नए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग करने वाले बताएं कि पुराने कानूनों के रहते खेती घाटे का सौदा क्यों बन गयी?

इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि जिस न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य (एमएसपी) प्रणाली ने पंजाब के किसानों को गेहूं-धान के दुश्चक्र में उलझाकर खेती-किसानी को घाटे का सौदा बना डाला उसी एमएसपी को कानूनी बनाने के लिए पंजाब के किसान संगठन आंदोलन कर रहे हैं।  

सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा तीन कृषि कानूनों को लागू करने पर अस्थायी रोक के बावजूद किसान संगठनों और सरकार के बीच वार्ता किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रही है। इसका कारण है कि किसान संगठन नए कृषि कानूनों को रद्द करने और न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य (एमएसपी) की गारंटी की मांग पर अड़े हैं।

तीनों नए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग करने वाले किसान संगठन यह बात क्‍यों नहीं बता रहे हैं कि पुराने कानूनों के चलते खेती-किसानी घाटे के सौदे में क्‍यों तब्‍दील हो गई ?  कमोबेश यही स्‍थिति न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य (एमएसपी) की है। 

सांकेतिक चित्र (साभार : 123rf.com)

एमएसपी की अवधारणा गलत नहीं है लेकिन जिस प्रकार उसे कुछेक फसलों-इलाकों तक सीमित कर दिया गया वह गलत है। कृषि उत्‍पादन बढ़ाने और किसानों को एक निश्‍चित आमदनी सुनिश्‍चित कराने में एमएसपी की अहम भूमिका रही है लेकिन आगे चलकर एमएसपी वोट बैंक की राजनीति का जरिया बन गई। नेताओं में चुनाव को देखकर राजनीतिक हित लाभ के लिए ऊंचा एमएसपी घोषित करने की होड़ मच गई। 

चूंकि एमएसपी का सबसे ज्‍यादा फायदा पंजाब के किसानों को मिला और एमएसपी के सर्वाधिक दुष्‍परिणाम भी पंजाब को ही झेलने पड़े हैं। ऐसे में एमएसपी की राजनीति को समझने के लिए पंजाब से बेहतर दूसरा उदाहरण हो ही नहीं सकता। फिर तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ हो रहे किसान आंदोलन का केंद्र बिंदु भी पंजाब बन चुका इसलिए भी पंजाब के संदर्भ में एमएसपी को विश्‍लेषित करना प्रासंगिक होगा। 

खाद्य आत्‍मनिर्भरता हासिल करने के लिए किसानों को उन्‍नत बीजों के साथ रियायती दरों पर उर्वरकों, कीटनाशकों, रसायनों के इस्‍तेमाल के लिए प्रोत्‍साहित किया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि पंजाब में परंपरागत फसलों को छोड़कर गेहूं-धान की खेती की जाने लगी। 1960-61 में पंजाब में गेहूं की खेती 14 लाख हेक्‍टेयर और धान की खेती 2.27 लाख हेक्‍टेयर में होती थी जो कि 2019-20 में बढ़कर क्रमश: 35.08 लाख हेक्‍टेयर और 29.20 लाख हेक्‍टेयर तक पहुंच गई। 

रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों आदि के अंधाधुंध इस्‍तेमाल से शुरू में तो पैदावार बढ़ी लेकिन आगे चलकर इसमें गिरावट आनी शुरू हुई। उदाहरण के लिए पंजाब में 1972 से 1986 के बीच कृषि वृद्धि दर 5.7 फीसद रही जो कि 1987 से 2004 के बीच 3 फीसद और     2005 से 2014 के बीच घटकर महज 1.6 फीसद रह गई। स्‍पष्‍ट है एक ओर खेती की लागत बढ़ी तो दूसरी ओर उपज से होने वाली आमदनी घटी। 

इसका नतीजा यह हुआ कि किसान कर्ज के दुश्‍चक्र में फंसते चले गए। कांग्रेस आदि राजनीतिक पार्टियों व सरकारों ने किसानों को कर्ज के दुष्‍चक्र से बाहर निकालने के लिए खेती को फायदे का सौदा बनाने के बजाए मुफ्त बिजली-पानी का पासा फेंका। इससे हानिकारक होने के बावजूद गेहूं-धान के फसल चक्र को बढ़ावा मिला।

गेहूं-धान का हानिकारक फसल चक्र इसलिए जारी रहा क्‍योंकि केंद्र व पंजाब में सत्‍तासीन रही कांग्रेसी सरकारों ने गेहूं-धान की खरीद में बिचौलियों-आढ़तियों  के समानांतर तंत्र को बढ़ावा दिया। इन बिचौलियों-आढ़तियों को बिना कुछ किए धरे हर साल हजारों करोड़ रूपये की आमदनी होने लगी। बिना पसीने के होने वाली इस आमदनी से पंजाब में कई राजनेता पैदा हुए जिन्‍होंने इस खरीद तंत्र को और मजबूत बनाया। 

मोदी सरकार कृषि उपजों के लिए बिचौलिया विहीन व्‍यवस्‍था बनाने की कवायद में जुटी है। सबसे बड़ी बात है कि सरकार उन करोड़ों छोटे किसानों को बाजार व्‍यवस्‍था से जोड़ रही है जिनकी मंडी व्‍यवस्‍था तक पहुंच नहीं है। इन किसानों को मंडी से जोड़ने के लिए सरकार इलेक्‍ट्रानिक मंडी (ई नाम) पोर्टल शुरू किया है। 

इसके अलावा उत्‍पादन क्षेत्रों को खपत केंद्रों से जोड़ने के लिए किसान रेल चल रही है जिससे बिना बिचौलिए के किसानों की उपज सीधे उपभोक्‍ताओं तक पहुंच रही है। मोदी सरकार छोटे किसानों को किसान उत्‍पादन संगठन (एफपीओ) से जोड़ रही है ताकि वे बाजार अर्थव्‍यवस्‍था से कदमताल कर सकें। एफपीओ को वही सुविधाएं मिल रही हैं जो कि एक कंपनी को मिलती हैं। 

स्‍पष्‍ट है, यह किसानों की आड़ में उन नकली किसानों, बिचौलियों व उनके समर्थकों का आंदोलन है जो कभी खेत में गए ही नहीं। चूंकि मोदी सरकार जिस डिजिटल खरीद-बिक्री का तंत्र विकसित कर रही है उसमें इन नकली किसानों की कोई जगह नहीं है इसीलिए यह आंदोलन मोदी विरोधियों का मंच बनता जा रहा है।

(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)