शुचिता की राजनीति के पर्याय थे सुन्दरलाल पटवा

मध्य प्रदेश सरकार का दो बार नेतृत्व कर चुके भारतीय जनता पार्टी के नेता सुंदरलाल पटवा का निधन न केवल उनके दल बल्कि प्रदेश की समूची राजनीति के लिए अपूरणीय क्षति है। जितना भाजपा में उनका सम्मान था, कांग्रेस के नेता भी उतना ही मान उनको देते थे। सरल हृदय के राजनेता सुंदरलाल पटवा स्वयं भी विपक्ष का बेहद सम्मान करते थे। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि वह शुचिता की राजनीति की पाठशाला थे। आज के तमाम राजनेताओं को पटवाजी के व्यक्तित्व से राजनीति की सीख लेनी चाहिए। उन्होंने अपने ६० साल के सार्वजनिक जीवन में स्थापित किया कि राजनीति स्वयं के कल्याण के लिए नहीं है, राजनीति सुख भोगने के लिए नहीं है, बल्कि यह एक माध्यम है जिससे समाज में सार्थक परिवर्तन लाए जा सकते हैं। एक आदर्श राजनेता में जितने गुण होने चाहिए, उन सबका प्रकटीकरण सुंदरलाल पटवा के जीवन से होता है। उनकी छवि एक ईमानदार, कुशल प्रशासक और दूरदृष्टी राजनेता की रही है। जनहित और विकास में उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन लगा दिया। विभिन्न पदों पर रहते हुए उन्होंने विकास की लकीर को ही आगे बढ़ाया। दो बार मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने प्रदेश के विकास को एक नई दिशा दी। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में दो वर्ष केंद्रीय मंत्री रहे, तब भी उनका ध्यान प्रदेश के समग्र विकास पर रहा। 

प्रदेश में शून्य से शिखर तक की जो यात्रा भाजपा ने तय की है, उसमें सुंदरलाल पटवा का महत्त्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने उस वक्त में जनसंघ का काम प्रदेश में खड़ा किया, जब इस विचारधारा के लिए संपूर्ण देश में प्रतिकूल स्थितियां थीं। उन्हें लोकतंत्र के सच्चे सिपाही के नाते भी सदैव याद किया जाएगा। देश में जब आपातकाल लगाया गया, तब प्रदेश में सुंदरलाल पटवा के नेतृत्व में लोकतंत्र की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ी गई। उन्हें आपातकाल का विरोध करने के कारण जेल भी जाना पड़ा। लेकिन, अनेक कष्ट उठाने के बाद भी उन्होंने कभी भी लोकतांत्रिक मूल्यों पर आघात नहीं होने दिया।

सुंदरलाल पटवा जी का कद कितना बड़ा था और जनता में उनकी लोकप्रियता का ग्राफ कितना था, इस बात को समझने के लिए एक उदाहरण ही पर्याप्त है। कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ को उनके ही गढ़ छिंदवाड़ा में सुंदरलाल पटवा ने ही परास्त किया। प्रदेश की राजनीति के इतिहास में छिंदवाड़ा में सिर्फ एक ही बार कमल खिला, जिसका श्रेय पटवाजी को जाता है। दरअसल, उनका व्यक्तित्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्कारों में तपकर निखरा था। उनके सार्वजनिक जीवन का प्रारंभ वर्ष 1941 में इंदौर राज्य प्रजा मण्डल से हुआ। उनके भीतर राष्ट्रनिर्माण की आग जल रही थी। यही कारण रहा कि वह अगले ही वर्ष अर्थात् १९४२ में संघ में सक्रिय हो गए। संघ के प्रचारक रहे। देशहित के आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी करने के कारण उन्हें जेल की यात्रा भी करनी पड़ी। नेतृत्व क्षमता, संगठन कुशलता और नये कार्य को स्थापित करने की क्षमता के कारण उन्हें १९५१ में मध्यप्रदेश में जनसंघ के विस्तार की जिम्मेदारी दे दी गई।

प्रदेश में शून्य से शिखर तक की जो यात्रा भाजपा ने तय की है, उसमें सुंदरलाल पटवा का महत्त्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने उस वक्त में जनसंघ का काम प्रदेश में खड़ा किया, जब इस विचारधारा के लिए संपूर्ण देश में प्रतिकूल स्थितियां थीं। उन्हें लोकतंत्र के सच्चे सिपाही के नाते भी सदैव याद किया जाएगा। देश में जब आपातकाल लगाया गया, तब प्रदेश में सुंदरलाल पटवा के नेतृत्व में लोकतंत्र की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ी गई। उन्हें आपातकाल का विरोध करने के कारण जेल भी जाना पड़ा। लेकिन, अनेक कष्ट उठाने के बाद भी उन्होंने कभी भी लोकतांत्रिक मूल्यों पर आघात नहीं होने दिया। लोकतंत्र के ऐसे योद्धा के जाने से निश्चित ही प्रदेश की राजनीति में एक शून्य बन गया है। अधिक उम्र के कारण भले ही वह राजनीति में सक्रिय नहीं थे, परंतु अनेक सक्रिय राजनेता उनसे प्रेरणा लेकर जनहित के कार्यों में संलग्न रहते थे। अब उनकी स्मृतियों से ही प्रदेश के राजनेताओं को रोशनी लेते रहनी चाहिये।

(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)