अम्बेडकर

सावरकर ही नहीं अंबेडकर के खिलाफ भी है जेएनयू की लेफ्ट-यूनिटी

भारत में सावरकर, अम्बेडकर और वामपंथ तीनों की बहस एक कालखंड में पैदा हुई बहस है, जो आज भी प्रासंगिक है। सावरकर की राष्ट्रवादी विचारधारा वामपंथियों के निशाने पर तब भी थी, आज भी है। वहीँ अम्बेडकर, सावरकर की हिन्दू एकजुटता के अभियान से सहमत थे जबकि अम्बेडकर वामपंथियों की जमकर आलोचना करते थे। अम्बेडकर का स्पष्ट मानना था कि वामपंथी विचारधारा संसदीय लोकतंत्र के

इस्लामिक कट्टरपंथ को बौद्ध धर्म के लिए खतरा मानते थे अम्बेडकर!

इस्लाम जहां-जहां गया वहां पर पूरे के पूरे समाज और उसकी चेतना को एकदम इस्लाम मय करने की उसने हर तरह से कोशिश की। इस्लाम के आने के पूर्व मध्य एशिया बौद्घ था, ईरान अग्निपूजक था और दक्षिण पूर्व के मलयेशिया तथा इंडोनेशिया बौद्घ थे या वैष्णव मत के अनुयायी थे, मगर आज वहां इन मतों को मानने वाले ढूंढने पर भी नहीं मिलेंगे।