कल्पना को दो दशक से ज्यादा समय बीत गया था। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने इसकी व्यवस्था की थी। लेकिन, उनके हटते ही इस पर कार्य ठप्प हो गया। उसके बाद दस वर्ष तक उनकी सरकार रही, जिन्होंने अभी दलित मुद्दे पर छोले-भटूरे खाकर उपवास किया था।

दस वर्ष का समय कम नहीं होता। लेकिन, डॉ. आंबेडकर राष्ट्रीय स्मारक के निर्माण कार्य को उपेक्षित ही छोड़ दिया गया। इन दस वर्षों तक यूपीए सरकार को बसपा का समर्थन मिलता रहा। कई बार बसपा ने उस सरकार को बचाया था। लेकिन, एक बार भी आंबेडकर राष्ट्रीय स्मारक के निर्माण को शुरू करने हेतु करने की बात उसकी जुबान पर नहीं आई। ये बात अलग है कि पांच वर्ष तक उत्तर प्रदेश में दलित महापुरुषों के नाम पर बहुत स्मारक बने। लेकिन, कैग रिपोर्ट से इस निर्माण की भी एक अलग ही तस्वीर सामने आई थी।

डॉ. भीमराव आंबेडकर राष्ट्रीय स्मारक

नरेंद्र मोदी सरकार ने भव्य डॉ. आंबेडकर राष्ट्रीय स्मारक का निर्माण पूरा किया है। किसी महापुरुष के प्रति यह बड़ा सम्मान है। इसके पीछे बड़ी दूरदर्शिता भी झलकती है। इसे संविधान की पुस्तक का स्वरूप दिया गया है। इस प्रकार यह इमारत अपने स्वरूप से ही बहुत कुछ कहती दिखाई देती है। संविधान की किताब रूप में यह भारत की यह पहली इमारत है। चौहत्तर सौ वर्ग मीटर में बनी इस इमारत पर सरकार ने सौ करोड़ रुपये खर्च किये हैं।

इसमें आधुनिक संग्रहालय  बनाया गया है, जिसके माध्यम से डॉ. आंबेडकर के जीवन और कार्यों को दिखाया जाएगा।  जाहिर है कि यह निर्माण तो डॉ. आंबेडकर के निधन के बाद ही होना चाहिए था। आज भाजपा को दलित विरोधी कहने वाले कांग्रेस-बसपा आदि विपक्षियों को बताना चाहिए कि उन्होंने अपने शासनकाल के दौरान यह कार्य क्यों नहीं किया ?

राष्ट्रीय स्मारक ही नहीं, नरेंद्र मोदी की सरकार ने डॉ. आंबेडकर से जुड़े पंचतीर्थो का भी भव्य निर्माण कराया है। इसमें महू स्थित उनके जन्मस्थान, नागपुर की दीक्षा भूमि, लंदन के स्मारक निवास, अलीपुर महानिर्वाण स्थली और मुम्बई की चयत्यभूमि शामिल है। इस सरकार ने 2015 को आंबेडकर की एक सौ पच्चीसवीं जयंती वर्ष घोषित किया था। इस वर्ष डॉ. आंबेडकर से संबंधित अनेक कार्यक्रम आयोजित किये गए। उनके जन्मदिन 14 अप्रैल को समरसता दिवस और छब्बीस नवंबर को संविधान दिवस घोषित किया गया। अनुसन्धान हेतु सौ छात्रों को लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स और कोलंबिया विश्विद्यालय भेजने का निर्णय लिया गया। इन दोनों संस्थानों में डॉ. आम्बेडकर  ने अध्ययन किया था।

यह स्मारक भारत के संविधान निर्माता डॉ. आम्बेडकर के जीवन और उनके योगदान को समर्पित है। प्रधानमंत्री ने  मार्च, 2016 को इसकी आधारशिला रखी थी। डॉ. आम्बेडकर स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री थे। एक नवंबर 1951 को केन्द्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के बाद वे 26 अलीपुर रोड, दिल्ली में सिरोही के महाराजा के घर में रहने लगे जहां उन्होंने 6 दिसम्बर 1956 को आखिरी सांस ली और महापरिनिर्वाण प्राप्त किया। डॉ. आम्बेडकर की स्मृति में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 2003 को महापरिनिर्वाण स्थल राष्ट्र को समर्पित किया था। इसी इमारत को संविधान निर्माता बाबा साहब के स्मारक के रूप में निर्मित किया गया है। 

इसमें एक प्रदर्शनी स्थल, स्मारक, बुद्ध की प्रतिमा के साथ ध्यान केन्द्र, डॉ. आम्बेडकर की  बारह  फुट की कांस्य प्रतिमा है। प्रवेश द्वार पर  ग्यारह मीटर ऊंचा अशोक स्तम्भ और पीछे की तरफ ध्यान केन्द्र बनाया गया है। डॉ. आम्बेडकर जयंती की पूर्व संध्या पर केंद्र सरकार ने उनके बताए रास्ते से एक समस्या के समाधान का भी प्रयास किया।

दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम के अंतर्गत आरोपी को तत्काल गिरफ्तार करना जरूरी नहीं होगा. प्राथमिक जांच और सक्षम अधिकारी की स्वीकृति के बाद ही दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी। इसके संबन्ध में सरकार दलितों के हित सुरक्षित करने के प्रयास कर रही है। केंद्र ने जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 संबन्धी आदेश को वापस लेने की  अपील सुप्रीम कोर्ट से की है।

केंद्र की इस पहल ने दलितों को उकसाने वालों को करारा जबाब दिया है। सरकार ने संवैधानिक मार्ग चुना। वह इस रास्ते से दलितों का अधिकार सुनिश्चित करने का प्रयास कर रही है। यही डॉ. आम्बेडकर चाहते थे। जबकि कोर्ट के आदेश के खिलाफ हिंसक आंदोलन करने वालों ने डॉ आम्बेडकर के मार्ग का उल्लंघन किया है।

(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)