जम्मू-कश्मीर: अनुच्छेद-370 की समाप्ति से टूटी आतंकवाद की कमर, पनप रही विकास की नयी संभावनाएं

अनुच्छेद-370 हटाने का विरोध करने वालों को गृह मंत्रालय द्वारा जारी एक रिपोर्ट को देखना चाहिए जिसमें यह बताया गया है कि अनुच्छेद 370 के हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद में 36% की कमी आई है। गत वर्ष जनवरी से जुलाई के बीच 188 आतंकी गतिविधियाँ दर्ज की गई जबकि इसी अवधि में इस वर्ष 120 आतंकी गतिविधियाँ दर्ज की गई।

जब भी हम जम्मू-कश्मीर की बात करते है, बरबस ही हमारे मन-मस्तिष्क में अनेक बिम्ब उमड़ने-घुमड़ने लगते हैं। उन विम्बों के मूल में जो सबसे बड़ी समस्या थी, वह अब अतीत की बात हो गई है। जी हाँ, निश्चित तौर से अनुच्छेद-370 की बात हो रही है। 5 अगस्त, 2019 की तारीख थी, जब इससे सम्बंधित जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन विधेयक राज्यसभा में पेश किया गया और पूर्ण बहुमत के साथ पारित भी हो गया। इस विधेयक के कानून बनने के बाद से अबतक बहुत कुछ बदल गया है।

साभार : Live Law

जम्मू-कश्मीर के विकास में वर्षों से अनुच्छेद-370 एक अड़चन साबित हो रहा था, जिसे जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन विधेयक में संशोधित किया गया। इस संशोधन के बाद यह अधिनियम 31 अक्टूबर, 2019 से लागू हो गया। अब इस राज्य में जम्मू और कश्मीर एवं लद्दाख नाम से दो केंद्र शासित प्रदेश हैं। लद्दाख में निर्वाचित विधानसभा नहीं है, वहीं जम्मू और कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा है। साथ ही अब दोनों केंद्र शासित प्रदेश भारत के संविधान के अनुसार शासित हैं न कि एक अलग संविधान द्वारा।

अनुच्छेद-370 के कारण कश्मीर के विकास में आ रही अड़चनों को हटाना, अपने पूर्ववर्ती भारतीय जनसंघ की स्थापना के पहले दिन से भाजपा के प्रमुख वैचारिक लक्ष्यों में से एक था। जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने वर्ष 1953 में इस अनुच्छेद को रद्द करने के लिए आंदोलन का नेतृत्व किया था, उसी के बाद श्रीनगर जेल में उनकी मृत्यु हो गई थी।

निश्चित रूप से अनुच्छेद-370 के कारण अनेक ऐसी क़ानूनी अड़चनें थी, जिसके परिणामस्वरूप राज्य में बाहर का व्यक्ति कोई निवेश नहीं कर सकता था। इस अड़चन का दुष्प्रभाव राज्य में प्रत्येक क्षेत्र में हमें देखने को मिलता था; चाहे वह स्वास्थ्य हो, उद्योग-धंधे हों, पर्यटन हो, शिक्षा हो या महिला अधिकारों की बात हो। इसका खामियाजा वहां के आम लोगों को भुगतना पड़ रहा था।

इसी क्रम में अधिनियम बनने के बाद विगत 31 मार्च, 2020 को केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (राज्य विधि का अनुकूलन) आदेश- 2020 को अधिसूचित किया। इस अधिसूचना के अधिरोपित होते ही राज्य में पूर्व में प्रचलित कानूनों को वर्तमान सन्दर्भ में अनुकूलित करने का प्रयास किया गया है। इस अधिसूचना के द्वारा कुछ कानूनों में संशोधन तथा कुछ को पूरी तरह से निरस्त कर दिया गया है। इस संशोधन के द्वारा आम जनों के सशक्तिकरण के लिए विभिन्न क्षेत्रों में अनेक प्रयास किये गए हैं, इससे अब जनसामान्य को इसका सीधा लाभ मिल सकेगा।

नई अधिवासन नीति में वाल्मीकि समुदाय के लोगों को आरक्षण देने का प्रावधान किया गया है, इससे उनका राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जा सकेगा, उन्हें 1957 में ही पंजाब से यहाँ ले आकर बसाया गया था। इसके साथ ही अन्य राज्यों की तरह अब जम्मू-कश्मीर राज्य की महिलाऐं भी राज्य के बाहर के व्यक्ति से भी शादी कर सकेंगी, तब भी उनके सभी अधिकार पूर्व की तरह सुरक्षित रहेंगे।

घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, शिक्षा का अधिकार, बाल विवाह को निषेध करने वाला अधिनियम सहित अनेक अन्य कानून भी अब अन्य राज्यों की भांति जम्मू कश्मीर में भी लागू होंगे। इस नीति के क्रियान्वयन के बाद पश्चिम पाकिस्तान के शरणार्थियों को पांच लाख रुपए की सहायता के साथ जम्मू और कश्मीर के अधिवास की गारंटी दी जा रही है।

इनके अतिरिक्त इस अधिसूचना के द्वारा जम्मू-कश्मीर के राहत एवं पुनर्वास आयुक्त कार्यालय में पंजीकृत विस्थापित भी अब जम्मू के अधिवासी माने जाएंगे। आप यह जानकर आश्चर्यचकित हो सकते हैं कि जम्मू कश्मीर में कोई निजी विश्वविद्यालय नहीं है, क्योंकि निजी विश्वविद्यालय में बड़े निवेश की आवश्यकता होती है और पूर्व में अनेक क़ानूनी अड़चनों के कारण यह संभव नहीं था। पूर्व की सरकारों ने जम्मू-कश्मीर के लोगों की सहूलियत की कीमत पर तुष्टिकरण की राजनीति की और अलगाववादियों को खूब प्रश्रय दिया, जिसका परिणाम बेरोजगारी और ऐसी समस्याओं के रूप में हमारे सामने है।

शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली के कारण प्रदेश से जो पलायन होता था, अब उसमें कमी आने की संभावना है, क्योंकि अनुच्छेद-370 हटने के बाद राज्य में निवेश करना अन्य राज्यों की ही तरह आसान हो गया है।

यदि राज्य में निवेश बढ़ेगा तो स्वतः ही रोजगार सृजित होगा और यहाँ के लोग सशक्त होंगे तथा राज्य के विकास में अपनी सहभागिता सुनिश्चित कर सकेंगे। जम्मू कश्मीर में पर्यटन एक बड़ा व्यवसाय है, लेकिन आनुपातिक रूप में निवेश के अभाव में यह उतना नहीं फलफूल सका, जितना होना चाहिए था। लेकिन अब निवेश से पर्यटन के इस व्यवसाय को बल मिलेगा। इन सभी बातों के बावजूद जो लोग अनुच्छेद-370 हटाए जाने का विरोध कर रहे उनसे पूछा जाना चाहिए कि इससे उनका क्या नुकसान हो रहा है?

जम्मू-कश्मीर में टूट रही आतंकवाद की कमर (सांकेतिक चित्र, साभार : IndiaTV News)

अनुच्छेद-370 हटाने का विरोध करने वालों को गृह मंत्रालय द्वारा जारी एक रिपोर्ट को देखना चाहिए जिसमें यह बताया गया है कि अनुच्छेद 370 के हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद में 36% की कमी आई है। गत वर्ष जनवरी से जुलाई के बीच 188 आतंकी गतिविधियाँ दर्ज की गई जबकि इसी अवधि में इस वर्ष 120 आतंकी गतिविधियाँ दर्ज की गई।

इसी रिपोर्ट के अनुसार जनवरी से जुलाई के बीच गत वर्ष 126 आतंकी मारे गए जबकि इसी अवधि के दौरान इस वर्ष 136 आतंकी मारे गए। आतंकी गतिविधियों में शामिल होने वाले जम्मू कश्मीर के स्थानीय युवाओं की संख्या में भी 40 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है जो अपने आप में बहुत बड़ा आंकड़ा है।

स्थानीय युवाओं का आतंकवाद की तरफ नहीं बढ़ना दिखाता है कि अब उन्हें विकास की संभावनाएं दिख रही हैं और वे अपना हित समझ गए हैं। इस तरह वे युवा अपने साथ-साथ जम्मू-कश्मीर के विकास को भी गति देंगे। इस रिपोर्ट में अनेक अन्य सकारात्मक संकेत भी देखे जा सके हैं।

अनुच्छेद-370 हटने के बाद यदि इस तरह के सकारात्मक संकेत हमें देखने को मिल रहे हैं; तो फिर इसका विरोध क्यों? राजनीति करने के लिए अनेक विषय हो सकते हैं लेकिन किसी की जान की कीमत पर राजनीति स्वीकार्य नहीं हो सकती। देश के अन्य राज्यों की तरह जम्मू-कश्मीर में शांति बहल होना चाहिए। इसके लिए राजनीतिक स्वार्थ से ऊपर उठकर सभी दलों को सरकार के साथ आकर काम करने की आवश्यकता है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)