मोहन भागवत

‘हिन्दू चिंतन-दर्शन का अलग रूप है, तो यह हिन्दुओं के जीवन में दिखना भी चाहिए’

भारतीय चिंतन व ज्ञान में विश्व कल्याण की कामना समाहित रही है। तलवार के बल पर अपने मत के प्रचार की इसमें कोई अवधारणा ही नहीं है। सवा सौ वर्ष पहले स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो में भारतीय संस्कृति के इस मानवतावादी स्वरूप का उद्घोष किया था। यह ऐतिहासिक भाषण शिकागो की पहचान से जुड़ गया। इसकी एक सौ पच्चीसवीं जयंती पर शिकागो में विश्व

‘प्रणब मुखर्जी और सर संघचालक मोहन भागवत के विचारों का मूल भाव एक जैसा है’

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने नागपुर में  उदार व शाश्वत भारतीय चिंतन से प्रेरित विचार व्यक्त किये। इस चिन्तन के अभाव में उन लक्ष्यों को प्राप्त ही नहीं किया जा सकता, जिसका उल्लेख किया गया। उन्होंने पंथनिरपेक्षता, राष्ट्रवाद, बहुलतावादी समाज, सहिष्णुता जैसे शब्दों की चर्चा की। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी ऐसे ही समाज और राष्ट्र की आकांक्षा रखता है। इसी दिशा में उसके

संविधान और सेना के प्रति सम्मान से भरा है संघ प्रमुख का वक्तव्य !

मीडिया का एक वर्ग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति सदैव असहिष्णुता से प्रेरित रहता है। संघ से संबंधित किसी भी समाचार का अर्थ से अनर्थ करने में उसे आनंद आता है। इस जुनून में उसे सेना, समाज और संविधान की मर्यादा का भी ध्यान नहीं रहता। वह भूल जाते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक राष्ट्रवादी संगठन है। देश की रक्षा में लगे सभी लोगों के प्रति उसका सम्मान भाव रहता है।

सेना के प्रति संघ के समर्पण को किसी प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं, वो इतिहास में दर्ज है !

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को लेकर तमाम प्रकार की भ्रांतियां एवं दुष्प्रचार लंबे समय से देश में फैलाए जाते रहे हैं। कांग्रेस एवं वामी बुद्धिजीवियों का एक धड़ा संघ के लिए साम्प्रदायिक एवं राष्ट्र विरोधी संगठन जैसी अफवाहों को हवा देने की जिम्मेदारी अपने कंधो पर लम्बे समय से लिए बैठा है। किंतु, वर्तमान समय में इनका हर दाँव विफ़ल साबित हो रहा है, जिससे तंग आकर इस कबीले के लोगों ने नया ढंग इजाद किया है – वह है संघ से

बंगाल में भाजपा के बढ़ते प्रभाव से घबराई ममता तानाशाही पर उतर आई हैं !

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी वोटबैंक सियासत में इतना उलझ गई हैं कि अब उन्हें राष्ट्रवादी विचारो से परेशानी होने लगी है। वस्तुतः इसे वह अपने लिए सबसे बड़ी चुनौती मानने लगी हैं। यही कारण है कि उनकी सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत के कार्यक्रम हेतु महाजाति आडिटोरियम की बुकिंग रदद् करा दी। यह राज्य सरकार का आडिटोरियम है। बताया जाता है कि संबंधित अधिकारियों

उनका इतिहास कमजोर है, जिन्हें आज़ादी की लड़ाई में संघ का योगदान नहीं दिखता !

संघ की शाखाएं राष्ट्र निर्माण की प्रयोगशाला है जहां स्वयंसेवकों को राष्ट्रीय व सामाजिक गुणों से लैस किया जाता है। संघ के अनेकों संगठन मसलन सेवा भारती, विद्या भारती, स्वदेशी जागरण मंच, हिंदू स्वयंसेवक संघ, भारतीय मजदूर संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और भारतीय किसान संघ अपने कार्यों से देश के रचनात्मक विकास में योगदान दे रहे हैं। सच तो यह है कि

बदलाव के इस दौर में समय के साथ कदमताल करता संघ!

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रतिवर्ष दशहरे पर पथ संचलन (परेड) निकालता है। संचलन में हजारों स्वयंसेवक एक साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ते जाते हैं। संचलन में सब कदम मिलाकर चल सकें, इसके लिए संघ स्थान (जहाँ शाखा लगती है) पर स्वयंसेवकों को ‘कदमताल’ का अभ्यास कराया जाता है। स्वयंसेवकों के लिए इस कदमताल का संदेश है कि हमें सबके साथ चलना है और सबको साथ लेकर चलना है।

बेजा नहीं संघ प्रमुख की चिंता, सात राज्यों में अल्पसंख्यक हुए हिन्दू !

आगरा में आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए संघ के सर संघचालक मोहन भागवत…