हताशा और बौखलाहट में प्रधानमंत्री के प्रति भाषाई अशिष्टता पर उतरी कांग्रेस

देश की सबसे पुरानी पार्टी होने का दम भरने वाली वाली कांग्रेस की बात करें तो उसपर भाषाई शुचिता के शीलभंग का कुछ अधिक ही उत्साह सवार हो रहा है। ऊपर से नीचे तक कांग्रेसी नेताओं में जैसे होड़-सी लगी हुई है कि कौन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति कितना ख़राब बोल सकता है। अब जिस पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष ही प्रधानमंत्री के प्रति असभ्य भाषा बोल रहा हो, उसके अन्य नेताओं से भाषाई मर्यादा की अपेक्षा बेमानी ही है।

राजनीति में सहमति-असहमति और आरोप-प्रत्यारोप के होने से इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन असहमति या आरोप की अभिव्यक्ति करते हुए आवश्यक होता है कि भाषाई शुचिता के प्रति सचेत रहा जाए। इस संदर्भ में भारतीय राजनीति की स्थिति चिंतित करने वाली है।

बेशक अमर्यादित भाषा के मामले में कोई भी एकदम पाक साफ़ कहलाने की स्थिति में नहीं है, लेकिन महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि गत चार वर्षों में सबसे अधिक यदि किसीके प्रति भाषाई अभद्रता दिखी है, तो वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। मोदी की लोकप्रियता के कारण भाजपा को लगातार चुनावी सफलताएं प्राप्त होने से हताश और बौखलाया विपक्ष अपनी खीझ जब-तब प्रधानमंत्री के प्रति अपशब्दों के माध्यम  से व्यक्त करता रहता  है।

देश की सबसे पुरानी पार्टी होने का दम भरने वाली वाली कांग्रेस की बात करें तो उसपर भाषाई शुचिता के शीलभंग का कुछ अधिक ही उत्साह सवार हो रहा है। ऊपर से नीचे तक कांग्रेसी नेताओं में जैसे होड़-सी लगी हुई है कि कौन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति कितना ख़राब बोल सकता है।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इन दिनों कथित राफेल घोटाले को लेकर प्रधानमंत्री पर बेहद आक्रामक हैं। उन्हें हर बात में बस राफेल ही नजर आ रहा है। भले ही इस मामले में तथ्य के नाम पर देश के समक्ष वे कुछ भी ठोस रखने में नाकाम रहे हों, लेकिन भाषाई अभद्रता की सभी सीमाएं उन्होंने जरूर लांघ दी हैं। वे अपनी रैलियों में प्रधानमंत्री के लिए ‘चौकीदार चोर है’ जैसे जुमले उछालने में लगे हैं।

यहाँ तक कि सीबीआई प्रकरण तक से उन्होंने मनमाने ढंग से राफेल को जोड़ते हुए प्रधानमंत्री के लिए ‘चोर’ जैसे आपत्तिजनक शब्द का प्रयोग किया। अब जिस पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष ही ऐसी भाषा बोल रहा है, उसके अन्य नेता भाषाई मर्यादा का ध्यान कैसे रख सकते हैं। राहुल का बयान थमा भी नही था कि कांग्रेस के अत्यंत सुशिक्षित और संभ्रांत माने जाने वाले नेता शशि थरूर ने प्रधानमंत्री की तुलना बिच्छू से कर डाली।

भाषाई असभ्यता के इस सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए कांग्रेस नेता दिव्या स्पंदना ने पटेल की विशालकाय मूर्ती के चरणों में खड़े प्रधानमंत्री मोदी के लिए बेहद घटिया शब्द का प्रयोग कर दिया, तो वहीं स्वतंत्र विधायक जिग्नेश मेवाणी ने भी पिछले दिनों एक रैली में प्रधानमंत्री के लिए अत्यंत आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग कर गए। ये बस कुछ हालिया उदाहरण हैं, अन्यथा मोदी के प्रति भाषाई अभद्रताओं का इतिहास तो ‘मौत के सौदागर’ से लेकर ‘नीच’ तक बहुत लम्बा है।

उपर्युक्त बातों से जाहिर है कि राजनीतिक विरोध में विपक्ष इस कदर अंधा हो चुका है कि उसे प्रधानमंत्री पद की गरिमा तक का ख्याल नहीं है। विपक्ष को समझना चाहिए कि प्रधानमंत्री किसी दल-विशेष का नहीं होता बल्कि देश का होता है, जिसका अपमान देश की जनता का अपमान है।

विपक्ष की इस भाषाई अभद्रता के बचाव में तर्क दिया जाता है कि जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे, तो उनके प्रति तत्कालीन विपक्ष भी ऐसी ही भाषा का प्रयोग करता था। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि संप्रग-2 सरकार के दौरान जिस तरह से सरकारी एजेंसियों द्वारा केन्द्रीय स्तर पर एक के बाद एक घोटाले सामने लाए गए, उनके चलते मनमोहन सिंह विपक्ष के निशाने पर रहे थे।

हालांकि तमाम घोटाले सामने आने के बावजूद भाजपा के किसी शीर्ष नेता ने कभी मनमोहन सिंह के लिए ‘चोर’ या किसी प्रकार के अपशब्द का प्रयोग नहीं किया। लेकिन कांग्रेस द्वारा आज जिस तरह से निराधार ही प्रधानमंत्री पर न केवल आरोप लगाए जा रहे हैं, बल्कि उनकी भाषा भी बेहद निम्नस्तरीय हो रही है, वो यही दिखाता है कि राजनीतिक पतन के साथ-साथ कांग्रेस बौद्धिक और नैतिक पतन की दिशा में भी अग्रसर है। जनता सब देखती-सुनती और गुनती है, कांग्रेस की इस भाषाई असभ्यता का हिसाब भी वो चुनाव में जरूर करेगी।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)