बंगाल को हिंसा की आग में धकेल ममता किस मुंह से लोकतंत्र की बात करती हैं?

टीएमसी के कार्यकर्ताओं द्वारा लोकसभा चुनाव में सरेआम धांधली की गई, जगह-जगह हिंसा का तांडव देखा गया, दर्जनों बीजेपी कार्यकर्ताओं की जघन्य हत्या की गई लेकिन न तो ममता के कान पर जू रेंगी और न ही जब-तब मानवाधिकार व लोकतंत्र की दुहाई देने वाले तथाकथित उदारवादियों की आवाज ही सुनाई दी।

क्या पश्चिम बंगाल की स्थिति आज से 20 साल पहले कश्मीर वाली हो गई है? राज्य में एक पूर्ण बहुमत की सरकार होते हुए भी बंगाल के मौजूदा हालात बद से बदतर हो रहे हैं, जिसकी पूरी ज़िम्मेदारी वहां की राज्य सरकार पर जाती है। ममता बनर्जी के मुख्यमंत्री होते हुए राज्य में अत्याचार और अनाचार बहुत बढ़ गए हैं और इसकी शुरुआत अनायास ही हो गई हो, ऐसा भी नहीं है।

राज्य में भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं की हत्या पर ममता बनर्जी व उनकी पुलिस की चुप्पी लोकतंत्र को शर्मसार करने वाली है। टीएमसी के कार्यकर्ताओं द्वारा लोकसभा चुनाव में सरेआम धांधली की गई, जगह-जगह हिंसा का तांडव देखा गया, दर्जनों बीजेपी कार्यकर्ताओं की जघन्य हत्या की गई लेकिन न तो ममता के कान पर जू रेंगी और न ही जब-तब मानवाधिकार व लोकतंत्र की दुहाई देने वाले तथाकथित उदारवादियों की आवाज ही सुनाई दी। बंगाल की स्थिति ऐसी है, जिसको देखकर सिहरन पैदा होती है।

राज्य के गृह सचिव द्वारा दावा किया गया कि राज्य में स्थिति काबू में है, लेकिन सच्चाई यही है कि राज्य में आतंक का राज्य स्थापित हो गया और हिंसा का ऐसा अतिरेक देखने को मिल रहा है जिससे आम लोगों में भी दहशत का माहौल पैदा हो गया है।आरोप यह लगाया जाता है कि बीजेपी द्वारा जानबूझकर बंगाल के हालात को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया जाता है, लेकिन सच्चाई यही है कि ममता बनर्जी सरकार ने हिंसा फैलाकर विरोधियों को इस कदर दहशत में डालने का काम किया जिससे वो अपने लोकतान्त्रिक हक़ का इस्तेमाल ही न कर सकें। 

टीएमसी आज वही हथकंडे अपना रही है जो आज से कभी बंगाल में कम्युनिस्ट सरकार अपनाती थी। बंगाल की इस हालत को देखते हुए क्या राज्य सरकार को सत्ता में बने रहने का नैतिक अधिकार भी है, इस पर एक बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है। अनाचार और हिंसा का माहौल पैदाकर टीएमसी बंगाल को राष्ट्रपति शासन की तरफ धकेल रही है। यह जानते हुए कि अगर सामान्य हालात में चुनाव हुए तो ममता अपनी कुर्सी सलामत नहीं रख सकेंगी।

बंगाल के राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से मुलाकात के बाद बंगाल में राष्ट्रपति शासन के कयास लगाए जाने लगे हैं। राज्य में कानून व्यवस्था का हवाला देकर अगर केंद्र चाहे तो धारा 356 लगा सकती है लेकिन यह सब कुछ राज्यपाल की अनुशंसा पर निर्भर करता है। अभी पश्चिम बंगाल में राजनीतिक माहौल बीजेपी के पक्ष में है, पहली बार राज्य में भाजपा ने 18 लोकसभा सीटें जीती हैं, जिसके बाद टीएमसी वाकई दहशत में है। ऐसे में नरेन्द्र मोदी सरकार को भी बहुत सोच-समझकर कदम उठाने होंगे।

ममता बनर्जी सरकार के अराजक रवैये से जहाँ जनता एक तरफ त्रस्त है, वहीं ममता इस मौके की तलाश में हैं कि सरकार भंग होने की सूरत में वह फिर विपक्षी पार्टियों को एक मंच पर इकठ्ठा कर सकें। हालांकि ममता ने बंगाल में जो अराजकता और तानाशाही दिखाई है, उसके बाद लगता नहीं कि किसी भी सूरत में जनता दुबारा उनपर विश्वास जताएगी। निस्संदेह इस लड़ाई में भाजपा अभी हर तरह से मजबूत स्थिति में है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)