वामपंथी

उड़ी आतंकी हमले के बाद फिर सामने आया वामपंथियों का राष्ट्रविरोधी चेहरा!

वामपंथियों के गढ़ जेएनयू के छात्र-संघ में वामपंथी वर्चस्व आज से नहीं, दशकों से कायम है। कहने की बात नहीं कि वहां कश्मीर का मसला हो या नक्सलियों का, हमेशा ही वहां के छात्र-संघ में जब भी राष्ट्रवादी विचारधारा के प्रस्ताव आए, इन वामपंथियों ने उस पर समर्थन करना तो दूर, उसका कठोर विरोध करना ही उचित समझा। मुझे अच्छी तरह याद है कि जेएनयू के छात्रसंघ में पारित प्रस्ताव कई बार पाकिस्तान और

अन्दर ही अन्दर दरक चुका है जेएनयू में कम्युनिस्टों का दुर्ग

दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में एक बार पुनः अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् को छात्रों का भारी समर्थन प्राप्त हुआ। आम आदमी पार्टी की छात्र इकाई के चुनाव से हटने के बाद विद्यार्थी परिषद् एवं कांग्रेस की छात्र इकाई एनएसयूआई आमने-सामने थी। इस सीधे मुकाबले में विद्यार्थी परिषद् ने भारी अंतर से अध्यक्ष, सचिव एवं सह-सचिव का पद जीत लिया। इस तरह से विद्यार्थी परिषद् दिल्ली विश्वविद्यालय में वर्ष

राष्ट्रवादी विचारधारा की बढ़ती स्वीकार्यता से बेचैन वामपंथी

केरल में कम्युनिस्ट पार्टी खुलकर असहिष्णुता दिखा रही है। लेकिन, असहिष्णुता की मुहिम चलाने वाले झंडाबरदार कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं। क्या उन्हें यह असहिष्णुता प्रिय है? यह तथ्य सभी के ध्यान में है कि कम्युनिस्ट विचारधारा भयंकर असहिष्णु है। यह दूसरी विचारधाराओं को स्वीकार नहीं करती है, अपितु अपनी पूरी ताकत से उन्हें

जेएनयू चुनाव: वामगढ़ में हिली वामपंथियों की जमीन

यह आर-पार की लड़ाई है। महाभारत याद करिए। एक तरफ पांच पांडव, जिनके साथ केवल सत्य यानी नारायण, वह भी विरथ, हथियार न उठाने की प्रतिज्ञा के साथ, और दूसरी तरफ, तमाम महारथी, अतिरथी, रथी एक साथ, भीषणतम हथियारों के साथ। इस बार का जेएनयू चुनाव भी कुछ ऐसा ही है। एक तरफ राष्ट्रवाद की ध्वजा लेकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और दूसरी ओर लफ्फाज़ एवं झूठे वामपंथियों का एका। मज़े की बात तो यह है कि कल तक एक-दूसरे को पानी पी-पीकर कोसने वाले…

दलितों के उत्थान की आड़ में धर्मान्तरण का खुला खेल, वामपंथी भी हैं शामिल!

यदि हम भारत में धर्मान्तरण के मुद्दे को लेकर गम्भीर हैं तो हमें सुनील सरदार और जोसेफ डिसूजा का नाम जानना चाहिए। सुनील सरदार महाराष्ट्र से हैं और ट्रूथसिकर्स इंटरनेशनल के नाम से एक गैर सरकारी संस्था चलाते हैं। यह धर्मान्तरण का भारत में बड़ा खिलाड़ी है। सुनील सरदार घोषित तौर पर धर्मान्तरण के माध्यम से भारत में जिसस का किंगडम स्थापित करना चाहता है।

वामपंथी क्रांतिकारियों के गढ़ जेएनयू का सच!

जब जेएनयू से ख़बर आयी कि एक वामपंथी नेता ने अपने ही साथ पढ़नेवाली छात्रा-कार्यकर्ता के संग बलात्कार किया है, तो सच पूछिए मुझे आश्चर्य तक नहीं हुआ। मनोविज्ञान के मुताबिक जब आप लगातार दुखद और खौफनाक घटनाओं से दो-चार होते रहते हैं, तो धीरे-धीरे उसके प्रति एक स्वीकार्यता का भाव आपमें आ जाता है। जेएनयू में वामपंथियों द्वारा बलात्कार न पहली और न ही आखिरी घटना है।

केवल राहुल गांधी ही नहीं, पूरी एक जमात के मुंह पर है कोर्ट का तमाचा

राहुल गांधी के लिए कोर्ट का यह आदेश एक अदालती आदेश भर नहीं है बल्कि यह एक ऐतिहासिक तथ्य भी बन गया है जिसे इतिहास में दर्ज करते हुए, पुर्व में किये गये इतिहास लेखन के घोटालों में सुधार किया जा सकता है।

कुतर्कों की बुनियाद पर टिका वामपंथी बुद्धिजीवियों का विलासी-विमर्श

हिटलर के प्रचारक गोयबेल्स ने ये उक्ति यूँ ही नहीं कही होगी कि अगर किसी झूठ को सौ बार बोला जाय तो सामने वाले को वो झूठ भी सच लगने लगता है। भारत के संदर्भ में अगर देखा जाय तो आज ये उक्ति काफी सटीक नजर आती है। भारतीय राजनीति एवं समाज के विमर्शों में दो ऐसे शब्दों का बहुतायत प्रयोग मिलता है, जिनकी बुनियाद ही कुतर्कों और झूठ की लफ्फाजियों पर टिकी हुई है। ये दो शब्द हैं दक्षिणपंथ एवं फासीवाद।