सबरीमाला : ‘कोर्ट के फैसले का विरोध बस पुरुष नहीं कर रहे, हमारी माताएं-बहनें भी कर रही हैं’

शाह ने कहा कि केरल की विजयन सरकार ने भगवान अयप्पा के भक्तों के दमन का कुचक्र चला रखा है, लेकिन हर स्थिति में भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता सबरीमाला मंदिर के भक्तों के साथ चट्टान की तरह खड़े हैं। भाजपाध्यक्ष ने भगवान अयप्पा के भक्तों की पैरवी करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा सबरीमाला पर दिए गए फैसले का विरोध बस पुरुष नहीं कर रहे हैं, बल्कि भगवान अयप्पा में श्रद्धा रखने वाली हमारी माताएं-बहनें भी कर रही हैं।

हमारे देश में सनातन धर्म से जुड़े धार्मिक स्थलों पर पारंपरिक तौर तरीकों से पूजा पद्धतियों का चलन रहा है, जिसमें स्थानीय संस्कृति, दशकों से चली आ रही विशिष्ट परंपरा भी निहित है। बीते कुछ दिनों से देश में केरल के सबरीमाला मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से विवाद पैदा हो गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश को अनुमति दे दी थी। लेकिन धीरे-धीरे यह मुद्दा गंभीर रूप धारण करने लगा जिसके बाद सबरीमाला मंदिर के भगवान अप्पा के भक्तों जिनमें महिलाएं भी शामिल हैं, ने सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले का विरोध शुरू कर दिया।

ज्ञात हो कि सबरीमाला में श्रद्धालुओं का अपने प्रमुख देवता भगवान अयप्पा की पूजा करने का भी एक अनोखा तरीका है। यहां अयप्पा शास्वत ब्रह्मचारी हैं, जिस कारण मंदिर प्रशासन में 10-50 साल के आयु वर्ग की महिलाओं व लड़कियों के जाने पर मनाही है।

साभार : समाचार जगत

हाल ही में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने भी केरल के कन्नूर में एक रैली को संबोधित करते हुए स्पष्ट किया कि हमारे देश में विभिन्न मंदिर अपने नियमों, मानदंडों, परंपराओं और अनुष्ठानों के आधार पर चलते हैं। लेकिन इसका कतई यह मतलब नहीं निकाला जा सकता है कि सभी मंदिरों में महिलाओं को प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। भारत में ऐसे भी कई मंदिर हैं जहां पुरुषों को भी प्रवेश की अनुमति नहीं है। इसके अलावा देशभर में खुद सैकड़ों अन्य अयप्पा मंदिर हैं जो महिलाओं को प्रवेश करने से नहीं रोकते हैं।

अमित शाह ने केरल की वामपंथी सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि राज्य सरकार कोर्ट के सबरीमाला पर दिए गये निर्णय की आड़ में भगवान अयप्पा के भक्तों के दमन का रुख अपना रही है, जिस कारण केरल के अंदर आपातकाल जैसे हालात पैदा हो गये हैं।

उन्होंने कहा कि केरल की विजयन सरकार ने भगवान अयप्पा के भक्तों के दमन का कुचक्र चला रखा है, लेकिन हर स्थिति में भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता सबरीमाला मंदिर के भक्तों के साथ चट्टान की तरह खड़े हैं। भाजपाध्यक्ष ने भगवान अयप्पा के भक्तों की पैरवी करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा सबरीमाला पर दिए गए फैसले का विरोध बस पुरुष नहीं कर रहे हैं, बल्कि भगवान अयप्पा में श्रद्धा रखने वाली हमारी माताएं-बहनें भी कर रही हैं।

बहरहाल हमारे देश के संविधान में सभी को धार्मिक स्वतंत्रता की आज़ादी है और न्यायालय द्वारा यह फैसला भक्तों की धार्मिक स्वतंत्रता पर कुछ हद तक रोक लगाता है। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि ‘मासिक धर्म की आड़ लेकर लगाया गया प्रतिबंध महिलाओं की गरिमा के विरुद्ध और अपमानजनक है।’ लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि यह प्रतिबंध सामाजिक नहीं है और केवल सबरीमाला मंदिर तक सीमित है। वह भी इसलिए क्योंकि यहां भगवान अयप्पा नैष्ठिक ब्रह्मचारी के रूप में स्थापित हैं।

चूंकि सनातन धर्म विविधताओं से भरा है इसलिए देश के हर प्रांत में स्थित मंदिरों में भक्तों के पूजा करने की विधि भिन्न हो सकती है। जहां तक बात सामाजिक कुरीतियों की है, तो हमें इसे धार्मिक मान्यताओं से अलग रखना पड़ेगा। दहेज़ प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या या तीन तलाक यह धर्म का हिस्सा नहीं हैं। इसके लिए हम अदालतों का दरवाजा खटखटा सकते हैं। परन्तु धार्मिक स्थलों की परम्पराओं और मान्यताओं के लिए हम अदालती रास्ता नहीं अपना सकते हैं, क्योंकि यह लोगों की आस्था से जुड़ा विषय है।

खैर, गौर करने वाली बात यह है कि केरल में कम्युनिस्ट पार्टी सत्ता में है। लेकिन बावजूद इसके वह संघ व भाजपा पर सबरीमाला के बहाने माहौल बिगाड़ने का आरोप लगा रही है। केरल सरकार ने बीजेपी, संघ तथा अन्य संगठनों के 3500 से अधिक कार्यकर्ताओं को झूठे आरोपों में गिरफ़्तार किया है।

साभार : न्यूज़ मोबाइल डॉट इन

केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन ने कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों को लागू किया जाएगा और इसमें वह किसी विरोध को बर्दाश्त नहीं करेंगे। उनके अनुसार असामाजिक तत्वों और अपराधियों ने मंदिर को अपना अड्डा बना लिया है। विजयन को बताना चाहिए कि क्या भगवान अयप्पा के भक्त अपराधी हैं जो अपनी धार्मिक भावनाओं पर आघात से आहत हैं?

इतना ही नहीं, सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी ने तो सबरीमाला को बाबरी मस्जिद प्रकरण से जोड़ दिया। इससे समझा जा सकता है कि कम्युनिस्ट पार्टी को जब भी मौका मिलता है वह सनातन धर्म से जुड़ी परम्पराओं और मान्यताओं को नष्ट करने पर अमादा हो जाती है।

गौरतलब है कि इस बार भी समानता के नाम पर ढोंग रचकर उच्च न्यायालय के फैसले की आड़ में कम्युनिस्ट अपने विचारों को भारतीय संस्कृति पर थोपने का प्रयत्न कर रहे हैं। अगर हम थोड़ा पीछे जाएँ तो सुप्रीम कोर्ट द्वारा जलिकट्टू पर भी फैसला आया था, लेकिन उसपर क्या हुआ। यह स्पष्ट करता है कि लोगों की आस्था के विषय के मुद्दों पर उच्च न्यायालय को भी सजग रहने की आवश्यकता है। ऐसे विषयों पर लोग खुद उचित समय आने पर निर्णय ले सकते हैं।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)