‘शौचालय क्रांति’ लाने में कामयाब रही मोदी सरकार

अब तक देश के 2.30 लाख गांव खुले में शौच से मुक्‍त हो चुके। यदि जिला स्‍तर पर देखें तो 160 जिले इस लक्ष्‍य को हासिल कर चुके हैं। राष्‍ट्रीय स्‍तर पर जहां 2 अक्‍टूबर 2014 को स्‍वच्‍छता कवरेज 38.7 फीसदी था, वहीं 29 अगस्‍त 2017 को यह अनुपात बढ़कर 67.30 फीसदी तक पहुंच गया। जिस रफ्तार से देश में शौचालयों का निर्माण हो रहा है, उसे देखते यह उम्‍मीद है कि 2 अक्‍टूबर 2019 तक देश खुले में शौच के अभिशाप से मुक्‍त हो जाएगा। इससे स्‍पष्‍ट है कि मोदी सरकार देश में शौचालय क्रांति लाने में सफल रही।

भ्रष्‍टाचार, भाई-भतीजावाद में आकंठ डूबी और जाति-धर्म की राजनीति करने वाली कांग्रेसी सरकारों ने साफ-सफाई, शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य, बेकारी जैसी जमीनी समस्‍याओं की ओर बहुत कम ध्‍यान दिया। दूसरे शब्‍दों में कांग्रेसी सरकारें सत्‍ता की राजनीति से आगे नहीं बढ़ पाईं। इसका नतीजा यह हुआ कि अपने नागरिकों को स्‍वच्‍छता की सुविधाएं मुहैया कराने में भारत पाकिस्‍तान, बांग्‍लादेश और श्रीलंका से ही नहीं युद्ध ग्रस्त देश अफगानिस्‍तान से भी पीछे रहा।

स्‍वच्‍छता के मानकों पर पिछड़ने के कारण भारत को अंतरराष्‍ट्रीय मंचों पर कई बार शर्मिंदगी झेलनी पड़ी। 2010 में प्रकाशित यूनिसेफ की “प्रोग्रेस ऑन सेनिटेशन एंड ड्रिंकिंग वाटर नामक रिपोर्ट के अनुसार आधुनिकता और विकास के तमाम दावों तथा सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में दुनिया भर में अपना लोहा मनवाने वाला भारत ऐसे देशों का सरगना है जहां लोग खुले में शौच जाते हैं। उल्‍लेखनीय है कि 2 अक्‍टूबर 2014 को स्‍वच्‍छ भारत अभियान शुरू होने तक ग्रामीण भारत में 66 फीसदी लोगों के पास शौचालय की सुविधा नहीं थी, वहीं शहरों में यह अनुपात 19 फीसदी था।

स्वच्छ भारत अभियान के तहत बने कुछ शौचालय (साभार : गाँव कनेक्शन)

बीमारी-गरीबी की जड़

देखा जाए तो शौचालय की सुविधा होने से न केवल गरिमा और सामाजिक प्रतिष्‍ठा बढ़ती है, बल्‍कि यह पर्यावरण संरक्षण  में  भी सहायक होता है। फिर इससे पेयजल को सुरक्षित बनाने में भी मदद मिलती है। गौरतलब है कि साफ-सफाई  की बुनियादी सुविधा उपलब्‍ध न होने के कारण लाखों लोग उन बीमारियों के शिकार हो जाते हैं जिन्‍हें रोका जा सकता है। एक अनुमान के मुताबिक खुले में शौच से होने वाली बीमारियों से भारत को हर साल बारह अरब रूपए और बीस करोड़ श्रम दिवसों से हाथ धोना पड़ता है।

विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया के जिन क्षेत्रों  में  खुले  में  शौच की प्रथा प्रचलित है, उन्‍हीं क्षेत्रों  में  बाल मृत्‍यु दर अधिक है। हैजे का मूल कारण दूषित पानी और स्‍वच्‍छता की कमी है। इसे भारत और चीन की  तुलना से समझा जा सकता है। भारत से अधिक आबादी वाले चीन  में  खुले  में  मल विसर्जन करने वालों की संख्‍या महज पांच करोड़ और डायरिया से मरने वाले बच्‍चों की संख्‍या मात्र चालीस हजार है। विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन ने अपने निष्‍कर्ष में बताया है कि साफ-सफाई व्‍यवस्‍था के सुधार पर खर्च किए गए प्रत्‍येक डालर से औसतन सात डालर का आर्थिक लाभ होता है। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाया बदलाव

यूपीए सरकार ने 2012 तक सभी को स्‍वच्‍छ पानी और शौचालय सुविधा मुहैया कराने के लिए संपूर्ण स्‍वच्‍छता अभियान चलाया, लेकिन राजनीतिक इच्‍छाशक्‍ति की कमी के चलते इस अभियान ने दम तोड़ दिया। प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने देश को खुले में शौच से मुक्‍त करने को सर्वोच्‍च प्राथमिकता देते हुए इसके लिए समयबद्ध कार्यक्रम तय किया।

महात्‍मा गांधी की 150वीं वर्षगांठ अर्थात 2 अक्‍टूबर 2019 तक भारत को खुले में शौच के अभिशाप से मुक्‍त करने हेतु प्रधानमंत्री ने 2 अक्‍टूबर 2014 को ‘स्‍वच्‍छ भारत अभियान’ शुरू किया। प्रधानमंत्री इस जमीनी सच्‍चाई को जानते थे कि यह महत्‍वाकांक्षी लक्ष्‍य महज सरकारी कार्यक्रमों के जरिए पूरा नहीं होगा। इसलिए उन्‍होंने स्‍वच्‍छता को जनांदोलन बनाया।

सोशल से लेकर प्रिंट मीडिया, टेलीविजन से लेकर फिल्‍मों के जरिए स्‍वच्‍छता के बारे में जागरूकता फैलाई गई। योजना के लिए वित्‍तीय आवंटन बढ़ाने के साथ-साथ पंचायतों, धार्मिक और गैर-सरकारी संगठनों को भागीदार बनाया गया। देश की जनता ने प्रधानमंत्री की शौचालय क्रांति को भरपूर समर्थन दिया। यही कारण है कि इसके नतीजे बेहद उत्‍साहजनक रहे।

अब तक देश के 2.30 लाख गांव खुले में शौच से मुक्‍त हो चुके। यदि जिला स्‍तर पर देखें तो 160 जिले इस लक्ष्‍य को हासिल कर चुके हैं। राष्‍ट्रीय स्‍तर पर जहां 2 अक्‍टूबर 2014 को स्‍वच्‍छता कवरेज 38.7 फीसदी था, वहीं 29 अगस्‍त 2017 को यह अनुपात बढ़कर 67.30 फीसदी तक पहुंच गया। जिस रफ्तार से देश में शौचालयों का निर्माण हो रहा है, उसे देखते यह उम्‍मीद है कि 2 अक्‍टूबर 2019 तक देश खुले में शौच के अभिशाप से मुक्‍त हो जाएगा। इससे स्‍पष्‍ट है कि मोदी सरकार देश में शौचालय क्रांति लाने में सफल रही।

(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)