वह बौद्ध देश जहाँ राम राजा हैं और राष्ट्रीय ग्रंथ है रामायण !

थाईलैंड में थेरावाद बौद्ध के मानने वाले बहुमत में हैं, फिर भी वहां का राष्ट्रीय ग्रन्थ रामायण है, जिसे थाई भाषा में ‘राम-कियेन’ कहते हैंl इसका अर्थ राम-कीर्ति होता है,  जो वाल्मीकि रामायण पर आधारित हैl थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक के सबसे बड़े और भव्य हॉल का नाम रामायण हटल है। यहां पर राम कियेन पर आधारित नाटक और कठपुतलियों के प्रदर्शन नियमित रूप से चलते हैं। राम कियेन के मुख्य पात्रों में राम (राम), लक (लक्ष्मण),  पाली (बाली),  सुक्रीप (सुग्रीव),  ओन्कोट (अंगद),  खोम्पून (जाम्बवन्त), बिपेक (विभीषण ), रावण, जटायु आदि हैं। 

भारत से बाहर अगर हिन्दू प्रतीकों और संस्कृति को देखना-समझना है, तो  थाईलैंड से उपयुक्त  राष्ट्र शायद ही कोई और हो सकता। दक्षिण पूर्व एशिया के इस देश में हिन्दू देवी-देवताओं और प्रतीकों को आप चप्पे-चप्पे पर देखते हैं। यूं थाईलैंड बौद्ध देश है, पर इधर राम भी अराध्य हैं। यहां की राजधानी बैंकाक से सटा है अयोध्या शहर। वहाँ के लोगों की मान्यता है कि यही थी श्रीराम की राजधानी। थाईलैंड के बौद्ध मंदिरो में आपको ब्रहमा, विष्णु औरमहेश की मूर्तियां व चित्र मिल जाएंगे। यानी थाईलैंड बौद्ध और हिन्दू धर्म का सुंदर मिश्रण पेश करता है। कहीं कोई कटुता या वैमनस्य का भाव नहीं है।

बैंकाक एयरपोर्ट पर निर्मित समुद्र मंथन का दृश्य

आप जैसे ही थाईलैंड  की राजधानी बैंकाक के हवाई अड्डे पर उतरते हैं तो आपको उसका नाम जानकर आश्चर्य  अवश्य होता है। नाम है स्वर्णभूमि एयरपोर्ट। एयरपोर्ट से आप शहर की तरफ बढ़ते हैं तो आपको राम स्ट्रीट और अशोक स्ट्रीट जैसे साइनबोर्ड पढ़कर वास्तव में बहुत सुखद अनुभव होता है।

दरअसल आसियान देश थाईलैंड में सरकार भी हिन्दू धर्म का आदर करती है। थाईलैंड का राष्ट्रीय चिन्ह गरुड़ है। हिन्दू धर्म की पौराणिक कथाओं में गरुड़ को भगवान विष्णु की सवारी माना गया है। गरुड़ के लिए कहा जाता है कि वह आधे पक्षी और आधे पुरुष हैं। उनका शरीर इंसान की तरह का है, पर चेहरा पक्षी से मिलता है और पंख भी हैं।

अब प्रश्न उठता है कि जिस देश का सरकारी धर्म बौद्ध हो, वहां पर हिन्दू धर्म का प्रतीक क्यों है ? इस प्रश्न  का उत्तर है ये है कि चूंकि थाईलैंड मूल रूप से हिन्दू राष्ट्र था, इसलिए उसे इस में कोई आपत्ति नजर नहीं आती कि वहां पर हिन्दू धर्म का प्रतीक राष्ट्रीय चिन्ह हो। यही नहीं, हिन्दू धर्म का थाई राज परिवार पर सदियों से गहरा प्रभाव है।

थाईलैंड के राजा को वहाँ के निवासी भगवान विष्णु का अवतार मानते हैं। इसी भावना का सम्मान करते हुए थाईलैंड का राष्ट्रीय प्रतीक गरुड़ है। यहां तक कि थाई संसद के सामने गरुड़ बना हुआ है। थाईलैंड में राजा को राम कहा जाता है। राज परिवार अयोध्या में रहता है। बौद्ध होने के बावजूद थाईलैंड के लोग अपने राजा को राम का वंशज होने से भगवान विष्णु का अवतार मानते हैं। इसलिए थाईलैंड में एक तरह से राम राज्य है। वहां के राजा को भगवान श्रीराम का वंशज माना जाता है। वहां कभी सम्प्रदायवादी दंगे नहीं हुए। आपको थाईलैंड एक के बाद एक आश्चर्य देगा। वहां का राष्ट्रीय ग्रन्थ रामायण है।

थाईलैंड का राष्ट्रीय चिन्ह

वैसे थाईलैंड में थेरावाद बौद्ध के मानने वाले बहुमत में हैं, फिर भी वहां का राष्ट्रीय ग्रन्थ रामायण है, जिसे थाई भाषा में ” राम-कियेन ” कहते हैं l इसका अर्थ राम-कीर्ति होता है,  जो वाल्मीकि रामायण पर आधारित हैl थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक के सबसे बड़े और भव्य हॉल का नाम रामायण हटल है। यहां पर राम कियेन पर आधारित नाटक और कठपुतलियों के प्रदर्शन नियमित रूप से चलते हैं। राम कियेन के मुख्य पात्रों में राम (राम), लक (लक्ष्मण),  पाली (बाली),  सुक्रीप (सुग्रीव),  ओन्कोट (अंगद),  खोम्पून ( जाम्बवन्त ) , बिपेक ( विभीषण ), रावण, जटायु आदि हैं। 

इस बीच कुछ दिन पहले एक आंकड़ा पढ़ा तो चौंक गया। आंकड़ा ये था कि भारत की तुलना में छोटे से थाईलैंड में प्रति वर्ष 80 लाख पर्यटक पहुंच रहे हैं। इनमें से अधिकतर भगवान बुद्ध से जुड़े मंदिरों के दर्शन करने के लिए वहां पर जाते हैं। क्या भारत में इतनी संख्या पर्यटक बौद्ध से संबंधित तीर्थ स्थलों का भ्रमण करते हैं ? नहीं। भारत में मुश्किल से 10 लाख पर्यटक भी बौद्ध सर्किट नहीं पहुंचते। यूं तो भारत  की चाहत है कि दुनियाभर में फैले 50 करोड़ बौद्ध धर्म के अनुयायियों को भारत लाया जाए। बौद्ध अनुयायियों का गौतम बुद्ध की जन्मस्थली भारत को लेकर आकर्षण स्वाभाविक होना चाहिए। इस दिशा में ठोस प्रयास की जरूरत है।

बहरहाल, उपर्युक्त बातों से स्पष्ट है कि थाईलैंड में एक छोटा भारत बसता है। भारत में राम और रामायण को जब-तब सांप्रदायिक रंग देने वाले तथाकथित सेकुलरों को थाईलैंड से सबक लेते हुए अपने आस्था प्रतीकों के महत्व को समझना और उनका सम्मान करना चाहिए। थाईलैंड का भारतीय संस्कृति के रंग में इस रचा-बसा होना निश्चित तौर पर हमारे लिए गर्व का विषय है।

(लेखक यूएई दूतावास में सूचनाधिकारी रहे हैं। वरिष्ठ स्तंभकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)