हैदराबाद नगर निगम चुनाव में भाजपा की जीत का संदेश बहुत बड़ा है

हैदराबाद के निगम चुनाव का जिम्मा मुख्यमंत्री केसीआर के सुपुत्र केटीआर के हाथों में था, इसलिए सरकारी मशीनरी का जमकर दुरूपयोग भी किया गया लेकिन बावजूद इसके हैदराबाद के बहुत बड़े हिस्से में बीजेपी को जीत हासिल हुई।

तेलंगाना के इतिहास में जो पहले नहीं हुआ था, वैसा ही कुछ हो गया है। कुछ हफ्ते पहले तक किसी राजनीतिक विश्लेषक ने शायद नहीं सोचा होगा कि हैदराबाद के निगम चुनाव में बीजेपी जीत का परचम फहरा देगी।

ग्रेटर हैदराबाद निगम चुनाव में भले ही टीआरएस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी लेकिन इस चुनाव में जनता ने जीत का सेहरा बीजेपी के सिर ही बाँधा है। 2016 में जो पार्टी महज चार सीटें जीत पाई थी, वह 2020 में 49 सीटें जीतकर दूसरी सबसे महत्वपूर्ण पार्टी बनकर सामने आई है।

अगर लोग मान रहे हैं कि ये कोई चमत्कार है, तो ऐसा नहीं है। बीजेपी ने पिछले कुछ समय में लगातार टीआरएस और AIMIM द्वारा संचालित निगम के घपलों को उजागर किया जिससे हैदराबाद की जनता अच्छी खासी नाराज़ दिख रही थी।

हैदराबाद के निगम चुनाव का जिम्मा मुख्यमंत्री केसीआर के सुपुत्र केटीआर के हाथों में था, इसलिए सरकारी मशीनरी का जमकर दुरूपयोग भी किया गया लेकिन बावजूद इसके हैदराबाद के बहुत बड़े हिस्से में बीजेपी को जीत हासिल हुई।

अगर नंबर के हिसाब से देखें तो हैदराबाद के जितने बड़े क्षेत्रफल में चुनाव हुआ उसमें 26 विधान सभा क्षेत्र आते हैं और कम से कम चार लोक सभा क्षेत्र भी इस ग्रेटर हैदराबाद के हिस्से में आ जाता है। फिर ऐसा क्या हुआ कि प्रदेश में टीआरएस की सरकार रहते हुए भी पार्टी को करारी शिकस्त मिली।

भले ही टीआरएस का AIMIM की मदद से मेयर बनना तय है, लेकिन टीआरएस के लिए यह हार से कम नहीं है क्योंकि जो पार्टी पिछली बार 99 सीटें लेकर आई हो उसे महज 55 सीटों से संतोष करना पड़ा।

हैदराबाद की जनता सरकार से नाराज है कि उसने शहर के रख रखाव के लिए कुछ भी नहीं किया जिस वजह शहर के ज्यादातर हिस्से बढ़ में डूब गए। जो सरकार इस चुनाव को गली मोहल्ले का चुनाव बोलकर जनता के समस्याओं से अपना मुंह चुरा रही थी उसे जनता ने सबक सिखला दिया और यह भी बतला दिया कि सत्ता किसी एक पार्टी की जागीर नहीं होती, आप अगर काम नहीं करेंगे तो जनता आपको किनारे कर देगी।

अब विश्लेषण इस बात का होने लगा है कि अगर इस नतीजे के बाद भी टीआरएस अपना रवैया नहीं बदलती है तो उसे 2023 में होने वाले चुनाव में सत्ता गंवानी भी पड़ सकती है।

अभी तक यहाँ की क्षेत्रीय पार्टियां लोगों में बीजेपी का भय दिखलाकर उन्हें बरगला रही थीं, लेकिन हैदराबाद की जनता ने बीजेपी को सिर आँखों पर बिठाकर उसके लिए तेलगू प्रदेश में रास्ता खोल दिया है।

जनता को लगने लगा है कि टीआरएस की दमनकारी नीतियों से उनको छुटकारा मिल सकता है और बीजेपी को हैदराबाद में मुख्य विपक्षी पार्टी बनाकर यहाँ के लोगों ने अपना विकल्प ढूंढ लिया है।

पहले से ही इस बात की यहाँ चर्चा थी कि टीआरएस और AIMIM में अंदरखाने समझौता था लेकिन निगम चलाने के लिए अब केटीआर को ओवैसी से हाथ मिलाना ही पड़ेगा। बीजेपी एक मजबूत विपक्ष की भूमिका जिम्मेदारी के साथ निभाती है, तो वो दिन भी दूर नहीं जब उसे जनता कर्नाटक की तरह तेलंगाना की बागडोर भी सौंप दे।

हैदराबाद के निगम चुनाव के नतीजे ने एक बड़ा सन्देश यह भी दिया है कि बंगाल और अन्य राज्यों में मनमानी करने वाले क्षेत्रीय दलों को भी जनता आईना दिखा सकती है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)