मायावती

गिरने से अच्छा है कि ठोकर खाकर संभल जाइए, मायावती जी !

बसपा और सपा का घोषित सियासी सौदा फिलहाल तात्कालिक था। इसमें लोकसभा के दो और राज्यसभा की एक सीट को शामिल किया गया था। इस सौदे में सपा को शत-प्रतिशत मुनाफा हुआ। उसके लोकसभा व राज्यसभा के तीनों उम्मीदवार विजयी रहे। लेकिन, बसपा खाली हाँथ रही। एक दूसरे पर कितना विश्वास था, यह मायावती के बयान से ही जाहिर था। मायावती ने कहा था कि राज्यसभा में उनके एजेंट को वोट

यूपी लोकसभा उपचुनाव : सपा-कांग्रेस गठबंधन जैसा ही होगा सपा-बसपा गठजोड़ का भी हश्र !

राष्ट्रीय स्तर पर केसरिया उभार ने उत्तर प्रदेश में विपक्ष को गठजोड़ के लिए विवश कर दिया। लेकिन, इन्होने आज की बीमारी के लिए पच्चीस वर्ष पुरानी दवा लेने का निर्णय लिया है। इस लंबी अवधि में बहुत कुछ बदल गया। गोमती का न जाने कितना पानी बह चुका। अब बसपा संस्थापक कांशीराम हैं नहीं, सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव उस पार्टी के लिए बेगाने हो गए हैं, जिसकी स्थापना उन्होंने की थी। मतलब

नाखून कटाकर शहीद बनने का नाटक कर रही हैं मायावती

“यदि मैं सदन में दलितों की बात नहीं उठा सकती तो मुझे सदन में रहने का अधिकार नहीं।” यह कहते हुए मायावती ने राज्‍य सभा की सदस्‍यता से इस्‍तीफा दे दिया। उपर से देखने पर मायावती के इस्‍तीफे में बलिदान की भावना नजर आती है, लेकिन यदि इसका विश्‍लेषण किया जाए तो यह सियासी वजूद मिट जाने के भय से उठाया गया कदम नजर आएगा।

ईवीएम पर आरोप लगाने वालों की ईवीएम हैकिंग की चुनौती में खुली पोल !

2017 की शुरुआत में हुए पांच राज्यों के चुनावों में जब भाजपा चार राज्यों में अपनी सत्ता स्थापित करने में कामयाब रही, तबसे ही सारे विरोधी एकजुट होकर ईवीएम हैक करने की बात कहकर भाजपा पर आरोप मढ़ने लगे। यूपी चुनाव में जनता द्वारा खारिज की जा चुकीं मायावती ने ईवीएम हैकिंग का किस्सा शुरू किया, जिसे पंजाब की हार से बौखलाए केजरीवाल ने लपकने में जरा भी देर नहीं लगायी। फिर तो केजरीवाल

ईवीएम पर सवाल उठाने की बजाय हार के कारणों पर आत्ममंथन करें विपक्षी दल

पांच राज्यों में चुनाव संपन्न हो गये हैं और परिणाम भी सबके सामने आ चुके हैं। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भाजपा प्रचंड बहुमत से सरकार बनाने की तैयारी में है तो वही मणिपुर और गोवा में भाजपा की सरकारें बन चुकी हैं। यानी पंजाब के अलावा अन्य राज्यों के चुनाव में भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया है। स्पष्ट है कि जनता ने केंद्र की मोदी सरकार के लोक कल्याण से जुड़ी योजनाओं व विकासवादी एजेंडे के

अखिलेश सरकार के विकास के दावों की पोल खोलते आंकड़े

उत्तर प्रदेश चुनाव में सत्तारूढ़ सपा के सर्वेसर्वा अखिलेश यादव ‘काम बोलता है’ का नारा लगाते हुए राज्य में अपने कथित विकास की ढोल पीट रहे हैं, लेकिन जब हम राज्य के विकास से सम्बंधित आंकड़ो पर नज़र डालते हैं, तो दूसरी ही तस्वीर सामने आती है। यूपी विकास केंद्रित मापदंडो पर बेहद पिछड़ा हुआ दिखाई देता है। गौरतलब है कि सन 2012 जब प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार बनी, तबसे लेकर

उत्तर प्रदेश की बदहाली के लिए जवाबदेही किसकी ?

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए सपा-कांग्रेस गठबंधन ने अपना घोषणा पत्र तो भाजपा ने अपना संकल्प पत्र जनता के बीच रख दिया है। बहुजन समाज पार्टी ने बिना किसी घोषणा पत्र के चुनाव में उतरने का फैसला किया है। पिछले कुछ कालखंडों में घोषणा पत्रों को लेकर आम जनता के मन में एक स्वाभाविक धारणा विकसित हुई है कि यह चुनावी वायदों का एक ऐसा कागजी दस्तावेज होता है जो राजनीतिक दलों

यूपी चुनाव : अपराधियों का हाथ, मायावती के साथ

किसी जमाने में यूपी में बहुजन समाज पार्टी का नारा गूंजता था – चढ़ गुंडों की छाती पर, बटन दबेगा हाथी पर । वहीं बीएसपी अब अपने इस नारे को भूल गई है । बीएसपी ने हाल ही में जेल में बंद माफिया डॉन मुख्तार अंसारी को अपनी पार्टी में परिवार समेत शामिल कर अपने इस नारे को ना केवल भुला दिया बल्कि मायावती ने अपने शासनकाल के दौरान वर्तमान की अपेक्षा बेहतर कानून व्यवस्था की अतीतजीविता को

यूपी चुनाव : भाजपा की लहर से भयभीत विपक्षियों ने शुरू की एकजुट होने की कवायद

यूपी विधानसभा चुनावों की बिसात बिछ चुकी है। सभी राजनीतिक पार्टियां अपना-अपना दांव खेलने के लिए तैयार हो चुकी है। एक तरफ यूपी में मुख्य विपक्षी दल बसपा है, तो दूसरी तरफ कांग्रेस अपनी खो चुकी साख को वापस पाने के लिए जद्दोजहद करने में लगी हुई है। सत्तारूढ़ सपा में मचे दंगल ने सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रखा है। सपा में जो दंगल मचा है, उसे लेकर लोगों में भ्रम ही घुमड़

यूपी चुनाव : भाजपा के पक्ष में दिख रही लोकसभा चुनाव जैसी लहर

संभवतः इस सप्ताह चुनाव आयोग उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दे। सभी पार्टियाँ पूरी तैयारी के साथ प्रदेश के चुनावी दंगल में उतरने के लिए बेताब हैं, सभी दल अपनी–अपनी दावेदारी पेश करने में लगे हैं, किन्तु लोकतंत्र में असल दावेदार कौन होगा इसकी चाभी जनता के पास होती है। सत्ता की चाभी यूपी की जनता किसे सौंपती है यह भविष्य के गर्भ में छुपा हुआ है। लेकिन, यूपी में जो