जी-20 : भारतीय विचार से निकल रही वैश्विक समस्याओं के समाधान की राह

जी-20 अध्यक्षता के दौरान भारत के अनुभव और ज्ञान का लाभ विश्व को, विशेषकर विकासशील देशों को मिलेगा। भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वो अपनी प्राथमिकताएँ सभी सहयोगी देशों के परामर्श से ही निर्धारित करेगा। भारत की प्राथमिकताएँ, जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि हमारी ‘एक पृथ्वी’ को संरक्षित करने, हमारे ‘एक परिवार’ में सद्भाव पैदा करने और हमारे ‘एक भविष्य’ को आशान्वित करने पर केंद्रित होंगी।

विकसित देशों के अनेक निहित स्वार्थ रहे हैं, जिसके कारण अनेक वैश्विक मसलों पर संवाद से समाधान की बजाय विवाद की स्थिति देखने को मिलती रही है। इस कारण जी-20 के इंडोनेशिया शिखर सम्मेलन में भी मतभेद दिखाई दिए थे। रूस के राष्ट्रपति ने तो इसमें शामिल होने से इंकार कर दिया था। उस दौरान भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ही सहमति का एक रास्ता प्रस्तावित किया था। इसपर अमेरिका और यूरोपीय देश भी सहमत हुए थे। रूस-यूक्रेन युद्ध की समस्या के संदर्भ में भी यह स्वीकार किया गया कि इस संकट का समाधान भारत ही कर सकता है।

गत वर्ष इंडोनेशिया में ही भारत को जी-20 की अध्यक्षता सौपी गई थी। इस माहौल में नरेंद्र मोदी को वसुधैव कुटुम्बकम का विचार कारगर लगा। उन्होंने इसको ही जी-20 का ध्येय वाक्य बनाया।

बताते चलें कि जी-20 विश्व का सर्वाधिक मजबूत आर्थिक संगठन माना जाता है। वैश्विक मामलों में ऐसे संगठनों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। लेकिन समस्या है कि ऐसे संगठनों में भी पांच-छह विकसित देश ही शक्तिशाली भूमिका में होते हैं। इसी के अनुरूप सम्मेलनों में इन्हें स्थान मिलता रहा है।

हालांकि भारत विकसित देशों में शामिल नहीं है। फिर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसे सम्मेलनों में भारत की गरिमा को बढ़ाने का काम किया है। मोदी की सहभागिता के बाद जी-20 शिखर सम्मेलनों में भारत को प्राथमिकता मिलने लगी और अब इस वर्ष सितम्बर में भारत की अध्यक्षता में जी-20 का शिखर सम्मेलन देश की राजधानी नई दिल्ली में होना निश्चित हुआ है। भारत के अध्यक्ष बनने के बाद जी-20 में कई महत्वपूर्ण किन्तु उपेक्षित रहे मुद्दों के उठने की संभावना बनी है।

आज विश्व के सामने आतंकवाद और पर्यावरण संरक्षण सबसे बड़ा मुद्दा है। इसके साथ विकसित देशों को विकासशील देशों की जरूरतों को ध्यान में रखने को भी प्राथमिकता देनी होगी। विकासशील देशों की प्राथमिकताओं को भी जी ट्वेंटी के एजेंडा में प्राथमिकता मिलने की उम्मीद अब बढ़ी है।

संयुक्त राष्ट्र के आतंकवादरोधी नेटवर्क को मजबूत बनाने का भी प्रयास होना चाहिए। तभी विश्व में शांति- सौहार्द कायम होगा। भारत ने नियम आधारित बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली का आह्वान किया है। बढ़ते संरक्षणवाद के बीच पारदर्शी, भेदभाव रहित, खुला और संयुक्त अंतरराष्ट्रीय व्यापार सुनिश्चित करने पर जोर दिया है। भारत को उम्मीद है कि चीन भी पूर्वाग्रहों को छोड़कर आगे बढ़ेगा। एशिया के दोनों शक्तिशाली मुल्कों को आगे आकर दुनिया को एक नई व्यवस्था देनी है।

भारत एशिया प्रशांत क्षेत्र और आतंकवाद का मुद्दा उठाता रहा है। भारत का जोर समस्याओं को बातचीत से हल करके आपसी सौहार्द्र बनाए रखने पर है। सभी सदस्य देशों को अच्छे संबंधों में बाधक तत्वों को दूर करना होगा। यह बात चीन पर विशेष रूप से लागू होती है, क्योंकि गड़बड़ी भी उसी की तरफ से होती रही है।

भारत द्वारा दिया गया जी-20 का ध्येय वाक्य ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ अपने आप में एक महत्वपूर्ण संदेश की तरह है। आशय स्पष्ट है कि वैश्विक समस्याओं के समाधान पर एकात्मता के साथ, नए सिरे से विचार विमर्श किए जाने की जरूरत है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मानना है कि यदि मनुष्य स्वाभाविक रूप से स्वार्थी है, तो हम सभी में मूलभूत एकात्मता की हिमायत करने वाली इतनी सारी आध्यात्मिक परंपराओं के स्थायी आकर्षण का क्या अर्थ समझा जाए ? वस्तुतः भारत में प्रचलित ऐसी ही एक परंपरा है जो सभी जीवित प्राणियों और यहां तक कि निर्जीव चीजों को भी एक समान ही पांच मूल तत्वों— पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश के पंचतत्व से बना हुआ मानती है। इन तत्वों का सामंजस्य हमारे भीतर, हमारे भौतिक, सामाजिक और पर्यावरणीय कल्याण के लिए आवश्यक है।

भारत द्वारा जी-20 की अध्यक्षता दुनिया में एकता की इस सार्वभौमिक भावना को बढ़ावा देने की दिशा में निश्चित रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। इसलिए भारत की जी-20 की थीम ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ यानी ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ है। ये सिर्फ एक नारा नहीं है। ये मानवीय परिस्थितियों में उन हालिया बदलावों को ध्यान में रखता है, जिनको आगे बढ़ाने में विश्व सामूहिक रूप से विफल रहा है।

आज विश्व जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और महामारी जैसी जिन सबसे बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहा है, उनका समाधान आपस में लड़कर नहीं, बल्कि मिलकर काम करके ही निकाला जा सकता है।

भारत में विश्व की आबादी का छठवां हिस्सा रहता है, जिसमें भाषाओं, धर्मों, रीति-रिवाजों और विश्वासों की विशाल विविधता है। सामूहिक निर्णय लेने की सबसे पुरानी ज्ञात परंपराओं वाली सभ्यता होने के नाते भारत दुनिया में लोकतंत्र के मूलभूत डीएनए में योगदान देता है।

जी-20 अध्यक्षता के दौरान भारत के अनुभव और ज्ञान का लाभ विश्व को, विशेषकर विकासशील देशों को मिलेगा। भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वो अपनी प्राथमिकताएँ सभी सहयोगी देशों के परामर्श से ही निर्धारित करेगा। भारत की प्राथमिकताएँ, जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि हमारी ‘एक पृथ्वी’ को संरक्षित करने, हमारे ‘एक परिवार’ में सद्भाव पैदा करने और हमारे ‘एक भविष्य’ को आशान्वित करने पर केंद्रित होंगी।

(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)