धर्मांध शासक टीपू सुल्तान की जयंती मनाने की ये कैसी कांग्रेसी मजबूरी ?

एक धर्मांध, विस्तारवादी और बर्बर शासक टीपू सुल्तान की जयंती मनाने को लेकर कांग्रेसी उतावलापन उसके समुदाय विशेष के तुष्टिकरण कारनामों के पुलिंदे में एक नया आयाम जोड़ रहा है। वह भी ऐसे समय में जब स्वयं कर्नाटक हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि टीपू कोई स्वतंत्रता सेनानी नहीं था, वह महज एक शासक था जो अपने हितों के लिए लड़ा। समाज या देश के विकास में उसका कोई योगदान नहीं था। माननीय उच्च न्यायलय द्वारा इस समारोह के औचित्य पर भी सवाल उठाया गया है। टीपू सुल्तान को लेकर देश का एक बड़ा तबका आज भी अनभिज्ञ है। इतिहास ने या यूं कहें कि विचारधारा विशेष के इतिहास लिखने वालों ने उसके कुकर्मो पर अपने कुतर्कों का आवरण डालकर उसे एक महान योद्धा साबित करने की कोशिश की है। यह वही लोग हैं, जिनको 1857 का स्वतंत्रता सग्राम सिर्फ एक सैन्य विद्रोह भर नजर आता है।

विगत वर्ष इसी समारोह के आयोजन का विरोध विश्व हिंदू परिषद द्वारा शांतिपूर्ण ढंग से किया जा रहा था, तब धर्मांध जिहादियों द्वारा एक कार्यकता डीएस कुट्प्पा की हत्या कर दी गयी थी, लेकिन इस मामले पर ना तो स्थानीय प्रशासन और ना ही कांग्रेस सरकार ने ही कोई कार्रवाई की। हत्या और प्रताड़ना का वह क्रम विगत वर्ष से लगातार जारी है। जो भी व्यक्ति इस विरोध में शामिल होता है, या तो उसकी हत्या करवा दी जाती है या फिर उसको प्रताड़ित किया जाता है। इस्लामी जिहादियों द्वारा किए प्रताड़ित लोगों की शिकायतें कर्नाटक के हर जिले में हैं, लेकिन छद्म धर्मनिरपेक्षता के आवरण में लिपटी कांग्रेस सरकार इन्ही जिहादियों की ‘हां में हां’ मिला रही है।

अब सवाल उठता है कि जब माननीय उच्च न्यायलय द्वारा इस संदर्भ में टिप्पणी की गई है और यह भी पूछा गया है कि टीपू महज एक राजा था, उसके बाद भी जयंती मनाने की क्या मजबूरी है ? इसका उत्तर सिर्फ यही है – तुष्टीकरण। वोट बैंक के लालच और संघ परिवार तथा मोदी विरोध में  कांग्रेस इस कदर अंधी हो चुकी है कि वो देश की एकता और अखंडता को भी ताक पर रखने को तैयार है। कांग्रेस मुस्लिम समुदाय को अपने पाले में लाने के लिए हर स्तर तक गिरने को तैयार है।

विगत वर्ष इसी समारोह के आयोजन का विरोध विश्व हिंदू परिषद द्वारा शांतिपूर्ण ढंग से किया जा रहा था, तब धर्मांध जिहादियों द्वारा एक कार्यकता डीएस कुट्प्पा की हत्या कर दी गयी थी, लेकिन इस मामले पर ना तो स्थानीय प्रशासन और ना ही कांग्रेस सरकार ने ही कोई कार्रवाई की। हत्या और प्रताड़ना का वह क्रम विगत वर्ष से लगातार जारी है। जो भी व्यक्ति इस विरोध में शामिल होता है, या तो उसकी हत्या करवा दी जाती है या फिर उसको प्रताड़ित किया जाता है। इस्लामी जिहादियों द्वारा किए प्रताड़ित लोगों की शिकायतें कर्नाटक के हर जिले में हैं, लेकिन छद्म धर्मनिरपेक्षता के  आवरण में लिपटी कांग्रेस सरकार इन्ही जिहादियों की हां में हां मिला रही है।

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इसका ताजा उदाहरण विगत 16 अक्टूबर को देखने को मिला जब संघ के एक कार्यक्रम से लौटकर आ रहे स्वयं सेवक रुद्रेश की बंगलौर में निर्दयता से हत्या कर दी गयी थी। इस हत्याकांड में चार लोग शामिल थे और चारो मुसलमान थे, जिनके नाम वसीम, मजर, इरफान और मजीब था, जो कि जिहादी थे। इस बात का खुलासा पुलिस द्वारा किए गए पूछताछ में हूआ। पुलिस सुत्रों की माने तो ये चारो जिहादी केरल के पीपुल फ्रंट आफ इंडिया मल्लापुरम के मंजेरी इकाई द्वारा बकायदे प्रशिक्षण प्राप्त करके आए थे। रुद्रेश की हत्या के लिए ये चारो जिहादी कई दिन से रेकी भी कर रहे थे। दूसरी घटना मंगलोर की है यहां भी जिहादी तत्वों द्वारा संघ के स्वयं सेवक कार्तिक राज की हत्या कर दी गयी। यह घटना भी स्थानीय पुलिस थाना कोनाजे के करीब हुआ। मंगलौर पुलिस द्वारा किए गए जांच में इस्लामी जिहादियों की संलिप्तता पायी गयी है।

तीसरी घटना 5 नवंबर 2016 की है यहां भी मगाली रवि नामक स्वयं सेवक की हत्या कर दी गयी। मंगाली रवि मैसुर के प्रिय पटना में संघ की एक बैठक से वापस घर जा रहे थे उसी समय उनकी हत्या कर दी गयी। जानकरी के मुताबिक रवि टीपू सुल्तान की जयंती के विरोध करने के लिए आयोजित बैठक से वापस आ रहे थे, तभी जिहादियों द्वारा कामराज रोड पर उनकी कुल्हाड़ी से काटकर हत्या कर दी गयी।  हलांकि मामला ताजा होने की वजह से स्थिति अभी पूरी तरह से साफ नहीं हुई है, लेकिन पूरी संभावना है कि इस हत्या में भी जिहादी तत्वों की ही संलिप्तता होगी।

कर्नाटक सरकार के इस पक्षपातपूर्ण रवैया से एक बार टीपू के उसी अत्याचारी शासन का कालखंड आंखों के सामने कौंध जाता है। जिसने अपनी धर्म-पिपासा के लिए हजारों निहत्थे हिंदुओं की हत्या करवायी थी, अपने अहम के लिए हजारो हिंदु बहन-बेटियों के साथ दुष्कर्म करवाया था। खून की नदियां बहाया था। और मौजूदा कर्नाटक सरकार भी उसी के नक्शे कदम पर चल रही है। अन्यथा उसके सामने ऐसी कौन सी मजबूरी है कि विगत बीस दिन में तीन-तीन निर्दोष मार दिए जाते हैं और ठीक से उसकी पुलिस ट्रायल भी नहीं की जाती है। कर्नाटक पुलिस लगातार हो रहे इस जिहादी गतिविधियों से निपटने में नाकाम हो रही है।

(लेखक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च फेलो हैं।)