बंगाल : संघ कार्यकर्ता बंधु प्रकाश की सपरिवार हत्या से उपजते सवाल

बंगाल में संघ-भाजपा के कार्यकर्ताओं पर हमले होते रहे हैं, जो बीते लोकसभा चुनाव के बाद यहां हुए स्‍थानीय निकाय चुनावों में भाजपा को मिली आशातीत सफलता के बाद और भी बढ़ गए। हालांकि इस मामले में पुलिस राजनीतिक रंजिश से इनकार कर रही है, लेकिन हत्यारे अभी तक हाथ नहीं आए हैं, सो पुख्ता तौर पर कुछ भी कहना ठीक नहीं है। वैसे इस हत्या को अगर लोग राजनीतिक रंजिश से जोड़ रहे तो इसका कारण बंगाल में संघ-भाजपा के कार्यकर्ताओं पर राजनीतिक कारणों से हुए हिंसक हमलों का इतिहास ही है। बहरहाल, इन सबके बीच बंगाल में क़ानून व्यवस्था की विफलता का प्रश्न भी यथावत है।

पिछले दिनों पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद से एक दुखद और आक्रोश पैदा करने वाली खबर सामने आई। यहां आरएसएस के कार्यकर्ता बंधु प्रकाश पाल, उनकी पत्‍नी और 8 वर्षीय बेटे आनंद की जघन्‍य हत्‍या कर दी गई। हत्‍यारों के इस वहशियाना कृत्‍य की यह पराकाष्‍ठा था कि प्रकाश की पत्‍नी गर्भवती थी, यानी गर्भस्‍थ शिशु ने संसार में आन से पहले ही दम तोड़ दिया। उक्‍त तीनों लोगों की हत्‍या भी धारदार हथियार से की गई, ऐसे में पूरा अनुमान बैठता है कि हत्‍यारे किसी तय साजिश के तहत वारदात करने आए थे। उनके मन में कितनी हिंसा व नफरत भरी थी, यह घटना के फोटो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद पता चला। 

जाहिर है ऐसी रक्‍तरंजित घटना के बाद आक्रोश भड़कना था। बंगाल में इस पर सियासी माहौल भी गरमा गया। आरंभिक बयान में आरएसएस के बंगाल सचिव जिष्णु बसु ने इतना ही कहा कि प्रकाश पाल संघ के हालिया एक अभियान साप्‍ताहिक मिलन से जुड़कर काम कर रहे थे। बहरहाल, यह मामला राष्‍ट्रीय सुर्खी बना जरूर लेकिन अफसोस की बात है कि इस संवेदनशील मामले को मीडिया में अधिक तरजीह नहीं मिली। 

बंगाल में संघ-भाजपा के कार्यकर्ताओं पर हमले होते रहे हैं, जो बीते लोकसभा चुनाव के बाद यहां हुए स्‍थानीय निकाय चुनावों में भाजपा को मिली आशातीत सफलता के बाद और भी बढ़ गए। हालांकि इस मामले में पुलिस राजनीतिक रंजिश से इनकार कर रही है, लेकिन हत्यारे अभी तक हाथ नहीं आए हैं, सो पुख्ता तौर पर कुछ भी कहना ठीक नहीं है। वैसे इस हत्या को अगर लोग राजनीतिक रंजिश से जोड़ रहे तो इसका कारण बंगाल में संघ-भाजपा के कार्यकर्ताओं पर राजनीतिक कारणों से हुए हिंसक हमलों का इतिहास ही है। बहरहाल, इन सबके बीच बंगाल में क़ानून व्यवस्था की विफलता का प्रश्न भी यथावत है।  

सवाल है कि अब ममता सहित तमाम अन्‍य विपक्षी और तथाकथित धर्मनिरपेक्ष तत्‍व मुंह में दही जमाकर क्‍यों बैठ गए हैं? ममता के राज्‍य में एक गृहस्‍थी उजड़ जाती है और पूरा मामला राजनीतिक रंजिश से भरा है, फिर भी मुख्‍यमंत्री की ओर से दोषियों के लिए कोई कड़ा बयान सामने क्‍यों नहीं आता है। बंगाल में टीएमसी की खुलेआम मनमानी चलती है। इनके गुंडे जहां चाहें, जहां चाहें हिंसा करने से बाज नहीं आते। यह बातें अब छुपी नहीं हैं। क्‍या ममता इन बातों पर पर्दा डालने का कुत्सित प्रयास कर रही हैं जो कि आम हैं। 

वैसे बंगाल में तो ममता की मनमानी ही चलती है। कोलकाता पुलिस के अधिकारी से यदि पूछताछ करने के लिए सीबीआई की टीम आए तो कोलकाता की पुलिस अपने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर सीबीआई अधिकारियों तक को गिरफ्तार कर लेती है। ऐसे में बंगाल में न्‍याय, कानून व्‍यवस्‍था का कितना मजाक उड़ाया जाता है, यह बताने की आवश्यकता नहीं है। एक ख़ास समुदाय के लोगों पर किसी भी कारण से होने वाले हमलों में जिन्हें लिंचिंग नजर आ जाती है, उन्‍हें बंधु प्रकाश पाल की खुलेआम हत्‍या में क्या नजर आ रहा है। 

हिंदू विरोधी और एक संप्रदाय विशेष परस्‍त तथाकथित बुद्धिजीवी अब कहां छुपकर बैठ गए हैं। तब हास्‍यास्‍पद तरीके से बॉलीवुड के 49 लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम खुला खत लिखा था जिसमें उन्‍होंने लिंचिंग को लेकर विलाप किया था। लेकिन उन्‍हें अब किसने रोका है। यदि वे तब अन्‍याय के खिलाफ थे तो अब भी तो अन्‍याय ही हुआ है, अब वे सामने आकर ममता बनर्जी के नाम खुला पत्र क्‍यों नहीं लिखते। 

भाजपा के नेता संबित पात्रा ने भी ट्वीटर पर इन लोगों की जमकर खबर ली है और यही बात कही है कि अब इन तथाकथित उदारवादी लोगों के मुंह में से एक भी शब्‍द क्‍यों नहीं निकल रहा। बंगाल में राजनीतिक हिंसा का होना नई बात नहीं है। यहां इस तरह की घटनाओं की शृंखला सी रही है और प्रतीत होता है कि ऐसा ही एक दुष्‍चक्र अब फिर शुरू हो गया है। 

सच तो यह है कि बंगाल में अब ममता बनर्जी के पैरों तले जमीन खिसकती जा रही है। वे अपना जनाधार खो रही हैं, इसलिए वहां अराजकता सिर उठाए खड़ी है। बहुत जल्‍द जनता जनार्दन इन्‍हें सबक सिखा देगी और लोकतांत्रिक तरीके से ममता के कुशासन से बंगाल बाहर आएगा।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)