गुजरात चुनाव : विकास के मुद्दे पर मात खाने के बाद जातिवादी राजनीति पर उतरी कांग्रेस

कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी गुजरात में पाटीदार, ठाकोर और दलित समुदाय के छुटभैय्या नेताओं की खुशामद में जुट गई है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भारत सिंह सोलंकी ने कहा कि हार्दिक पटेल जिस सीट से चाहें, टिकट दिया जाएगा।  ये नए नेता स्वयं कांग्रेस में आते तो कोई बात नहीं थी, लेकिन कांग्रेस जैसी सबसे पुरानी और सर्वाधिक समय तक शासन करने वाली पार्टी का इन नेताओं के स्वागत में बिछ जाना उसकी दुर्दशा को ही दिखाता है।

गुजरात में भाजपा को सत्ता से हटाने के लिए कांग्रेस अपने तरकश के सभी तीर आजमाती रही है। लेकिन,  पिछले तीन विधानसभा चुनाव में उसे कामयाबी नही मिली। इस बार स्थिति बदली थी।  नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन गए। कांग्रेस को लगा कि इस बार मुकाबला पहले की अपेक्षा आसान होगा। सो राहुल गांधी ने मोर्चा खोल दिया।  

गुजरात में शासन के दौरान नरेंद्र मोदी पर पूरे समय कांग्रेस द्वारा हमले होते रहे। उन्हें मौत का सौदागर तक बताया गया।  लेकिन, कोई नुस्ख़ा कारगर नहीं हुआ। कांग्रेस ने सोचा होगा कि इस बार मुकाबला प्रदेश के मुख्यमंत्री से होगा। लेकिन, उसके शुरुआती कदम ही डगमगा गए।  उसने विकास के मुद्दे से शरुआत की। कांग्रेस के विकास के मुद्दे की नरेन्द्र मोदी ने हवा निकाल दी।  इतना ही नहीं, इस मुद्दे पर वह कांग्रेस को ही कठघरे में खड़ा कर रहे हैं।

मोदी के अनुसार, कांग्रेस केंद्र में रहते हुए गुजरात के विकास में अवरोध पैदा करती रही। उसने राज्य के विकास की उन सभी योजनाओं को लटकाए रखा जिन पर केंद्र के सहयोग की जरूरत थी। कुछ समय पहले नरेंद्र मोदी ने सरदार सरोवर बांध का उद्घाटन किया था। इस परियोजना का शिलान्यास छप्पन वर्ष पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने किया था, लेकिन इसका उद्घाटन नरेंद्र मोदी के प्रयासों से संभव हुआ।

प्रधानमंत्री मोदी ने रो-रो फेरी सर्विस का किया उद्घाटन (साभार : गूगल)

इसी प्रकार हाल ही में नरेंद्र मोदी ने ‘रो रो फेरी सेवा’ का उद्घाटन किया। यह भी चालीस वर्ष पुरानी परियोजना है। कांग्रेस ने इस पर कोई कार्य नही किया। मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने इस पर  कार्य शुरू कराया। लेकिन, इसमें समुद्र में भी कार्य करना था। यह विषय केंद्र के अधीन होता है।  इसमे सहयोग की बात तो दूर, यूपीए सरकार ने गतिरोध ही पैदा किया। उसका प्रयास था कि यह परियोजना पूरी न हो।  जबकि यह परियोजना गुजरात ही नहीं,देश के विकास में एक नई इबारत लिखने वाली थी।

दक्षिण भारत का बड़ा हिस्सा समुद्र के किनारे है। ऐसी परियोजना यातायात का बेहतर विकल्प उपलब्ध कराने वाली है। इसके फलस्वरूप गुजरात के दो प्रमुख स्थानों की दूरी सात घण्टे से सिमट कर एक घण्टे पर आ गई। भविष्य में इसका विस्तार मुम्बई और आगे तक होगा। फिर भी कांग्रेस केंद्र में रहते हुए इसे रोकती रही। अब जब ये सब बातें सवाल बनकर गुजरात चुनाव में उसके सामने आ रही हैं, तो उसके पास कोई जवाब नहीं है।

गुजरात में कांग्रेस ने पूरा जोर लगा दिया था। चुनाव प्रचार की कमान खुद राहुल गांधी ने संभाली। विकास को प्रमुख मुद्दा बनाया। कहा कि गुजरात मे विकास पागल हो गया है, ऐसा लगा जैसे इस बार कांग्रेस विकास के मसले पर भाजपा से मुकाबला करेगी। लेकिन, राहुल की अगली गुजरात यात्रा में यह मुद्दा दम तोड़ गया।

राहुल गांधी ने गुजरात में लगाया जोर (सांकेतिक चित्र)

विकास के मुद्दे को छोड़ जातिवादी राजनीति पर पहुँची कांग्रेस

दरअसल ऐसे कुछ ही प्रान्त हैं जहां कांग्रेस मुख्य मुकाबले में बची है। शेष सभी में उसे क्षेत्रीय दलों के सहारे की जरूरत पड़ती है। सबसे अधिक सीट वाले बिहार और उत्तर प्रदेश में वह इसी दौर से गुजर रही है। बिहार में लालू यादव के साथ रहने के अलावा उसके सामने कोई विकल्प नहीं है। वहीं उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान उसने पहले तो अकेले विधानसभा चुनाव लड़ने का मंसूबा दिखाया। सत्ताईस साल यूपी बेहाल-अभियान चलाया। भावी मुख्यमंत्री का एलान भी कर दिया। लेकिन, जैसे-जैसे चुनाव की तारीख करीब आने लगी, उसकी हिम्मत जबाब देने लगी।

अंततः उसने उस समाजवादी पार्टी से समझौता कर लिया, जिसे सताइस वर्षो में सबसे अधिक समय तक शासन करने का अवसर मिला था। इससे जाहिर है कि कांग्रेस इन राज्यो में अकेले चुनाव लड़ने की स्थिति में नहीं थी। अब सपा ने भी झटका दिया है।  निकाय चुनाव अकेले लड़ने का उसने इकतरफा फैसला लिया।  कांग्रेस देखती रह गई।  

गुजरात में कांग्रेस लम्बे समय से सत्ता-सुख से वंचित है। लेकिन, भाजपा से उसका सीधा मुकाबला रहता है। यहां द्विदलीय व्यवस्था है। कोई प्रभावी क्षेत्रीय दल नहीं है। कांग्रेस से उम्मीद थी कि वह अपनी इस हैसियत का निर्वाह स्वाभिमानी ढंग से करती। लेकिन, वह ऐसा नही कर सकी। विकास का मुद्दा भारी पड़ा तो वह जातिवादी मुद्दे पर आ गई।  

सांकेतिक चित्र (साभार नवभारत टाइम्स)

कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी यहां पाटीदार, ठाकोर और दलित समुदाय के नेताओं की खुशामद में जुट गई है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भारत सिंह सोलंकी ने कहा कि हार्दिक पटेल जिस सीट से चाहें, टिकट दिया जाएगा।  ये नए नेता स्वयं कांग्रेस में आते तो कोई बात नहीं थी, लेकिन कांग्रेस जैसी सबसे पुरानी और सर्वाधिक समय तक शासन करने वाली पार्टी का इन नेताओं के स्वागत में बिछ जाना विचित्र ही है।  

मतलब जिन प्रदेशो में कांग्रेस अब सीधे मुकाबले में बची है, वहां भी अपने दम पर चुनाव लड़ने का साहस उसमें नही बचा है। यह नेतृत्व में आत्मविश्वास की कमी को दर्शाता है।  गुजरात के पाटीदार आंदोलन के पीछे कांग्रेस का हाथ बताया जा रहा था। अब ऐसा लग रहा है कि ये आशंकाएं गलत नहीं थीं।  कांग्रेस का हार्दिक पटेल और पाटीदार आंदोलनकारियों से  जैसा रिश्ता सामने आ रहा है, उससे कांग्रेस की प्रतिष्ठा घटी ही है। यदि कांग्रेस को अपने ऊपर विश्वास होता, तो इस प्रकार सहारे की तलाश नहीं करती। जिन प्रदेशो में वह अब लड़ाई की हैसियत नहीं रखती, वहां की बात अलग है।  लेकिन, अब यह प्रवृत्ति गुजरात तक पहुंच गई है।

निश्चित ही आत्मविश्वास की कमी के कारण नेतृत्व ऐसे तरीके अपनाता है। राहुल गांधी के ट्वीट पर जो विवाद उठा है, वह भी इसी का प्रमाण है।  बताया गया कि राहुल गांधी के ट्वीट को फर्जी अकाउंट द्वारा रीट्वीट किया जाता है। इसके पीछे  फर्जी बॉट सोफ्टवेयर होते हैं। रूस, इंडोनेशिया, कजाकिस्तान तक से  उनके ट्वीट को रीट्वीट किया जाता है। बोट्स ऐसा कम्प्यूटर साफ्टवेयर है जो आटोमेटिक तरीके से कार्य करता है,जिसके लिए उसे कमांड दी जाती है।

बहरहाल इतना स्पष्ट है कि कांग्रेस में आत्मविश्वास, स्वाभिमान और स्पष्ट दिशा निर्धारित करने की क्षमता का एकदम आभाव हो गया है। यही कारण है कि बार-बार उसे अपनी रणनीति में बदलाव करना पड़ता है। गुजरात मे भी विकास का मुद्दा पिट जाने के बाद कांग्रेस का जातिवादी राजनीति पर उतर आना उसकी इसी कमजोरी को दर्शाता है।

(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके  निजी विचार हैं।)