मोदी सरकार के सुधारात्मक कदमों का दिख रहा असर, बेहतर हो रही अर्थव्यवस्था

पिछले कुछ सालों में केंद्र सरकार ने विनियामक शर्तों के अनुपालन हेतु एवं आर्थिक गतिविधियों में तेजी लाने के लिए सरकारी बैंकों को विविध माध्यमों से लगभग 3,50,000 करोड़ रुपये की पूँजी मुहैया कराई है। इस क्रम में सरकार ने 10 बैंकों का विलय करके चार बैंकों के गठन को भी मंजूरी दी है। दो सरकारी बैंकों के निजीकरण की घोषणा भी की गई है।

कोविड-19 की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुँचा था, लेकिन अब वह तेजी से  पटरी पर वापस लौट रही है। हालांकि, अभी भी कुछ चुनौतियाँ मौजूद हैं, लेकिन उम्मीद है, जल्द ही सभी समस्याओं का निराकरण कर लिया जायेगा। चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) सकारात्मक हो गई है। अब सरकार जीडीपी को कोरोना महामारी के पहले वाली अवस्था में लाने की कोशिश कर रही है।   

सरकार ने कई सुधारात्मक कदम उठाये हैं, जिसमें राहत पैकेज भी शामिल है। कोरोना महामारी की वजह से एनपीए बढ़ने की प्रबल संभावना है, जिसपर काबू पाने के लिए सरकार और बैंक दोनों कदम उठा रहे हैं।

पिछले कुछ सालों में केंद्र सरकार ने विनियामक शर्तों के अनुपालन हेतु एवं आर्थिक गतिविधियों में तेजी लाने के लिए सरकारी बैंकों को विविध माध्यमों से लगभग 3,50,000 करोड़ रुपये की पूँजी मुहैया कराई है। इस क्रम में सरकार ने 10 बैंकों का विलय करके चार बैंकों के गठन को भी मंजूरी दी है। दो सरकारी बैंकों के निजीकरण की घोषणा भी की गई है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिये बैंकों द्वारा प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत जरूरतमंद लोगों को अधिक से अधिक संख्या में ऋण दिया जा रहा है।

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत महिलाओं द्वारा संचालित स्व-सहायता समूह को 20 लाख रूपये का ऋण बैंकों द्वारा बड़े पैमाने पर वितरित किया जा रहा है, ताकि अधिक से अधिक लोग आत्मनिर्भर बनकर दूसरों को भी रोजगार मुहैया करा सकें। 

बैंक दूसरे ऋण उत्पादों की मदद से भी लोगों को वित्तीय सहायता दे रहे हैं. आर्थिक गतिविधियों में तेजी लाने के लिये सभी के द्वारा आय अर्जित करना जरुरी है. जब लोगों की आय बढ़ेगी, तभी मांग और खपत में तेजी आयेगी, जिससे उत्पादन में बढोतरी होगी और अर्थतंत्र का पहिया सुचारू रूप से घूमना शुरू कर देगा।   

कोरोना महामारी की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था को जरूर धक्का लगा था, लेकिन तालाबंदी को चरणबद्ध तरीके से खोलने के बाद आर्थिक गतिविधियों में तेजी आने लगी है और अर्थव्यवस्था के सभी मानकों में बेहतरी आ रही है। इस बात की पुष्टि हाल में जारी किये गये विविध आंकड़े भी कर रहे हैं। उद्योगपतियों, कारोबारियों और आमजन को राहत पैकेज देने से अर्थव्यवस्था को संभलने में बहुत मदद मिली है। 

जीएसटी वसूली में भी तेजी आ गई है और आगामी महीनों में भी इसमें तेजी बने रहने की उम्मीद है। कोरोना महामारी के बाद भी 3 महीनों में जीएसटी वसूली 1 लाख करोड़ रूपये से अधिक रही है। राजस्व के अन्य मोर्चों पर भी वसूली में तेजी आ रही है।

सरकार को बैंक और अन्य वित्तीय संस्थानों में अपनी हिस्सेदारी बेचकर वित्त वर्ष 2021-22 में 1 लाख करोड़ रूपये से अधिक गैर-कर राजस्व प्राप्त होने का अनुमान है। मांग और आपूर्ति में बढ़ोतरी के लिये सरकार सरकारी खर्च में भी वृद्धि कर रही है। भारतीय रिजर्व बैंक नीतिगत दरों में जरूरत के अनुसार कटौती कर चुका है। 

फिलवक्त, बैंकों के पास पर्याप्त नकदी है। इसलिए, नीतिगत दरों में कटौती करने की कोई जरूरत नहीं है। बैंक भी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने की दिशा में लगातार काम कर रहे हैं। कॉरपोरेट्स और खुदरा क्षेत्र में ऋण की माँग बढ़ने लगी है। ऋण वितरण में मजबूती से वृद्धि हो रही है।

ऋण की वर्ष से तारीख (वाईटीडी) वृद्धि अप्रैल, 2015 से जनवरी 2021 के दौरान 2.6 प्रतिशत रही, जबकि पिछले साल की समान अवधि के दौरान यह 2.4 प्रतिशत रही थी। नवंबर, 2020 के बाद से बैंकों की वृद्धिशील ऋण वितरण लगभग 3 लाख करोड़ रुपये रही है। ऐसे में कहना अनुचित नहीं होगा कि कोरोना महामारी के नकारात्मक प्रभावों से बैंकिंग क्षेत्र और भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत जल्द बाहर आने में समर्थ हो सकते हैं।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)