वामपंथ

मोदी सरकार के प्रयासों से खत्म हो रहा है नक्सलवाद

पिछले तीन साल में सुरक्षा बलों के 40 नए कैंप खोले गए हैं और 15 खोले जाने हैं। नक्सल प्रभावित इलाकों में मोबाइल टावरों की संख्या बढ़ाई गई है।

भारत ही नहीं, दुनिया भर में हिंसा और दमन से भरा है वामपंथ का इतिहास !

कम्युनिस्ट देशों में असहमति जताने का अर्थ है देशद्रोह। सोवियत संघ ने कैसे अपने नागरिकों के मन में भय और घुटन को जन्म दिया, इसे इतिहास के विद्यार्थी भलीभांति जानते हैं और उसी की अंतिम परिणति सोवियत संघ के विभाजन में हुई। युद्ध और रक्तपात ही साम्यवाद की पहचान है और उसी का परिचायक है, उनका बहुचर्चित नारा ‘लाल सलाम’। भले ही भारत के अधिकांश हिस्से में साम्यवाद की कोई प्रासंगिकता

पतन की कगार पर खड़े वामपंथी खेमे की बौखलाहट

आजकल वामपंथी विचार को मानने वाले छात्र संगठन, पत्रकार समूह और बुद्धिजीवियों में अजीबो-गरीब बेचैनी देखने को मिल रही है। हालांकि इस तरह के लक्षण और इनकी ओछी हरकते कोई नई नहीं है। ये इन दिनों देश में होने वाली छोटी से बड़ी सारी नकारात्मक घटनाओं के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।

गौरी लंकेश की हत्या पर बोलने वाले बुद्धिजीवी केरल की वामपंथी हिंसा पर मुंह में दही क्यों जमा लेते हैं?

300 से अधिक राजनीतिक हत्याएं और हजारों लोग हिंसा के शिकार। चौंकाने वाला आंकड़ा है। मगर, यह आंकड़ा न तो कुख्यात आतंकवादी संगठन आइएस प्रभावित इराक या सीरिया का है और ना ही तालिबान प्रभावित किसी देश का है। यह आंकड़ा उस देश का है, जहाँ एक वामपंथी और घोषित रूप से हिंदुत्व विरोधी पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या पर ऐसा बवाल मचाया जाता है कि मानों देश में सब कुछ असुरक्षित है। वहीं

इतिहास बताता है कि राष्ट्र के लिए हर प्रकार से घातक सिद्ध हुए हैं वामपंथी !

सैद्धांतिक तौर पर वामपंथी विचारधारा उस पक्ष की संवाहक है, जो समाज को बदलकर उसमें अधिक आर्थिक बराबरी का दावा करती है। लेकिन जिस तरह वह राजनीतिक आंदोलन और सर्वहारा वर्ग की क्रांति की आड़ में सत्ता की कमान हड़पकर विचारधारा के फैलाव के लिए हिंसा का सहारा लेती है, उससे साफ है कि उसका व्यवहारिक पक्ष विचारधारा कम, हिंसा का खौलता हुआ कुंड ज्यादा है। वामपंथी विचारधारा के गर्भ

नक्सलगढ़ की छाती पर सवार हो रही सड़कें

इस बात में कोई संदेह नहीं कि सड़कें धीमी गति से ही सही, नक्सलगढ़ की छाती पर सवार हो रही हैं और परिवेश बदल रहा है। भय का वातावरण सड़कों के आसपास से कम होने लगा है। रणनीतिक रूप से पहले एक कैम्प तैनात किया जाता है, जिसे केंद्र में रख कर पहले आस-पास के गाँवों में पकड़ को स्थापित किया जाता है। आदर्श स्थिति निर्मित होते ही फिर अगले पाँच किलोमीटर पर एक और

केरल की वामपंथी हिंसा का जवाब देने के लिए अब मिशन मोड में भाजपा

ईश्वर की धरती कहलाने वाला केरल दानव की धरती बन चुकी है। संघ और भाजपा के कार्यकर्ता यहाँ लगातार वामपंथी गुंडों का निशाना बन रहे हैं। मगर, इसपर मीडिया से लेकर बुद्धिजीवी वर्ग तक खामोशी पसरी है। क्या केरल में मारे जाने वाले इंसान नहीं हैं? क्यों केरल में हो रही हत्याओं पर कथित प्रगतिशील लेखक बिरादरी अपने पुरस्कार वापस नहीं करती?

ख़त्म हो रहा जनाधार, पतन की ओर बढ़ते वामपंथी दल

लेफ्ट पार्टियां देश की राजनीति में अप्रसांगिक होती जा रही हैं। इनकी नीतियों, कार्यक्रमों और विचारों को जनता स्वीकार नहीं कर रही है। इसलिए ही भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) लोक सभा से लेकर राज्य विधानसभा चुनावों में धराशायी होती जा रही हैं।

वैचारिक स्वतंत्रता की आड़ में ख़तरनाक साज़िशों का जाल

एक चर्चित पंक्ति है, ‘जब तलाशी हुई तो सच से पर्दा उठा कि घर के ही लोग घर के लूटेरे मिले’। यह पंक्ति अभी दो दिन पहले आई एक ख़बर पर सटीक बैठती है। हालांकि चुनावी ख़बरों के बीच वह ज़रूरी खबर दब सी गयी। दिल्ली विश्वविद्यालय से एक प्रोफ़ेसर जीएन साईबाबा को वर्ष २०१४ में नक्सलियों से संबंध होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और अब गढ़चिरौली की अदालत ने उम्र कैद की सजा सुनाई

फिदेल कास्त्रो के बहाने भारत के वामपंथ पर बहस

पांच दशक तक क्यूबा पर शासन करने वाले कम्युनिस्ट तानाशाह फिदेल कास्त्रो अब दुनिया में नहीं रहे। साम्यवादी नीतियों के साथ क्यूबा पर राज करने वाले फिदेल का नब्बे वर्ष की आयु में देहांत हो गया। १९५९ में क्यूबा तानाशाह बतिस्ता को सशस्त्र आन्दोलन के जरिये हटाकर फिदेल ने सत्ता पर कब्जा किया था। तबसे लेकर अभी तक क्यूबा में कास्त्रो के परिवार का ही कब्जा है। चूँकि, इस कम्युनिस्ट तानाशाह ने