श्यामा प्रसाद मुखर्जी

हिंदू-हिंदुत्व की दुर्व्याख्या करने वाले समझ लें कि हिंदू देह है और हिंदुत्व उसकी आत्मा!

अपनी अस्मिता एवं सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने के लिए हमारा जन्म से हिंदू होना ही पर्याप्त नहीं है उसमें हिंदुत्व की शौर्य-चेतना का दीप्त होना भी परमावश्यक है।

पश्चिम बंगाल चुनाव : ये लड़ाई सत्ता परिवर्तन की नहीं, बंगाल को ‘सोनार बांग्ला’ बनाने की है

यूँ तो भाजपा हर चुनाव को लेकर गंभीर रहती है, लेकिन बंगाल में बनी राजनीतिक स्थितियों को समझें तो भाजपा अपनी पूरी शक्ति बंगाल के विजय के लिए लगा रही है।

जम्मू-कश्मीर: अनुच्छेद-370 की समाप्ति से टूटी आतंकवाद की कमर, पनप रही विकास की नयी संभावनाएं

370 में हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद में 36% की कमी आई है। गत वर्ष जनवरी से जुलाई के बीच 188 आतंकी गतिविधियाँ दर्ज की गई जबकि इसी अवधि में इस वर्ष 120 आतंकी गतिविधियाँ दर्ज की गई।

‘अगर डॉ मुखर्जी कुछ समय और जीवित रह जाते तो पूरी तरह से खत्म हो जाती कश्मीर समस्या’

राष्ट्रवादी नेता, शिक्षाविद और प्रखर सामाजिक चिंतक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी कांग्रेस की विभाजनकारी नीतियों के लेकर शुरू से ही परिचित थे। आजादी के बाद सरदार पटेल और महात्मा गांधी के आग्रह पर वे नेहरू की कैबिनेट में शामिल ज़रूर हुए थे, लेकिन यह साथ ज्यादा दिन तक नहीं चल सका।

स्वस्थ लोकतंत्र के लिए लोकमत के परिष्कार को आवश्यक मानते थे दीनदयाल उपाध्याय

पं. दीनदयाल उपाध्याय ने स्वस्थ लोकतंत्र के लिए लोकमत के परिष्कार का सुझाव दिया था। उस समय देश की राजनीति में कांग्रेस का वर्चस्व था। उसके विकल्प की कल्पना भी मुश्किल थी। दीनदयाल जी से प्रश्न भी किया जाता था कि जब जनसंघ के अधिकांश उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो जाती है, तो चुनाव में उतरने की जरूरत ही क्या है। दीनदयाल उपाध्याय का चिंतन सकारात्मक था। उनका कहना था कि चुनाव के

आखिर दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी कैसे बनी भाजपा ?

भारत की राजनीति में दलीय व्यवस्था का उभार कालान्तर में बेहद रोचक ढंग से हुआ है। स्वतंत्रता के पश्चात कांग्रेस का पूरे देश में एकछत्र राज्य हुआ करता था और विपक्ष के तौर पर राज गोपाल चारी की स्वतंत्र पार्टी, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी सहित बहुत छोटे स्तर पर जनसंघ के गिने-चुने लोग होते थे। उस दौरान भारतीय राजनीति में एक दलीय व्यवस्था के लक्षण दिख रहे थे। सैकड़ों वर्षों की गुलामी के बाद आजाद हुए

सुन लो पाकिस्तान, अब तो मोदी भी बोल दिए ‘वो कश्मीर हमारा है’

इस बात को अभी ज्यादा दिन नहीं हुए जब दिल्ली में आयोजित एक संवाद कार्यक्रम में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह लेखकों से ‘विचारधारा और राजनीति’ के मुद्दे पर संवाद कर रहे थे। उस संवाद चर्चा के दौरान एक लेखक ने बेबाकी से पूछा कि राजनीति में विचारधारा के प्रश्न पर आप क्या कहते हैं ? इसके जवाब में शाह ने कहा कि विचारधारा को लेकर हम कोई समझौता नहीं कर सकते हैं। हमारी बुनियाद ही विचारधारा आधारित है और हम उसी पर टिके हैं।