बिहार चुनाव : राजग के पास विकास का मुद्दा है, जबकि राजद अपने शासन का नाम भी नहीं ले रहा

भाजपा व जेडीयू दोनों सुशासन को महत्व देने वाले दल हैं, जबकि राजद व कांग्रेस के काम करने का अलग तरीका है। इन दलों को विकास से कोई मतलब नहीं। राजद के शासन में राज्य का कुल बजट बाइस  हजार करोड़ का था जो आज दो लाख करोड़ का हो गया है। जब कोई सरकार जनहित में काम करती है, तभी बजट का आकार बढ़ता है। राजद को तो विकास के नाम से ही चिढ़ थी।

बिहार में किसकी सरकार बनेगी, यह चुनाव परिणाम से तय होगा। लेकिन इसमें संदेह नहीं कि बिहार में सुशासन की स्थापना नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली राजग सरकार ने किया। किसी प्रदेश में सुशासन की स्थापना के बाद ही विकास का माहौल बनता है। यह प्राथमिक आवश्यकता होती है। राजग सरकार ने इस पर ध्यान दिया। जबकि इसके पहले राजद सरकार ने इसकी अवहेलना की थी।

साभार : Outlook India

लालू यादव ने डंके की चोट पर सुशासन का मखौल बनाया। उन्होंने जो चुनावी समीकरण बनाया उसमें जाति-मजहब का महत्व था। इसे ‘माई’ (मुस्लिम-यादव) समीकरण कहा गया। राजद की सरकार में सड़क निर्माण या अन्य विकास कार्यों की अवहेलना का दिलचस्प कारण बताया जाता था। उनका कहना था कि ऐसा किया गया तो उसका लाभ बाबू साहब लोगों को मिलेगा।

इस विकास विरोधी मानसिकता ने शासन को कुशासन में बदल दिया। मसखरी वाले भाषण चलते रहे। गरीब गुरबा की दुहाई दी जाती रही। लेकिन उनके नाम पर सत्ता पक्ष से जुड़ा खास वर्ग ही लाभान्वित हो रहा था। इनकी दबंगई चलती थी। इस कारण अराजकता का माहौल बना।

इस माहौल में निवेश और विकास कार्यों के लिए कोई संभावना नहीं बची थी। पशुओं को चारा नसीब नहीं हुआ, गरीबों तक योजनाएं नहीं पहुंची। सत्ता शीर्ष का परिवारवाद पल्लवित होता रहा। जमीन और संपत्ति प्रेम चर्चा में रहे। इस माहौल में नीतीश कुमार के नेतृत्व में राजग ने सरकार बनाई थी।

इनकी पहली चुनौती बिहार के माहौल को सुधारने की थी। सम्पूर्ण प्रशासन राजद के अनुरुप कार्य करने का आदी हो चुका था। नीतीश कुमार सरकार ने प्रशासन के रूपांतरण का कठिन कार्य किया। बिजली-पानी-सड़क-शिक्षा पर ध्यान दिया गया। इन सभी क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य हुए।

भाजपा व जेडीयू दोनों सुशासन को महत्व देने वाले दल हैं, जबकि राजद व कांग्रेस के काम करने का अलग तरीका है। इन दलों को विकास से कोई मतलब नहीं। राजद के समय में स्वास्थ्य विभाग का बजट एक हजार करोड़ रुपये का था, जबकि आज यह दस हजार करोड़ रुपये का है।

साभार : The Financial Express

राजद में कृषि का वार्षिक बजट दो सौ इकतालीस करोड़ का था, जो बढ़ कर आज तीन सौ पन्द्रह करोड़ रुपये का हो गया है। राजद में शिक्षा विभाग का बजट चार सौ तीस करोड़ रुपये था। अब यह बजट पैतीस हजार करोड़ रुपये है। राजद के शासन में राज्य का कुल बजट बाइस  हजार करोड़ का था जो आज दो लाख करोड़ का हो गया है। जब कोई सरकार जनहित में काम करती है, तभी बजट का आकार बढ़ता है। राजद को तो विकास के नाम से ही चिढ़ थी।

आज प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत बिहार के करीब बहत्तर लाख किसानों के खाते में छह हजार रुपये की राशि प्रतिवर्ष भेजी जा रही है। राज्य में रेल सेवा के विकास के लिए करीब नौ हजार करोड़ रुपये की परियोजनाओं को स्वीकृति दी गयी है। कई योजनाओं का तो शुभारंभ भी हो गया है।

पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनाने के लिए छह सौ करोड, कौशल विकास कार्यक्रम के लिए पन्द्रह सौ पचास करोड़ रुपये, भारतमाला प्रोजेक्ट के अंतर्गत योजनाओं के लिए अट्ठाइस सौ करोड़ रुपये, राज्य में धार्मिक स्थलों के बीच संपर्क के लिए चार हजार करोड़ रुपये, व्यावसायिक, आवागमन और व्यापार की पहुंच बढ़ाने की दृष्टि से विशेष पैकेज के तहत करीब पचपन हजार करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है।

बिहार में करीब अट्ठाइस हजार किमी नेशनल हाईवे के निर्माण और विस्तार के साथ गंगा, सोन, कोसी नदी पर पांच पुलों के निर्माण की मंजूरी भी दी गयी है। जिसका शिलान्यास भी शीघ्र होगा। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत साढ़े बाइस हजार किमी लंबी ग्रामीण सड़कों को पूरा करने का लक्ष्य है। प्रधानमंत्री ने मात्र एक पखवाड़े के भीतर राज्य को चार किस्तों में अनेक प्रकार की सौगात दी। अभी और उपहार मिलने वाले हैं।

बक्सर में दस हजार करोड़ रुपये की लागत से तेरह सौ मेगावाट के बिजली संयंत्र का निर्माण चल रहा है। मिथिलांचल मुख्यालय दरभंगा में एम्स के निर्माण को हरी झंडी मिल गयी है, तो कोसी महासेतु का भी उद्घाटन हो गया। कोरोना से निपटने के लिए राज्य के बिहटा और मुजफ्फरपुर में पांच-पांच सौ बेड के अस्पताल बनाया गये हैं।

मुद्रा योजना, आयुष्मान योजना, उज्ज्वला योजना, स्वनिधि व स्वामित्व योजना आदि का लाभ भी गरीबों को मिल रहा है। यह राजग की केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा बिहार के लिए किए गए काम हैं, वहीं दूसरी तरफ राजद अपने समय के शासन की चर्चा से ही भाग रहा है।

(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)