मोदी राज में बेनकाब होते शहरी नक्सली

नक्सलवादी भले ही आदिवासी व जंगली इलाकों में सक्रिय हैं लेकिन अर्बन नक्सली पूरे देश में फैले हैं। सबसे बड़ी बात है कि नक्सलियों की तरह इन पर सीधी कार्रवाई संभव नहीं है। इनकी पहचान करके इनकी गतिविधियों पर नजर रखते हुए सावधान रहना तथा अनुचित गतिविधि की स्थिति में कार्रवाई करना ही रास्ता है। संतोषजनक यह है कि नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद ऐसे संगठनों व व्यक्तियों की पहचान होने लगी है तथा इनके विदेशी चंदे जैसे आर्थिक स्रोतों को  नियंत्रित करने के लिए कुछ कदम भी उठाए गए हैं, जिससे अर्बन नक्सलवाद की स्थिति कमजोर हुई है।

पिछले दिनों गुजरात के एकता नगर में आयोजित राज्‍यों के पर्यावरण मंत्रियों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अर्बन नक्सलियों के गैंग का पर्दाफाश करते हुए इनके विकास विरोधी गतिविधियों को उजागर कर दिया। उनके अनुसार अर्बन नक्सलियों के खेल में कई ग्लोबल इंस्टीट्यूट और फाउंडेशन भी सक्रिय हैं। इसीलिए ये लोग विश्‍व बैंक और न्यायपालिका को प्रभावित कर देते हैं

इसका ज्वलंत उदाहरण है गुजरात में नर्मदा नदी पर बना सरदार सरोवर बांध। जिस बांध का शिलान्यास आजादी के तुरंत बाद देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने किया था वह बांध दशकों बाद मोदी के प्रधानमंत्री काल में पूरा हुआ। इसी को देखते हुए प्रधानमंत्री ने पर्यावरण की आड़ में विकास कार्यों में बेवजह अडंगेबाजी करने वाले अर्बन नक्सलियों से सावधान रहने को कहा।

गौरतलब है कि कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) ने 2004 में अर्बन पर्सपेक्टिव नामक दस्तावेज जारी किया था, जिसमें अर्बन नक्सलवाद की चर्चा है। इसमें शहरी क्षेत्रों में नेतृत्व तलाशने की कोशिश की जाती है। इसके साथ ही औद्योगिक श्रमिकों तथा शहरी गरीबों को संगठित करने, संगठनों की स्थापना, छात्रों, बुद्धिजीवियों, महिलाओं, दलितों व धार्मिक अल्पसंख्यकों को समेकित करके संयुक्त मोर्चो बनाने पर जोर दिया गया है।

अर्बन नक्सलवादी नेता अक्सर पढ़े लिखे होते हैं। ये लोग शहरों में नेतृत्व तलाशने, भीड़ जुटाने, संगठन बनाने और लोगों को एकत्र करने व प्रशिक्षण देने का काम करते हैं। सीधे शब्दों में कहें तो अर्बन नक्‍सल एक ऐसा समूह है जिसमें विभिन्न वर्गों व कार्य क्षेत्र के लोग शामिल होते हैं। इनका एकमात्र उद्देश्य भारत में अस्‍थिरता पैदाकर विदेशी शक्तियों के निर्देशानुसार गतिविधियों को अंजाम देना। इसके अलावा ये जंगल में बैठे माओवादी आतंकियों को बौद्धिक ढाल प्रदान करते हैं।

खुफिया रिपोर्टों के अनुसार ‘अर्बन नक्सलवाद’ का समर्थन करने वाले अग्रणी संगठन दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चंडीगढ़, रांची, हैदराबाद, विशाखापत्तनम, मदुरै, तिरुवनंतपुरम, नागपुर और पुणे समेत कई शहरों में सक्रिय हैं। इनमें वकील, लेखक, मानवाधिकार और सामाजिक कार्यकर्त्ता शामिल हैं जिनकी समय-समय पर गिरफ्तारियाँ भी हुई हैं।

हालांकि सरकार या सरकारी एजेंसियों की तरफ से अर्बन नक्सल को लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया गया है। इस संबंध में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद पवार का नवंबर 2021 में दिया गया वक्तव्य उल्लेखनीय है जिसमें उन्होंने कहा था कि महाराष्ट्र के मुंबई, नागपुर, पुणे जैसे शहरों में नक्सलवाद तेजी से पांव पसार रहा है। यदि इस पर तुरंत कार्रवाई नहीं की गई तब यह बड़ी समस्या हो जाएगा।

अर्बन नक्सलियों की गतिविधियों के ढेरों उदाहरण मिल जाएंगे। वर्ष 2010 में छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में देश का सबसे बड़ा नक्सली हमला हुआ था जिसमें सुरक्षा बलों के 76 जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे। जब पूरा देश इन जवानों के बलिदान के शोक में डूबा था तब देश की राजधानी में स्थित जवाहर लाल नेहरू विश्‍वविद्यालय में वापमंथी छात्रों ने इस हमले का जश्न मनाया था। इसी विश्‍वविद्यालय में वामपंथी रुझान वाले व इस्लामिक विचारधारा के लोगों ने आतंकवादी अफजल गुरु की बरसी मनाई थी और भारत के टुकड़े-टुकड़े होने की कामना करते हुए नारा लगाया था।

अगस्त के आखिरी सप्ताह में अपने गुजरात दौरे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अलग-अलग परियोजनाओं का उद्घाटन किया। इस दौरान भुज में आयोजित एक कार्यक्रम में गुजरात के मुख्‍यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने सरदार सरोवर बांध और गुजरात के गांव-गांव तक पानी पहुंचाने वाली परियोजना का विरोध करने वाली मेधा पाटकर को अर्बन नक्‍सली करार दिया था। इसके बाद टुकड़े-टुकड़े गैंग और वामपंथी राजनीति के पुरोधा भूपेंद्र पटेल के विरोध में लामबंदी करने में जुट गए।

समग्रत: नक्सलवादी भले ही आदिवासी व जंगली इलाकों में सक्रिय हैं लेकिन अर्बन नक्सली पूरे देश में फैले हैं। सबसे बड़ी बात है कि नक्सलियों की तरह इन पर सीधी कार्रवाई संभव नहीं है। इनकी पहचान करके इनकी गतिविधियों पर नजर रखते हुए सावधान रहना तथा अनुचित गतिविधि की स्थिति में कार्रवाई करना ही रास्ता है। संतोषजनक यह है कि नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद ऐसे संगठनों व व्यक्तियों की पहचान होने लगी है तथा इनके विदेशी चंदे जैसे आर्थिक स्रोतों को  नियंत्रित करने के लिए जरूरी कदम उठाए गए हैं, जिससे अर्बन नक्सलवाद की स्थिति कुछ कमजोर हुई है।

(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)