मोदी सरकार

अपने लक्ष्यों की तरफ अग्रसर है नोटबंदी, विफलता की बातें हैं भ्रामक

पिछले साल की गई नोटबंदी के सकारात्‍मक परिणाम अब सामने आने लगे हैं। रिजर्व बैंक ने इसी सप्‍ताह एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें बताया गया है कि जब नोटबंदी की गई थी तो जिन पांच सौ व हजार रूपये के नोटों को बंद किया गया था, उनका मूल्‍य 15.28 लाख करोड़ रुपए था। इस राशि का करीब 99 प्रतिशत हिस्‍सा बैंकिंग सिस्‍टम में वापस आ चुका है। इन पुराने नोटों में से महज 16 हजार नोट ही आना शेष हैं। प्रधानमंत्री

सर्वोच्च न्यायालय ने जब तीन तलाक पर जवाब माँगा था, तब अगर कांग्रेस सरकार होती तो क्या होता ?

तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने केवल मुस्लिम महिलाओं को आजादी ही नहीं दी है, वरन् इससे धर्मनिरपेक्षता के दावेदार भी बेनकाब हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले की सुनवाई के प्रारम्भिक चरण में ही केंद्र सरकार से जवाब मांगा था। कल्पना कीजिये कि तब कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार होती तो क्या होता। क्या ऐसा जवाब दाखिल करने का साहस वो दिखा सकती थी, जैसा वर्तमान भाजपा सरकार ने दिखाया। यदि

नोटबंदी से हुए फायदों की कहानी, इन आंकड़ों की जुबानी

आठ अगस्त को नोटबंदी के 9 महीने हो गये। आज बड़े मूल्य वर्ग के चलन से बाहर की गई मुद्राओं के बदले छापी गई नई मुद्रायेँ 84% चलन में है, जबकि नोटबंदी के पहले बड़े मूल्यवर्ग यथा 1000 और 500 की मुद्रायेँ 86% चलन में थी। फिलवक्त, चलन में मुद्राओं का केवल 5.4% ही बैंकों के पास उपलब्ध है, जबकि नवंबर, 2016 में बैंकों के पास 23.2% मुद्रायेँ उपलब्ध थी। नोटबंदी के तुरंत बाद बैंकों में नकदी की उपलब्धता उसकी

तीन तलाक पर रोक के बाद जश्न मना रही मुस्लिम महिलाएं, मौलानाओं के चेहरे हुए गमगीन !

सर्वोच्च न्यायालय के तीन तलाक पर आए ऐतिहासिक फैसले के बाद खबरिया टीवी चैनलों पर बैठे मौलवियों के गमगीन चेहरे और फैसले के स्वागत में देश के अलग-अलग भागों में जश्न मनाती मुसलमान औरतों के चेहरे के फर्क समझिए। फैसले से दोनों की जिंदगी बदलने वाली है। जहां मौलवी खारिज होंगे अपने समाज में, वहीं मुसलमान औरतें बेहतर भविष्य की तरफ बढ़ेंगी। दरअसल तीन तलाक के खिलाफ आवाजें हमेशा

ये मुसलमानों का तुष्टिकरण करने वाली नहीं, उनके समग्र विकास के लिए काम करने वाली सरकार है !

भले ही उपराष्‍ट्रपति हामिद अंसारी अपने सेवाकाल के आखिरी दिन मुसलमानों में असुरक्षा और घबराहट की भावना की बात कही हो, लेकिन स्‍वयंभू गोरक्षकों की छिटपुट गतिविधियों को छोड़ दिया जाए तो पूरे देश में अमन-चैन कायम है। 2014 के लोक सभा चुनाव के पहले विरोधी नेताओं ने नरेंद्र मोदी के खिलाफ जिस प्रकार का नकारात्‍मक माहौल बनाया था, वह निर्मूल साबित हुआ। सत्‍ता में आने के बाद से ही मोदी

डोलाम विवाद : भारत ने सेना की तैनाती बढ़ाकर चीन को दिया कठोर सन्देश

डोकलाम सीमा पर भारत व चीन के बीच तनाव दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है। इसी सप्‍ताह चीन ने लगातार अलग-अलग माध्‍यमों से भारत को धमकी देकर डोकलाम से अपनी सेना हटाने के लिए कहा और चीन के कथित रक्षा विशेषज्ञ भी जंग की धमकी देने से बाज नहीं आए। इन सब तनावपूर्ण स्थितियों के बीच एक अहम सूचना यह सामने आई है कि भारत ने चीन की परवाह न करते हुए सेना हटाने की बजाय उल्‍टे और सेना

इन तथ्यों से साबित होता है कि आज देश में फौलादी इरादों वाली निर्णायक सरकार है !

केंद्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद एक बात साफ़ हुई है कि विपक्ष की सोच के विपरीत भाजपा ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है। राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर एक सख्त और सर्वमान्य नीतियों को लेकर जनता ने भी सरकार का समर्थन किया है। मुद्दा चाहे राजनीतिक हो, सुरक्षा का हो या आर्थिक, नरेन्द्र मोदी सरकार ने स्टैंड लिया है। इसका नतीजा न सिर्फ चुनावी सफलता के तौर पर परिलक्षित हुआ है, बल्कि आम

‘सरकार की आलोचना के अन्धोत्साह में राष्ट्र की आलोचना पर उतर पड़ने की प्रवृत्ति ठीक नहीं’

समाचार माध्यमों को न तो किसी विचारधारा के प्रति अंधभक्त होना चाहिए और न ही अंध विरोधी। हालांकि यह भी सर्वमान्य तर्क है कि तटस्थता सिर्फ सिद्धांत ही है। निष्पक्ष रहना संभव नहीं है। हालांकि भारत में पत्रकारिता का एक सुदीर्घ सुनहरा इतिहास रहा है, जिसके अनेक पन्नों पर दर्ज है कि पत्रकारिता पक्षधरिता नहीं है। निष्पक्ष पत्रकारिता संभव है। कलम का जनता के पक्ष में चलना ही उसकी सार्थकता है। बहरहाल, यदि किसी

सेना और जांच एजेंसियों के जरिये कश्मीर में आतंकवाद पर सरकार ने बोला दोतरफा हमला !

यूँ तो एक लम्बे समय से केंद्र सरकार ने सेना को कश्मीरी आतंकियों से निपटने के लिए खुली छूट दे रखी है, मगर अब जिस स्तर पर सेना कार्रवाई कर रही उसके अलग ही संकेत हैं। कश्मीर में हिंसा फैलाने वाले आतंकियों के साथ-साथ उनको शह देने वाले अलगाववादियों पर भी सरकार एकदम सख्त रुख अपनाए हुए है। स्पष्ट है कि सरकार अब कश्मीर के सभी अराजक तत्वों से एकदम सख्ती से निपटने का मन बना

ये आंकड़े बताते हैं कि गरीबों तक बैंक पहुँचाने में कामयाब रही मोदी सरकार !

सैद्धांतिक रूप से ही भले ही बैंकों को गरीबों का हितैषी कहा जाता हो लेकिन व्‍यावहारिक धरातल पर बैंकों का ढांचा अमीरों के अनुकूल और गरीबों के प्रतिकूल रहा है। देश में गरीबी की व्‍यापकता एवं उद्यमशीलता के माहौल में कमी की एक बड़ी वजह यह भी है। 1969 में बैंकों के राष्‍ट्रीयकरण के बाद यह उम्‍मीद बंधी थी कि अब बैंकों की चौखट तक गरीबों की पहुंच बढ़ेगी लेकिन वक्‍त के साथ यह उम्‍मीद धूमिल पड़ती गई।