चीन को खदेड़ने के लिए पंद्रह मिनट मांगने वाले राहुल की कांग्रेस साठ सालों तक क्या कर रही थी ?

जो राहुल गांधी आज 15 मिनट में चीन को बाहर फेंकने का दावा कर रहे हैं उन्‍हीं राहुल गांधी ने 7 अगस्‍त 2008 को कांग्रेस पार्टी के महासचिव के तौर पर चीन की कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के साथ एक समझौते पर हस्‍ताक्षर किया था। इस मौके पर उनकी मां सोनिया गांधी और चीन के राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग भी मौजूद थे। राहुल गांधी को देश को यह बताना चाहिए कि यह समझौता किस लिए किया गया था।

बड़बोलेपन में माहिर कांग्रेस के पूर्व अध्‍यक्ष राहुल गांधी नित नए रिकॉर्ड बना रहे हैं। हरियाणा में किसानों के विरोध प्रदर्शन को संबोधित करते हुए उन्‍होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कायर करार देते हुए कहा कि हमारी सरकार होती तो चीन को 15 मिनट में बाहर उठाकर फेंके देते। यहां सबसे अहम सवाल है कि आखिर साठ साल तक सत्‍ता में रही कांग्रेसी सरकारों ने चीन को अक्‍साई चिन से खदेड़ने में क्‍यों नाकाम रहीं ?

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15 मिनट में चीन को बाहर उठाकर फेंकने जैसे बयान देने से पहले राहुल गांधी को बताना चाहिए कि अक्‍साई चिन पर चीन ने कब कब्‍जा किया था ? 38000 वर्ग किलोमीटर से अधिक जमीन पर कब्‍जे के बाद 1962 में तत्‍कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जी ने संसद में कहा था अक्‍साई चिन में घास का एक तिनका भी नहीं उगता।

उनके इस गैर-जिम्‍मेदाराना बयान पर सांसद महावीर त्‍यागी ने संसद में अपने गंजे सिर को दिखाते हुए पूछा था कि तिनका तो यहां भी नहीं है तो क्‍या मैं इसे काटकर फेंक दूं या और किसी को दे दूं। इस पर नेहरू चुप हो गए।

1962 में चीन के हाथों हुई अपमानजनक हार के कारणों की जांच के लिए हैंडरसन ब्रुक्‍स-भगत समिति बनी। समिति ने अपनी रिपोर्ट में चीन के हाथों मिली हार के लिए तत्‍कालीन प्रधानमंत्री नेहरू की उदासीन व अदूरदर्शी नीतियों को जिम्‍मेदार ठहराया था। लेकिन नेहरू जी की छवि बचाने के लिए कांग्रेसी सरकारों ने उस रिपोर्ट को प्रकाशित ही नहीं होने दिया।

1963 में पाकिस्‍तान ने पाक अधिकृत कश्‍मीर की लगभग 5180 वर्ग किलोमीटर जमीन चीन को उपहार में दे दी थी। इसके बाद चीन समय-समय पर लद्दाख में छोटी-मोटी घुसपैठ करता रहा है। राष्‍ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड ने 2013 में इस बारे में एक रिपोर्ट दी थी जिसके अनुसार चीन की सेना पूर्वी लद्दाख के 640 वर्ग किलोमीटर इलाके पर कब्‍जा कर चुकी है। इस रिपोर्ट पर हंगामा मचने के बाद संप्रग सरकार ने इस रिपोर्ट को सिरे से खारिज कर दिया था।

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1962 के पहले से ही चीन अरुणाचाल प्रदेश की लगभग 90,000 वर्ग किलोमीटर जमीन पर दावा करता रहा है। भारतीय सेना ने यहां नेहरू की नीतियों को मानने से मना कर दिया इसीलिए चीन अरुणाचाल प्रदेश में दुस्‍साहस नहीं कर पाया।

इस साल जून में जब राहुल गांधी ने भारतीय जमीन पर चीन के कब्‍जे का आरोप लगाया तब लद्दाख के भाजपा सांसद ने कहा था कि हां, चीन ने हमारी जमीन पर कब्‍जा किया है। 1962 में कांग्रेस शासन के दौरान 37244 वर्ग किलोमीटर अक्‍साई चिन और इसके अलावा कांग्रेस की अगुवाई वाली संप्रग सरकार के दौरान ही चीन ने भारत की जमीन पर कब्‍जा किया।

संप्रग सरकार में रक्षा मंत्री एके एंटनी ने 5 सितंबर 2013 को संसद में माना था कि आजादी के बाद से ही कांग्रेसी सरकारों की नीति रही है कि सीमा से लगे इलाकों में आधारभूत ढांचा का ज्‍यादा विकास नहीं कराया जाए। उस समय एंटनी ने यह भी माना था कि यह नीति सही साबित नहीं हुई और चीन ने इसका फायदा उठाकर भारत में घुसपैठ की।

उल्‍लेखनीय है कि एके एंटनी की इस स्वीकृति के समय 2013 में मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे, राहुल गांधी की मां सोनिया गांधी सुपर प्रधानमंत्री के रूप में काम कर रही थीं और राहुल गांधी भी सक्रिय राजनीति में थे। उस समय राहुल गांधी चीन को उठाकर 100 किलोमीटर पीछे फेंकने की बात क्यों नहीं किए ?

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जो राहुल गांधी आज 15 मिनट में चीन को बाहर फेंकने का दावा कर रहे हैं उन्‍हीं राहुल गांधी ने 7 अगस्‍त 2008 को कांग्रेस पार्टी के महासचिव के तौर पर चीन की कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के साथ एक समझौते पर हस्‍ताक्षर किया था। इस मौके पर उनकी मां सोनिया गांधी और चीन के राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग भी मौजूद थे। राहुल गांधी को देश को यह बताना चाहिए कि यह समझौता किस लिए किया गया था।

इतना ही नहीं, कांग्रेसी सरकारों ने राजीव गांधी फाउंडेशन के लिए करोड़ों रूपये चंदा हासिल किया और ऐसी नीतियां बनाईं जिससे चीन से सस्‍ते आयात को प्रोत्‍साहन मिला। इसका नतीजा यह निकला कि भारत के लाखों लघु व कुटीर उद्योग तबाह हो गए।

समग्रत: लद्दाख से चीन को खदेड़ने के लिए 15 मिनट मांगने वाले राहुल गांधी को सबसे पहले पिछले साठ सालों में कांग्रेसी सरकारों द्वारा की गई आत्‍मघाती भूलों पर देश से माफी मांगनी चाहिए। इसके बाद उन्‍हें पंद्रह मिनट में चीन को खदेड़ने के अपने ‘अद्भुत’ प्‍लान का खाका भी पेश करना चाहिए ताकि उसका लाभ मोदी सरकार व भारतीय सेना उठा सके।

(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)