उपराज्यपाल

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद भी सुधरने को तैयार नहीं दिख रही आप !

दिल्ली पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को आम आदमी पार्टी अपनी जीत बता रही है। वास्तविकता यह है कि जब तक अरविंद केजरीवाल दिल्ली की संवैधानिक स्थिति को स्वीकार नहीं करेंगे, वह विवाद को ही आमंत्रण देते रहेंगे। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के तत्काल बाद उनकी सरकार ट्रांसफर विवाद लेकर सामने आ गयी। ये दिखाता है कि इन्हें काम करना ही नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला किसीकी हार-जीत नहीं, केजरीवाल की बहानेबाजी पर ‘ब्रेक’ है !

दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच लम्बे समय से चल रही अधिकारों की जंग पर आज देश की सर्वोच्च अदालत ने अपना फैसला सुनाया। इससे पूर्व यह मामला उच्च न्यायालय में भी चला था, तब उच्च न्यायालय ने उपराज्यपाल को प्रमुख प्रशासनिक शक्ति माना था। सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय से जरा अलग रुख लेते हुए दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के मध्य शक्ति

हर शर्मिंदगी से ऊपर उठ चुके हैं केजरीवाल !

दिल्ली को राहत मिली कि उसके मुख्यमंत्री नौ दिन के वातानुकूलित धरने के बाद सकुशल वापस आ गए। इतिहास में जिस प्रकार राजा जंग या शिकार के लिए जाया करते थे, वैसे ही अरविंद केजरीवाल धरने पर चले जाते हैं। उनके साथ धरने पर बैठे उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया और मंत्री सत्येद्र जैन अस्पताल में पहुंच गए थे। खैर, अरविंद केजरीवाल ने फजीहत होती देख

केजरीवाल सरकार का धरना विरोध कम, काम से बचने का ‘इंतजाम’ ज्यादा लगता है !

नयी तरह की राजनीति के वादे के साथ सत्ता में आए अरविंद केजरीवाल ने अपने तीन सालों से अधिक के कार्यकाल में दिखा दिया है कि ‘नयी राजनीति’ से उनका क्या मतलब था। लोग समझ चुके हैं कि ‘नयी राजनीति’ के नाम पर उन्हें केवल ठगा गया। वास्तव में ‘नयी राजनीति’ से केजरीवाल का इशारा राजनीति की पुरानी  व्यवस्थाओं में परिवर्तन की तरफ नहीं बल्कि नए तरह

राजनिवास के सोफे पर लेटे हुए केजरीवाल की यह तस्वीर क्या कह रही है ?

भारतीय राजनीति में धरना बहुत प्रचलित शब्द है। महात्मा गांधी ने इसे अंग्रेजों के खिलाफ हथियार बनाया था। स्वतंत्रता के बाद भी अनेक परिवर्तनकारी धरने देखे गए। दिल्ली के मुख्यमंत्री को यह धरोहर समाजसेवी अन्ना हजारे से मिली। लेकिन, केजरीवाल इसे हर बार नए कलेवर में पेश करते हैं। अन्ना हजारे का धरना-अनशन केजरीवाल के हांथों में पहुंच कर नाटक की भांति लगने

निजी हितों के लिए सत्ता का दुरूपयोग कर फँसे केजरीवाल, शुंगलू समिति ने खोली पोल

नयी और ईमानदार राजनीति का स्वप्न दिखाकर काफी कम समय में ही केजरीवाल ने जनता के मन में अपने प्रति भरोसा पैदा किया और इसी भरोसे के बलबूते दिल्ली की सत्ता पर काबिज भी हुए। मगर, वर्तमान परिस्थितियों पर अगर हम नज़र डालें तो देखते हैं कि अरविन्द केजरीवाल ने जनता के भरोसे के साथ बुरी तरह से खिलवाड़ किया है। खुद को सर्वाधिक ईमानदार नेता का ख़िताब देने वाले केजरीवाल और

शुंगलू समिति की रिपोर्ट से बेनकाब हुआ केजरीवाल की ईमानदारी का असल चेहरा

अगर देश की जनता को हाल के दौर में किसी एक नेता ने सर्वाधिक छला और निराश किया है, तो वो अरविंद केजरीवाल हैं। अपने आप को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाला बताने वाला यह शख्स भ्रष्टाचार और नियमों की अवहेलना करने में सबसे आगे रहा है। केजरीवाल के ईमानदार और पारदर्शी सरकार देने के तमाम दावों को तार-तार कर दिया है शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट ने। दिल्ली के तत्कालीन उपराज्यपाल

केवल दूसरों पर आरोप ही लगाते रहेंगे या अपने वादे भी पूरे करेंगे, केजरीवाल !

आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविन्द केजरीवाल को दिल्ली में सरकार बनाए और मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण किए दो साल से अधिक का समय हो चुका है। फ़रवरी, 2015 में वे 67 सीटें जीतकर बड़े बहुमत के साथ दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुए थे। दिल्ली की जनता ने उनके बड़े-बड़े और लोक लुभावने वादों पर भरोसा कर उन्हें इतना बड़ा जनादेश दिया। लेकिन, सत्ता में आने के बाद से अबतक की अवधि

जनता के पैसे से अपनी छवि चमकाने के चक्कर में फँसे केजरीवाल, फिर खुली नयी राजनीति की पोल

अलग तरह की राजनीति का दावा करने वाले अरविंद केजरीवाल को दिल्ली में सत्तारूढ़ हुए दो वर्ष से अधिक का समय हो चुका है। जनता के हित के बड़े-बड़े काम करने का वादा करके सत्ता में आने वाले केजरीवाल इस दौरान काम तो कुछ नहीं किए हैं; मगर अपने विभिन्न कारनामों के लिए खूब चर्चा में रहे हैं। कभी अपने मंत्रियों की गिरफ़्तारी तो कभी नजीब जंग से लेकर अनिल बैज़ल तक दिल्ली के उपराज्यपालों से

कोर्ट के फैसले के बाद अब रार छोड़ें और दिल्ली में कुछ काम भी करें केजरीवाल

दिल्ली हाईकोर्ट ने केजरीवाल सरकार की अपील पर जो फैसला सुनाया है, वह उसके लिए झटका भी है और बचाव का रास्ता भी। हाईकोर्ट ने साफ कर दिया है कि दिल्ली के असल प्रशासक दिल्ली के उपराज्यपाल ही है। जिस 69वें संविधान संशोधन अधिनियम के तहत दिल्ली में विधानसभा है और सरकार बनी है, उसके मुताबिक दिल्ली का उपराज्यपाल ही दिल्ली का असल प्रशासक है और वह केंद्रीय गृहमंत्रालय के अधीन प्रशासन चलाता है। रही बात विधानसभा की तो उसकी वह हैसियत नहीं है, जो हैसियत संघ के दूसरे राज्यों की है।