तीन तलाक

तीन तलाक के समर्थक बताएं कि उनके लिए संविधान पहले है या मज़हबी कायदे ?

सर्वोच्च न्‍यायालय की संविधान पीठ ने मुस्लिमों में प्रचलित तीन तलाक, निकाह हलाला जैसी कुप्रथाओं पर सुनवाई शुरू कर दी है। सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्‍यायाधीश जस्टिस जेएस खेहर की अध्‍यक्षता में बनी इस पीठ में पांच जज शामिल हैं, जो तीन तलाक पीड़ित मुस्लिम महिलाओं की ओर से दायर सात याचिकाओं पर सुनवाई करेंगे। इन पीड़ित महिलाओं ने हलाला व बहुविवाह जैसी इस्‍लामिक रूढ़ियों को भी कोर्ट में चुनौती दी है।

तीन तलाक : मुस्लिम महिलाओं को उनका अधिकार मिलने की संभावना से घबराए मौलाना

गर्मियों की छुट्टियों में इस बार सर्वोच्च न्यायलय द्वारा स्थापित संवैधानिक पीठ तीन तलाक की वैधता पर लगातार सुनवाई करने जा रही है। पिछले साल गर्मियों की छुट्टियों में प्रधानमंत्री ने न्यायधीशों से आग्रह किया था कि न्यायालय का समय बढ़ाने के विषय में सोचा जाए ताकि महत्वपूर्ण फैसलों पर सुनवाई कर उनके विषय में उचित फैसले लिए जा सके और मामला लम्बे समय तक निलंबित होने से बचा रहे जो न्यायिक प्रक्रिया में

अपने रहनुमाओं से अब मुस्लिम पूछ रहे हैं कि भाजपा क्यों नहीं ?

बीजेपी के जीत के पीछे जो कारण रहे, उनमें से पहला कारण है मोदी पर जनता का विश्वास । जो इस बात से प्रकट होता है कि उन पर लगभग 3 साल की सरकार में एक भी आरोप नहीं है । दूसरा कारण है, सरकार की निर्णय लेने की इच्छाशक्ति । यह बिलकुल सच बात है कि कोई भी व्यक्ति कोई भी काम कर सकता है; परंतु उसके लिए इच्छाशक्ति एक जरुरी योग्यता है, जो कि मोदी और उनकी पार्टी के अंदर है।

मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का दमन करने वाला है तीन तलाक, लगना चाहिए प्रतिबन्ध

तीन तलाक का मामला चर्चा में बना हुआ है। 1937 में मुस्लिम पर्सनल क़ानून यानि शरिया में मिले इस अधिकार ने देश भर में लाखों नुस्लिम महिलाओं की ज़िन्दगी के साथ खिलवाड़ किया है। स्त्री-पुरुष असमानता सहित मुस्लिम औरतों के बुनियादी हक़ से उन्हें वंचित वाली इस शरियाई व्यवस्था पर पूर्ण प्रतिबंध की मांग करते हुए 50,000 से ज्यादा दस्तख़त वाला एक मांगपत्र प्रधानमंत्री को भेजा जा चुका है और अब

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने दिखाया तीन तलाक़ के समर्थकों को आईना

पिछले एक साल से देश में तीन तलाक का मुद्दा गर्माया हुआ है। तमाम मुस्लिम महिला संगठनों ने इस प्रथा को खत्म करने के लिए मोर्चा खोल रखा है। पिछले दिनों मुस्लिम महिलाओं द्वारा उठाया गया ये मुद्दा जब एक मामले के सम्बन्ध में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में पहुंचा तो न्यायालय ने दो टूक लहजे में तीन तलाक को असंवैधानिक और मुस्लिम महिलाओं के साथ होने वाली क्रूरता बताया। अपनी टिप्पणी में

मुस्लिम महिलाओं के हितों के लिए जरूरी है शरियाई व्यवस्थाओं का खात्मा

लॉ कमीशन ऑफ इंडिया ने देश की जनता से कॉमन सिविल कोड या यूनिफार्म सिविल कोड (सामान नागरिक संहिता ) पर सभी से 16 सवाल किये हैं। जिनका मकसद है सरकार संविधान में दिए दिशा निर्देशों पर चलते हुए देश में सभी नागरिकों के लिए एक सामान आचार संहिता लागू की जा सके।  गौरतलब है

मुस्लिम औरतों का हक़ छिनकर इस्लाम की कौन-सी शान बढ़ाएंगे, मिस्टर मौलाना ?

नेशनल लॉ कमीशन की प्रश्नावली पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का रवैया दुर्भाग्यपूर्ण है। लॉ कमीशन ने नागरिकों के विचार के लिए सिर्फ़ एक प्रश्नावली रखी है। उसने इस प्रश्नावली में यह भी नहीं कहा है कि समान नागरिक संहिता लागू कर ही दी जाएगी, बल्कि उसने इस पर एक स्वस्थ चर्चा की बुनियाद डालने का

तीन तलाक के मसले पर मौन क्यों है वामपंथी गिरोह ?

भारतीय कम्यूनिस्टों की चुप्पी इस समय उनके पक्ष का इजहार कर रही है। देश के कॉमरेड-फेमिनिस्ट और चर्च के इशारे पर अम्बेडकर के नाम की माला जपने वाले अम्बेडकरवादी भी इस समय चुप हैं। वे जानते हैं कि इस समय वे बोलेंगें तो अपनी पोल खोलेंगे। भारतीय जनता पार्टी को स्यूडो कम्यूनिस्ट एन्टीलेक्चुअल्स ने ही महिला विरोधी प्रचाारित किया था। यह समय कैसे संयोग का समय है कि भारतीय जनता पार्टी